हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर में आयोजित रेशम कृषि मेले में रेशम से किसानों की जिंदगी रौशन करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. इसे पूरा करने के लिए योगी सरकार ने कार्ययोजना तैयार कर धागा उद्योग का विस्तार करने की पहल की है. इसके तहत यूपी में ककून से धागा उत्पादन की मात्रा को बढ़ाकर करीब 30 गुना किया जाएगा. इससे धागा उत्पादन दो गुना होगा और रीलिंग इकाइयों की संख्या बढ़ाकर 23 गुना तक की जाएगी. कुल मिलाकर रेशम का उत्पादन बढ़ाकर यूपी सरकार किसानों की जिदंगी रोशन करने को लेकर काम कर रही है.
यूपी में गोरखपुर से लगा नेपाल की तराई का क्षेत्र रेशम की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है. पिछले 20 सालों के दौरान इस इलाके में रेशम उत्पादन में 14 गुना वृद्धि हुई है. इससे स्पष्ट है कि इस इलाके के किसानों को रेशम की खेती खूब भा रही है. योगी सरकार ने इस दिशा में जारी प्रयास और तेज करके अगले 5 वर्षों में रेशम उत्पादन में 10 गुना वृद्धि करने का लक्ष्य तय किया है.
कृषि विभाग की कार्य योजना के मुताबिक यूपी में रेशम की पैदावार एवं आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार ने कर्नाटक सरकार के साथ एक करार किया है. कर्नाटक में 1.25 लाख टन कोया के उत्पादन से 80 हजार टन रेशम का धागा बनता है. करार के मुताबिक यहां के बुनकरों को कर्नाटक से ओरिजिनल रेशम मिला है. रेशम की बेहतर उत्पादकता प्राप्त करने के लिए प्रदेश सरकार शीघ्र ही रेशम किसानों के एक समूह को प्रशिक्षण के लिए कर्नाटक भेजेगी.
यूपी में फिलहाल 57 जिलों में रेशम उत्पादन का काम होता रहा है. वैज्ञानिक अध्ययन के बाद अब रेशम उत्पादन के लिए अनुकूल जलवायु वाले 31 जिलों में गहनता से बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. अब तक कृषि फार्मों पर ही रेशम उत्पादन अधिक होता रहा है, अब इसे आम किसानों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. किसान अपनी खेती के साथ रेशम कीट पालन भी कर सकते हैं. रेशम के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए वाराणसी में सिल्क एक्सचेंज भी खोला गया है.
सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जब यूपी से उत्तराखंड अलग हुआ तो यूपी में मात्र 22 टन रेशम का उत्पादन होता था. अब प्रदेश में इसकी मात्रा बढ़कर 350 टन हो गई है. सरकार का लक्ष्य अगले 3 से 4 साल में रेशम उत्पादन को दोगुना करने का है.
योगी सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से रेशम उत्पादक 50 हजार किसान परिवारों की जिंदगी को रौशन करने की कार्य योजना बनाई है. इसके तहत ककून धागाकरण का लक्ष्य करीब 30 गुना बढ़ाया गया है. अभी यूपी में 60 मीट्रिक टन ककून से धागा बन रहा है. अगले 5 साल में इसे बढ़ाकर 1750 मीट्रिक टन करना है.
इसके लिए रीलिंग मशीनों की संख्या 2 से बढ़ाकर 45 यानी 23 गुना किए जाने का लक्ष्य है. विभाग का दावा है कि इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पूरा करने के सतत प्रयास जारी है. गोरखपुर में आयोजित कार्यक्रम उसी प्रयास की एक कड़ी थी.
सरकार ने अगले एक साल का जो लक्ष्य रखा है, उसके अनुसार सिल्क एक्सचेंज से प्रदेश के अधिकतम बुनकरों को जोड़ा जाएगा. इसके अलावा 17 लाख शहतूत एवं अर्जुन का पौधरोपण होगा. साथ ही कीट पालन के लिए 10 सामुदायिक भवनों के निर्माण की शुरुआत की जाएगी. ओडीओपी योजना के तहत इंटीग्रेटेड सिल्क कॉम्प्लेक्स का डिजिटलाइजेशन, 180 लाख रुपये की लागत से 10 रीलिंग इकाइयों की स्थापना और कीट पालन के लिए 10 अन्य सामुदायिक भवन का निर्माण भी इसी लक्ष्य का हिस्सा है.
यूपी के तराई क्षेत्र में पानी की पर्याप्त उपलब्धता के कारण रेशम उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं. कम लागत में अधिक मुनाफे की वजह से यह क्षेत्र किसानों की आय बढ़ाने के साथ महिलाओं को स्वावलंबी बनाकर मिशन शक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
देश में कुल रेशम उत्पादन में अभी यूपी की हिस्सेदारी महज 3 फीसद है. उचित प्रयास से यह हिस्सेदारी 15 से 20 फीसद तक हो सकती है. जानकारों की राय में रेशम उत्पाद के लिए यूपी में बाजार की कोई कमी नहीं है. अकेले वाराणसी एवं मुबारकपुर से रेशम की सालाना मांग 3000 मीट्रिक टन है. इस मांग की मात्र 1 फीसद आपूर्ति ही यूपी से हो पाती है.
जहां तक रेशम उत्पादन की बात है तो चंदौली, सोनभद्र, ललितपुर और फतेहपुर जिले, टसर उत्पादन के लिए मशहूर हैं. कानपुर शहर, कानपुर देहात, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और फतेहपुर में रेशम की खेती से जुड़ी 'एरी कल्चर' का बोलबाला है. सरकार रेशम की खेती के लिए इन सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अर्जुन का पौधरोपण कराएगी. जिससे इस पर रेशम कीट का भरपूर विकास हो सके.
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