बकरी अब गरीबों की गाय नहीं रही है. बकरी अब एटीएम बन चुकी है. यही वजह है कि कक्षा आठ पास से लेकर बीटेक, पीएचडी और एमबीए कर चुके लोग बकरी पालन की ट्रेनिंग ले रहे हैं. इतना ही नहीं आर्मी में अफसर रह चुके और सिविल सर्विस से रिटायर अफसर भी बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के 756 एकड़ में फैले केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), फरह, मथुरा आते हैं. ट्रेनिंग के दौरान सीआईआरजी में भेड़-बकरी को कैसे पालना है. कितनी उम्र पर कौनसा और कितना चारा देना है. बीमारी से बचाने के लिए कब-कौन से टीके लगने हैं.
मौसम के हिसाब से बकरियों का शेड कैसा हो. कैसे बकरी का मिल्क-मीट प्रोडक्शन बढ़ेगा, ये सब ट्रेनिंग का हिस्सा हैं. भेड़-बकरी पालन की फील्ड ट्रेनिंग देने के लिए बरबरी, जमनापारी, जखराना नस्ल के बकरे-बकरी और मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ रखी गई हैं. भेड़-बकरी के ब्रीड पर भी यहां काम होता है.
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सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली ने किसान तक को बताया कि हमारा संस्थान 756 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है. 44 साल पुराना यह संस्थान मखूदम गांव में फरह, मथुरा में स्थित है. यहां बरबरी, जमनापारी, जखराना नस्ल के बकरे-बकरी और मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ पालन की ट्रेनिंग दी जाती है. हमारे संस्थान में तीनों ही नस्ल के बकरे-बकरी के साथ ही भेड़ भी मौजूद है. समय-समय पर भेड़-बकरी पर रिसर्च भी होती रहती है. भेड़-बकरी पालन की अलग-अलग बैच बनाकर ट्रेनिंग भी दी जाती है. हमारी बेवसाइट पर इसकी पूरी जानकारी दी जाती है.
मनीष कुमार चेटली ने बताया कि हमारे संस्थान में चार डिवीजन है. यह सभी डिवीजन मिलकर भेड़-बकरी पालन की ट्रेनिंग देती हैं. एनीमल जेनेटिक ब्रीडिंग, न्यूट्रीशन और प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी, एनीमल हैल्थ और फिजियोलॉजी एंड रीप्रोडक्शन डिवीजन. इसमे से एनीमल जेनेटिक ब्रीडिंग डिवीजन भेड़-बकरी की नस्ल सुधार पर काम करती है. न्यूट्रीशन और प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी डिवीजन भेड़-बकरी के चारे और उनसे मिलने वाले दूध, मीट, ऊन और फाइबर आदि पर काम करती है. एनीमल हैल्थ डिवीजन बकरियों की बीमारी के समाधान और रोकथाम पर काम करती है. जबकि फिजियोलॉजी एंड रीप्रोडक्शडन डिवीजन भेड़-बकरियों की संख्या बढ़ाने पर काम करती है. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक की मदद से भेड़-बकरियों का कुनबा बढ़ाने की कोशिश होती है.
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सीआईआरजी में भेड़-बकरी पालन की साइंटीफिक ट्रेनिंग देने के साथ ही यहां पीएचडी (रिसर्च स्कॉलर) और पीजी के छात्र-छात्राओं को पढ़ाई भी कराई जाती है. इसके लिए कई यूनिवर्सिटी ने सीआईआरजी के साथ समझौता किया हुआ है. इसमे मथुरा की यूनिवर्सिटी भी शामिल है. विदेशों से डिमांड आने पर उन्हें अच्छी नस्ल के बकरे और बकरी भी उपलब्ध कराए जाते हैं. वहीं विभिन्न कार्यक्रम के तहत पशुपालकों की समय-समय पर मदद की जाती है.
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