सेब की खेती अब सिर्फ कश्मीर या हिमाचल तक सीमित नहीं रह गई है. देश के कई हिस्सों में इसकी खेती हो रही है. झारखंड के भी कई जिलों में लोग अपने घरों में सेब के पौधे लगा रहे हैं और फल हासिल कर रहे हैं. राजधानी के कांके में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती हुई है. यहां पर सेब के 31 पौधे लगे हुए हैं. इनमें से कुछ पौधों से फल भी आने लगे हैं. एक साल पहले यहां पर हिमाचल से मगंवाकर यहां पर सेब के 35 पौधे लगाए गए थे. इनमें चार पौधें मर गए बाकी सभी स्वस्थ है.
इस फार्म के केयरटेर भीम बताते हैं कि पहली बार उनके गौशाला परिसर में सेब की खेती की गई है. इसके लिए हिमाचल से पौधे मंगवाए गए थे. यहां पर अलग-अलग किस्मों के सेब के पौधे लगे हुए हैं. हालांकि उन्होंने सेब के किस्मों की जानकारी नहीं. फार्म में फिलहाल जो पौधे लगे हुए हैं उनकी उम्र एक साल की है. एक साल में उन पौधों से फल आने शुरु हो गए हैं. हालांकि आकार, रंग और गुणवत्ता के मामले में यहां उपज रहे सेब थोड़े कम है. यहां की जलवायु के कारण ऐसा हो रहा है.
भीम बताते हैं कि इन सेब के पौधों के लगाने के बाद शुरुआत के दिनों में काफी मेहनत करनी पड़ी है. एक कृषि विशेषज्ञ की देखरेख में यहां पर सेब की खेती की गई है. उन्होंने बताया कि इसमें सिंतचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन नहीं लगा हुआ है. इसकी खेती के लिए अलग से बोरिंग की गई है. गार्डेन पाइप के इसकी सिंचाई की जाती है. मिट्टी में उपस्थित नमी के हिसाब से हर दो तीन में सिंचाई की जाती है.
फार्म के केयरटेकर भीम ने बताया की सेब के पौधे लगाने के लिए सबसे पहले तीन फीट के गड्ढे खोदे गए. उसके बाद उसमें पुआल की कुट्टी को जला दिया गया. इससे गड्ढा पूरी तरह गर्म हो गया और उसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक कीटान नष्ट हो गए. इसके बाद उस गड्ढे में गोबर चूना के अलावा आवश्यक केमिकल्स डाले गए. इसके बाद सेब के बिल्कुल छोटे पौधे डाले. शुरुआती दिनों में बहुत अधिक सिंचाई करनी पड़ी. भीम बताते हैं कि बारिश आने पर यह देखा जाएगा की सेब का आकार क्या होता है. हिमाचल से पौधे मंगाने के पीछे का तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड के गर्म मौसम को देखते हुए यह फैसला किया गया है.
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