झारखंड में इस बार मॉनसून की बेरुखी का सीधा असर खेतों पर पड़ा है. इसका प्रभाव किसानों की सालाना कमाई पर पड़नेवाला है. राज्य के किसान इस साल अपनी कमाई को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि साल किसानों को धान की फसल के साथ-साथ मकई की फसल में भी नुकसान होने वाला है. दरअसल पानी की कमी के कारण किसानों ने इस साल धान की खेती अच्छे से नहीं की, इसके बाद जो मकई की खेती किसानों ने लगाई थी, उसमें पानी के अभाव में कीड़े पड़ गए हैं. कीट के प्रभाव के कारण पौधे मर रहे हैं. इसका सीधा असर उसके उत्पादन पर होगा.
रांची जिला के बेड़ो प्रखंड अंतर्गत बेड़ो के रहनेवाले किसान किसान रवि प्रसाद गुप्ता ने बताया कि इस बार पानी की कमी के कारण धान की खेती बिल्कुल नहीं हो पाई है. रवि प्रसाद ने बताया कि पूरे बेड़ो प्रखंड में कई ऐसे किसान हैं जिन्होंने सिर्फ नाम मात्र की धान की खेती की है. जिनके पास सिंचाई की सुविधा थी उन किसानों ने तो किसी तरह धान की रोपाई की पर अब वो सोच रहे है कि अगर पानी नहीं बरसता तो फिर अगली सिंचाई कैसे करेंगे. रवि ने बताया कि बेड़ों में किसानों की स्थिति ऐसी है कि जो किसान पहले 10 एकड़ में धान की खेती करते थे वो मात्र 50 डिसमिल तक ही सिमट गए हैं. इसके कारण इस बार झारखंड में धान के उत्पादन में गिरावट आ सकती है.
वहीं रांची जिला के मांडर प्रखंड अंतर्गत गुड़गुड़जाड़ी गांव के किसान प्रगतिशील किसान गंदूरा उरांव ने बताया की धान रोपाई के मामले में उनके गांव की स्थिति इस बार बेहद खराब है. स्वतंत्रता दिवस समारोह कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गंदूरा उरांव को दिल्ली बुलाया गया था, जहां वो शामिल हुए थे. उन्होंने बताया कि उनके गांव में मात्र दो फीसदी कृषि योग्य जमीन में ही धान की खेती हो पाई है. गुड़गुड़जाड़ी एक ऐसा गांव हैं जो चारों तरफ से नदी से घिरा हुआ है, पर हालत यह है कि गांव में सिंचाई तक की सुविधा नहीं होने के कारण 90 फीसदी किसानों ने धान का एक दाना भी नहीं लगाया है.
गंदूरा उरांव बताते हैं कि वो खुद लगभग आठ एकड़ में धान की खेती करते हैं. पर इस बार बहुत मुश्किल से दो एकड़ में किसी तरह सिंचाई करके धान की खेती कर पाए हैं. इसके बाद भी अब चिंता सता रही है कि अगर आगे पानी नहीं बरसेगा तो फिर धान को पानी कहां से देंगे. क्योंकी सभी कुआ तालाबों की स्थिति खराब है. जून के महीने में कुओं में जो जलस्तर था, पानी आज उससे भी नीचे चला गया है. गंदूरा उरांव बताते हैं कि पिछले साल भी उत्पादन कम था इस साल भी उत्पादन होने की उम्मीद कम है, इसलिए इस साल झारखंड में अभी से ही चावल के दाम बढ़ रहे हैं.
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