Goat Farming: देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी आय के दूसरे सबसे बड़े स्रोत के तौर पर उभर कर सामने आया है. बेहद कम मेहनत में ही बकरी पालन (Goat Farm) किसानों को काफी अच्छा प्रॉफिट दे रहा है. इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे पशुपालक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो बीते 20 वर्षों से बकरी पालन के व्यापार से जुड़े हुए हैं. लेकिन हर साल उनकी 3 से 4 बकरियां मर जाती हैं. राजधानी लखनऊ के मड़ियांव गांव के रहने वाले रामरूप पेशे से पशुपालक हैं.
किसान तक से बातचीत में रामरूप ने बताया कि वो बीते 20 वर्षों से बकरी पालन से जुडे हुए हैं. वहीं बरसात और ठंड के महीने में उनकी हर साल 3 से 4 बकरियां अचानक मर जाती हैं. उन्होंने बताया बकरी गर्दन ऐंठने लगती हैं और दस्त के बाद खांसी से उनकी मौत हो जाती है. रामरूप के मुताबिक, जबसे बकरी पालन कर रहे हैं तब से 40 से अधिक बकरियों की अचानक मौत हो चुकी है. जब फोन पर किसी डॉक्टर को जानकारी देते हैं, तो कोई इस गांव में पशु चिकित्सालय से स्टाफ नहीं आता है. उन्होंने बताया कि अधिकतर बकरियां बरसात और ठंड में ही मरती हैं, जबकि सर्दी से बचाव के लिए हमने घर में अलाव से लेकर अलग से शेड की व्यवस्था किया है. रामरूप कहते हैं कि वर्तमान में मेरे पास छोड़ी-बड़ी मिलकर 18 से 20 बकरियां है.
इस मामले में उप्र पशुपालन विभाग के पूर्व डायरेक्टर डॉ इंद्रमणि ने बताया कि बकरियों के मरने के पीछे पशुपालक की लापरवाही नजर आ रही हैं, क्योंकि वो बकरियों का गलत इलाज कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बिना किसी पशु चिकित्सक के राय लिए ये किसान खुद बुखार और दस्त की दवा दे रहे है. जबकि उसे 'RR इंजेक्शन' लगवाना चाहिए. डॉ इंद्रमणि ने आगे बताया कि बरसात और सर्दी के मौसम में 'RR इंजेक्शन' बकरियों को वैक्सीनेशन के तौर पर लगाया जाता है, इसकी सिर्फ सरकारी सप्लाई है. फिलहाल मार्केट में यह इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं.डॉ इंद्रमणि ने बताया कि किसी भी पशु चिकित्सालय में यह इंजेक्शन आसानी से मिल जाएगा.
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पशुपालन विभाग के पूर्व डायरेक्टर ने बताया कि गर्भवती बकरियों के लिए अलग से शेड बनाने की सलाह दी जाती है, ताकि बाकी बकरियों की उछल-कूद में गर्भवती बकरी को परेशानी ना हो. गर्भवती बकरी की डाइट का भी खास ख्याल रखना होता है. पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भवती बकरी को स्पेशल खुराक दी जाती है. इसकी डाइट में हरा चारा और 300 से 400 ग्राम दाना भी जोड़ा जाता है, जिससे बकरियां तदुरुस्त बनी रहीं और इनकी आने वाली नस्लें भी अच्छी हो. बकरी कभी-भी एक बार में दाना-पानी नहीं खाती. ये एक बार में अपने पेट नहीं भरती, बल्कि दिन में थोड़ा-थोड़ा लगभग 4 से 5 बार देना होता है. वैसे तो व्यक्तिगत आवश्यकता के लिए बकरियों के दाना पानी पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. ये पत्तियां और घास आदि खाकर काम चला लेती हैं.
बकरी पालन को एक कमर्शियल बिजनेस माना जाता है, जो किसी देश की अर्थव्यवस्था और पोषण में बहुत योगदान देता है. आपको बता दें कि बकरी पालन के बिजनेस के लिए केंद्र सरकार से 35 फीसदी की सब्सिडी मिलती है. वहीं, कई राज्य सरकारें भी इसके लिए सब्सिडी मुहैया कराती हैं. हरियाणा सरकार बकरी पालन के बिजनेस के लिए 90 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है.
अगर आपके पास इस बिजनेस को शुरू करने के लिए पैसे नहीं हैं तो आप बैंक से लोन भी ले सकते हैं. इस बिजनेस के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इसे कम स्थान और कम खर्च में किया जा सकता है. बकरी फार्म गांवों की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होती है. बकरी पालन से दूध, खाद जैसे तमाम लाभ मिलते हैं.
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