गायों को भूलकर भी ना खिलाएं खीर-पूरी और हलवा, एसिडोसिस और अफारा रोग का होगा खतरा

गायों को भूलकर भी ना खिलाएं खीर-पूरी और हलवा, एसिडोसिस और अफारा रोग का होगा खतरा

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जय प्रकाश ने पशुपालकों को गायों को होने वाली इन समस्याओं के बारे में बताते हुए कहा है कि अमावस्या के दिन गायों को विशेष रूप से खीर, पूड़ी, हलवा, रोटी आदि पकवान अधिक मात्रा में खिलाए जाते हैं..इन चीजों के अधिक सेवन से पशुओं में एसिडोसिस हो जाता है. इतना ही नहीं, पशु बेचैन हो जाता है और उसे सांस लेने में परेशानी होती है, ऐसी स्थिति में पशु के बचने की संभावना बहुत कम होती है.

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गायों को भूलकर भी ना खिलाएं खीर-पूरी और हलवा, एसिडोसिस और अफारा रोग का होगा खतरागायों में अफारा रोग के कारण और बचाव

देश में गाय को माता का दर्जा दिया गया है. यहां किसी भी शुभ कार्य से पहले गाय की पूजा की जाती है. इतना ही नहीं घर को शुद्ध करने के लिए घर को गाय के गोबर से धोया जाता है. पूजा में भी गाय के गोबर का विशेष महत्व है. शायद यही वजह है कि लोग खुद के साथ-साथ गायों को भी स्वादिष्ट खाना खिलाना पसंद करते हैं. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि जानवरों का पाचन तंत्र इंसानों जितना मजबूत नहीं होता है. जिसके कारण गायों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खासकर पूजा के दौरान लोग गाय को खीर-पूरी और हलवा भी खिलाते हैं. जिसके कारण गायों को एसिडोसिस और अफारा रोग से जूझना पड़ता है.

क्यों गायों को होता है अफारा रोग?

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जय प्रकाश ने पशुपालकों को गायों को होने वाली इन समस्याओं के बारे में बताते हुए कहा है कि अमावस्या के दिन गायों को विशेष रूप से खीर, पूड़ी, हलवा, रोटी आदि पकवान अधिक मात्रा में खिलाए जाते हैं..इन चीजों के अधिक सेवन से पशुओं में एसिडोसिस हो जाता है. इतना ही नहीं, पशु बेचैन हो जाता है और उसे सांस लेने में परेशानी होती है, ऐसी स्थिति में पशु के बचने की संभावना बहुत कम होती है. डॉ. जय प्रकाश ने कहा कि ऐसी स्थिति में पुण्य के लिए किया गया कार्य पाप का भागीदार बन जाता है. उन्होंने क्षेत्र के लोगों से आग्रह किया कि वे दान स्वरूप गायों का भोजन ही गायों को खिलाएं. उन्होंने कहा कि इस दिन गायों को हरा चारा खिलाएं, यही उनके लिए सर्वोत्तम आहार है और यही सच्चे अर्थों में दान का कार्य होगा.

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क्या है अफारा रोग?

अफारा रोग पशुओं में होने वाली एक सामान्य एवं अचानक होने वाली बीमारी है. पशुओं में यह रोग अधिक खाने या दूषित भोजन के कारण होता है. इस रोग में पशु के पेट में एसिडिटी और अमोनिया, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी दूषित गैसें बन जाती हैं. इस गैस का दबाव छाती पर पड़ता है और पशु को सांस लेने में दिक्कत होती है. इससे पशु बेचैन हो जाता है और एक तरफ बैठ या लेट जाता है. पैर पटकने लगता है. यदि इस स्थिति का तुरंत इलाज न किया जाए तो पशु कुछ ही घंटों में मर जाता है.

अफारा रोग के लक्षण

अफारा रोग पशुओं में होने वाली एक सामान्य एवं अचानक होने वाली बीमारी है. पशुओं में यह रोग अधिक खाने या दूषित भोजन के कारण होता है. इस रोग में पशु के पेट में एसिडिटी और अमोनिया, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी दूषित गैसें बन जाती हैं. इस गैस का दबाव छाती पर पड़ता है और पशु को सांस लेने में दिक्कत होती है. इससे पशु बेचैन हो जाता है और एक तरफ बैठ या लेट जाता है. पैर पटकने लगता है. यदि इस स्थिति का तुरंत इलाज न किया जाए तो पशु कुछ ही घंटों में मर जाता है.

बीमारी के कारण होने वाली समस्याएँ

  • इस बीमारी में पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है. 
  • पशु जुगाली करना बंद कर देते हैं. 
  • पशु का पेट बायीं ओर अधिक सूज जाता है. 
  • खाना और पानी पीना बंद कर दें. 
  • इस बीमारी के चपेट में आने के बाद पशु ज़मीन पर लेटना और पैर पटकना शुरू कर देते हैं. 
  • पशु के फूले हुए पेट पर धीरे-धीरे ड्रम जैसी डब डब की ध्वनि निकलने लग जाती है.

क्या है अफारा रोग का इलाज?

इस रोग से बचाने के लिए पशुओं को दूषित चारा, दाना, भूसा व पानी न दें. हरे चारे जैसे बरसीम ज्वार, राजका बाजरा की कटाई के बाद उसे कुछ देर के लिए छोड़ दें और फिर खिलाएं. जानवर को लगातार खाना न खिलाएं. कम से कम 20 मिनट का अंतराल रखें. हरा चारा पूरी तरह पकने के बाद ही खिलाएं. पशु के आहार में अचानक परिवर्तन न करें. मौसम को देखते हुए पशुओं के खान-पान का ख्याल रखें.

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