
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली में सोमवार को अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति (SC) के पशुपालकों, उद्यमियों, युवाओं एवं युवतियों के लिए 5 दिवसीय बकरी पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज शुभारंभ किया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में बरेली जनपद एवं आसपास के 25 प्रतिभागी शामिल हुए.
IVRI बरेली की संयुक्त निदेशक, प्रसार शिक्षा डॉ. रूपसी तिवारी ने कहा कि बकरी पालन में आज के परिवेश में उद्यमिता की असीम संभावनाएं हैं क्योंकि बकरी के मांस की मांग एवं खपत सबसे ज्यादा है एवं सामाजिक एवं धार्मिक वर्जनाएं भी नहीं हैं. इसका दूध औषधीय गुणों से भरपूर है.
उन्होंने बकरी पालन व्यवसाय को उद्यमिता का रूप देने के लिए कृषक उत्पादक संगठन (FPO) के निमार्ण पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा भेड़ एवं बकरी पालकों के लिए भेड़ एवं बकरी श्रिया चैटबॉट तैयार किया है जो गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त आईवीआरआई ने ऑनलाइन पशु चिकित्सा क्लीनिक तथा टेली कंसल्टेंसी सर्विस की सेवाएं उपलब्ध हैं जो बकरी पालकों के लिए बहुत सहायक होगा.
डॉ. मुकेश सिंह ने बताया कि अधिकांश बकरियां लघु, सीमांत किसान या भूमिहीनों द्वारा मांस, दूध, त्वचा, बाल, फाइबर और खाद का एवं आजीविका के लिए पाली जाती है. आज के दौर में बढती आबादी, बढती आय, खाद्य वरीयताओं और खाद्य पदार्थों के प्रति जागरुकता के कारण दूध की कीमत, एवं बकरी के मांस की मांग उपभोक्ता तेजी से बढ़ रही है. इसलिए बकरी पालन द्वारा उद्यमिता विकास में असीमित संभावनाएं हैं.
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हरि ओम पाण्डेय ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि इस दौरान प्रतिभागियों को बकरी पालन पर वैज्ञानिक प्रबन्धन, बकरी की प्रमुख नस्लें मुख्य लक्षण एवं विशेषतायें, बकरियों का चयन एवं उत्तम संतति हेतु प्रजनन प्रबंधन, बकरियों की प्रमुख बीमारियां, लक्षण, निदान एवं नियन्त्रण, बकरियों के लिये आवास निर्माण एवं प्रबन्धन, विभिन्न आयुवर्ग की बकरियों के लिये आवश्यक आहार की गणना एवं प्रबंधन, बकरियों में अन्तः एवं बाह्रय पर जीवी रोग, लक्षण, निदान एवं नियन्त्रण, बकरी के दूध की विशेषतायें एवं बढता महत्व, बकरी पालन के अपशिष्टो से वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन, एकीकृत बकरी पालन एवं उससे होने वाला लाभ एवं लघु एवं मध्यम बकरी पालन का अर्थशास्त्र पर तकनीकी जानकारी प्रदान की जाएगी.
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