बिहार के छपरा जिले में फूलों की खेती तेजी से बढ़ रही है. यहां का पूरा इलाका पारंपरिक फसलों की खेती के लिए जाना जाता है. मगर किसान अब फूलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कम समय में अधिक कमाई हो रही है. सारण जिले के दिघवारा ब्लॉक में किसान बड़े पैमाने पर फूलों की खेती करने लगे हैं. इसमें गेंदा, चेरी फूल और गुलदाउदी प्रमुख हैं. किसानों की कमाई इन फूलों से बढ़ी है, इसलिए वे अधिक से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती करने लगे हैं.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट बताती है कि पहले दिघवारा के अकीलपुर ब्लॉक में ही फूलों की खेती होती थी. लेकिन अब इसका दायरा बहुत दूर तक फैल गया है. नेशनल हाइवे के दोनों तरफ सैदपुर और चकनूर के बीच केवल फूलों से भरे खेत ही दिखाई देने लगे हैं.
रमेश भगत, योगेंद्र भगत और योगेंद्र सिंह जैसे किसान कहते हैं कि उनके बड़े गेंदे के फूलों की सजावट के साथ-साथ धार्मिक काम के लिए भी बहुत मांग है और इसने दिघवारा को एक पहचान दिलाई है.
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दिघवारा के रहने वाले किसान अमित कहते हैं कि फूलों की मांग न केवल सारण के कई प्रसिद्ध मंदिरों जैसे सोनपुर में हरिहरनाथ मंदिर और आमी में मां अंबिका भवानी के मंदिर में है बल्कि मुजफ्फरपुर जिले के बाबा गरीब नाथ धाम और पटना के हनुमान मंदिर जैसे आस-पास के जिलों में भी है. इसके अलावा शादी-ब्याह जैसे सामाजिक समारोहों में भी फूलों की मांग है.
अमित ने बताया, इस तरह यह एक कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है, क्योंकि अब ज्यादातर घरों में महिलाएं माला बनाने में लगी हुई हैं, जिसे दूसरे जिलों के साथ-साथ पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी भेजा जाता है, जिससे इस प्रखंड की आर्थिक तरक्की में भी बड़ा योगदान मिल रहा है.
दूसरी ओर, कुमार पंकज और हृदयानंद यादव जैसे लोकल टीचर भी फूलों के खेतों की प्राकृतिक सुंदरता की ओर इशारा करते हैं, जो उन्हें सेल्फी लेने के लिए सबसे अच्छी जगह बनाते हैं. जबकि सारण जिले में कोई उद्योग नहीं है, फूलों की खेती और माला बनाना इस ब्लॉक में एक तरह का कुटीर उद्योग बन गया है, जो झौआन गांव में "अरता का पाट" (छठ पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है) के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है.
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