Walnut Plant दुनियाभर में खाए जाने वाले अखरोट की भारत में भी बड़े पैमाने पर खेती होती है. देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहां का वातावरण अखरोट की खेती को सपोर्ट करता है. इसमे जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश प्रमुख हैं. लेकिन मदर प्लांट और फल देने वाले पेड़ों के लिए इनके पास भी जमीन की एक लिमिट है. यही वजह है कि अखरोट की बागवानी के लिए अब मदर प्लांट अरुणाचल प्रदेश में तैयार होंगे और फल वो जम्मू-कश्मीर में देंगे. गौरतलब रहे अखरोट का पेड़ एक लम्बे वक्त के बाद फल देता है.
और खास बात ये है कि जितनी इसकी उम्र बढ़ती है उसके साथ ही फल की पैदावार भी बढ़ती जाती है. पेड़ की उम्र भी बहुत लम्बी होती है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ टेंपरेट हॉर्टिकल्चर (सीआईटीएच), जम्मू-कश्मीर के साइंटिस्ट का कहना है कि अखरोट देने वाले पुराने पेड़ों की खूब देखभाल होती है. उस वक्त भी जब वो फल दे रहे हों या नहीं. वहीं जम्मू-कश्मीर में अखरोट के पेड़ काटने पर बैन है.
डॉ. वसीम का कहना है कि कश्मीरी अखरोट को बढ़ावा देने के लिए जायका योजना चलाई जा रही है. योजना में उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश भी शामिल हैं. अखरोट की सभी तरह की किस्म के करीब 40 हजार पौधे अकेले उत्तराखंड में अभी तक लगाए जा चुके हैं. वहां की सरकार भी चाहती है कि उनके यहां का ज्यादा से ज्यादा वन क्षेत्र इस्तेमाल हो. डॉ. वसीम का कहना है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड कश्मीरी अखरोट का एक बड़ा बाजार बनेगा.
सीआईटीएच के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. वसीम हसन राजा के मुताबिक अखरोट का एक पेड़ अपनी उम्र के हिसाब से फल देता है. पेड़ जितना पुराना होगा उतने ही ज्यादा वो फल देगा. जैसे 10 साल पुराना अखरोट का पेड़ 20 से 25 किलो तक फल देता है. वहीं 20 साल पुराना पेड़ 30 से 40 किलो तक अखरोट देता है. जबकि 30 साल का हो जाने के बाद एक पेड़ 50 से 70 किलो तक अखरोट देने लगता है. एक पेड़ की उम्र 100 से 150 किलो तक होती है. कुछ पेड़ 200 साल की उम्र को भी पार कर जाते हैं. लेकिन 30 साल की उम्र के बाद पेड़ कितना फल देगा यह निश्चित नहीं रहता है. एक पेड़ से अखरोट का उत्पादन 100 किलो तक भी पहुंच जाता है. वर्ना कम से कम 70 से 80 किलो तक तो देता ही है.
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