इटावा में खुला यूपी का पहला भेड़-बकरी पालन ट्रेनिंग सेंटर, किसानों को मिलेंगी ये ख़ास सुविधाएं

इटावा में खुला यूपी का पहला भेड़-बकरी पालन ट्रेनिंग सेंटर, किसानों को मिलेंगी ये ख़ास सुविधाएं

आने वाले दिनों में भेड़-बकरियों की संख्या बढ़कर 28 फीसदी हो जाएगी. जबकि आनुपातिक रूप से भैंसें और गायें मात्र एक प्रतिशत ही बची हैं. भविष्य में बेरोजगार किसानों के लिए यह आय का सर्वोत्तम साधन होगा. इसका मांस भी महंगा बिकता है और जब लोगों को बीमारी होने पर दूध भी 500 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है. जो लोग बेरोजगार हैं और कम लागत पर व्यवसाय करना चाहते हैं वे भेड़-बकरी पालन कर सकते हैं.

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इटावा में खुला यूपी का पहला भेड़-बकरी पालन ट्रेनिंग सेंटर, किसानों को मिलेंगी ये ख़ास सुविधाएंयूपी के बकरी और भेड़ पालकों को दी जाएगी ट्रेनिंग

जिस तरह से सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात करती है, उसी क्रम में पशुपालन विभाग ने किसानों की आय बढ़ाने और किसी भी प्रकार की कमी न हो इसके लिए उत्तर प्रदेश का पहला भेड़-बकरी प्रशिक्षण केंद्र इटावा में खोला गया है. इस प्रशिक्षण केन्द्र में निःशुल्क आवास एवं भोजन की व्यवस्था के साथ-साथ उन्हें इटावा एवं मथुरा के प्रशिक्षण शिविरों में ले जाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है. 40 किसानों के पहले जत्थे में 10 किसान इटावा जिले के और 30 किसान गोरखपुर, हरदोई, बलरामपुर, उरई, रायबरेली, लखीमपुर, अमेठी, अंबेडकर नगर, सोनभद्र, गोंडा समेत प्रदेश के विभिन्न जिलों से शामिल हुए हैं.

ये सभी किसान भेड़-बकरी पालन का प्रशिक्षण लेकर उनसे अधिक से अधिक दूध का उत्पादन करने के साथ-साथ अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी भेड़-बकरी पालन के प्रति जागरूक कर रहे हैं.

गाय-भैंस से ज्यादा लाभकारी है भेड़-बकरी!

ऐसा माना जाता है कि बकरी के दूध में स्वास्थ्य और बीमारियों से लड़ने के लिए गाय और भैंस की तुलना में अधिक पोषक तत्व होते हैं. साथ ही इनका मांस बिक्री के लिए भी प्रयोग किया जाता है. यदि छोटे बच्चों को खरीदा जाए और दो या तीन साल बाद उन्हें बड़ा करके बेचा जाए तो कई गुना लाभ होता है जो भैंस और गाय में संभव नहीं है. प्रशिक्षण हेतु बरबरी, जमुनापारी एवं ब्लैक गोट बकरी प्रजाति को शामिल किया गया है. गोंडा से प्रशिक्षण लेने आए किसान अनूप कुमार ने बताया कि उन्होंने इटावा के बाद मथुरा से भी प्रशिक्षण लिया है.

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आने वाले दिनों में बढ़ेगी इनकी संख्या

आने वाले दिनों में भेड़-बकरियों की संख्या बढ़कर 28 फीसदी हो जाएगी. जबकि आनुपातिक रूप से भैंसें और गायें मात्र एक प्रतिशत ही बची हैं. भविष्य में बेरोजगार किसानों के लिए यह आय का सर्वोत्तम साधन होगा. इसका मांस भी महंगा बिकता है और जब लोगों को बीमारी होने पर दूध भी 500 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है. जो लोग बेरोजगार हैं और कम लागत पर व्यवसाय करना चाहते हैं वे भेड़-बकरी पालन कर सकते हैं. प्रशिक्षण में बीमारियों के इलाज, भोजन में क्या खिलायें और दूध उत्पादन बढ़ाने की जानकारी मिली. गोरखपुर के निवासी अजीत कुमार सिंह ने बताया कि उन्होंने मथुरा से ट्रेनिंग ली है. वह बकरियों की सभी नस्लों में अनुसंधान से लेकर बीमारियों के निदान तक सब कुछ समझते हैं.

पांच दिनों तक दिया जाएगा प्रशिक्षण

पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है. यह आने वाले समय में किसानों के लिए लाभकारी योजना है. इससे किसानों की बेरोजगारी भी दूर होगी. ब्लैक बंगाल और बरबरी, जखराना बकरियां इटावा और गोरखपुर के जमुनापारी में देखी गई है.

किसानों के लिए खोला गया पहला प्रशिक्षण केंद्र

कानपुर मंडल से आए अपर निदेशक आर.एन. सिंह ने कहा कि पशुपालन विभाग में किसानों के लिए पहला विभागीय प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है. हम जो जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं वह पुराने तरीकों से अलग है.' इसका सर्टिफिकेट बैंक लोन में भी काम आएगा जो अनुभव के तौर पर लोन देगा. हमारे प्रशिक्षण में बीमा दावे और बैंकिंग प्रणाली के बारे में भी बताया जा रहा है. ताकि किसानों को कर्ज लेने में दिक्कत न हो. हम बकरियों में भी एआई कराएंगे जो अब तक सिर्फ गाय-भैंसों में होता है. बरबरी, बेताल, जमुनापारी प्रमुख हैं, ब्लैक बंगाल भी शामिल है, जिसका संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना है.

इन बीमारियों में फायदेमंद है बकरी का दूध

चिकनगुनिया में लाभकारी बकरी के दूध के साथ-साथ अपने आउटलेट खोलकर पनीर, चीज़, पेड़ा बनाने की प्रक्रिया भी सिखानी है. डेंगू की बीमारी में प्लेटें बढ़ाने के लिए बकरी का दूध सबसे उपयोगी है. इससे हृदय रोगियों को भी लाभ मिलता है. जैसे लोग शिकायत करते हैं कि बकरी के दूध में गंध होती है, वैसे ही इसे भी प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि इसमें गंध न आए. औषधीय दृष्टि से बकरी का दूध गाय या भैंस के दूध से अधिक उपयोगी है. मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. मनोज गुप्ता, जो प्रशिक्षण केंद्र के प्राचार्य भी हैं, ने बताया कि पशुपालन में भेड़ों की संरचना से लेकर उनकी बीमारियों से बचाव तक का प्रशिक्षण दिया जाता है. एलडीएम द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, जिससे किसानों को ऋण लेने में कोई परेशानी नहीं होगी.

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