देश में इस वक्त ऐसा दौर चल रहा है जब किसानों की आय बढ़ाने और अधिक उत्पादन हासिल करने पर जोर दिया जा रहा है. इसके साथ ही इस बात पर भी फोकस किया जा रहा है कि खेती की पद्धति ऐसी हो जिसमें मिट्टी और पर्यावरण को नुकसान नहीं हो. ऐसे में किसानों के सामने यह चुनौती है कि आखिर किस प्रकार से खेती में लागत को कम किया जाए, क्योंकि आमदनी दोगुनी करने या बढ़ाने की शुरुआत वहीं से हो सकती है, जहां से किसानों की कृषि लागत में कमी आएगी. ऐसे में आइए इस लेख में एक प्रगतिशील किसान से जानते हैं कि कृषि में क्यों बढ़ती गई किसानों की लागत और किस तरह से खेती महंगी हो गई-
झारखंड के मांडर प्रखंड के किसान रंजन उरांव बताते हैं कि पिछले बीस सालों में खेती में बहुत बदलाव आया है. अब सिर्फ पैसे के बल पर ही खेती हो सकती है. जिस किसान के पास पैसा नहीं है वह खेती नहीं कर सकता है. आज से बीस साल पहले तक ऐसी व्यवस्था थी कि अगर किसान के पास कम पैसे भी होते थे, तब भी वह आराम से खेती कर सकता था. खेती करने के लिए उसके पास संसाधन थे. हल चलाने के लिए बैल, खेत में डालने के लिए गोबर खाद के साथ-साथ खुद का देसी बीज भी उसके पास उपलब्ध रहता था.
गहरी सांस लेते हुए रंजन ने आगे बताया कि अफसोस यह व्यवस्था अब किसानों के पास नहीं है. अब तो कद्दू लगाने के लिए भी किसान को बाजार जाना पड़ता है. बीज दुकान पर जाकर बीज खरीदना पड़ता है. वो बताते हैं कि किस तरह से उनके घर में हर साल बीज रखने के लिए एक बड़ा कद्दू या गोटा सब्जी को रखा जाता था, हर बार सीजन की शुरुआत में ही किसान खेती कर देते थे. पर अब यह ट्रेंड पूरी तरह बदल चुका है. सीजन की शुरुआत होने के साथ ही किसान खाद और बीज के लिए बाजार की तरफ रुख करते हैं.
आंकड़ों पर गौर करें तो आज से डेढ़ दशक पहले तक जिन जगहों पर खाद और बीज सें संबंधित दुकान नहीं थे वहां पर भी आज चार से पांच बीज दुकान खुल गए हैं. खाद दुकानों में खाद की बिक्री बढ़ गई है. पहले बाजार में यूरिया 6 रुपये और डीएपी 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता था, लेकिन अब कीमत बढ़ गई है. इसके कारण खेती की लागत बढ़ गई है. पहले किसानों को धान की खेती करने के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ते थे, घर का धान, घर की खाद, घर से ही हल और बैल होने पर जुताई और बुवाई हो जाती थी. पैसे खर्च किए बिना किसानों का काम हो जाता था.
वही किसान गंदूरा उरांव आगे बताते हैं कि पहले खेती में लागत कम थी, उदाहरण के लिए पहले बैल से जिस खेती की जुताई करने में लागत 50 रुपये आती थी, वही अब बढ़कर 450 रुपये हो गई है. ट्रैक्टर से जुताई करना भी अब महंगा हो गया है. प्रति घंटे 1200 रुपये की दर से पैसे चुकाने पड़ते हैं. यह अलग बात है कि उत्पादन पहले से थोड़ा बढ़ा है, पर उत्पादन में आने वाली लागत अधिक है इसलिए कमाई कम है. सब्जियों और फसल के दाम बढ़े हैं, मांग बढ़ी है पर उसके अनुरुप खेती में लागत भी बढ़ी है. अब किसान अगर फिर से प्राकृतिक खेती या जीरो बजट प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ते हैं तो इसका लाभ किसानों को मिलेगा.
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