Bakrid: बकरीद के लिए खरीदे जा रहे बकरों में हैं ये दो बीमारी तो खाने वालों को भी कर देगा बीमार

Bakrid: बकरीद के लिए खरीदे जा रहे बकरों में हैं ये दो बीमारी तो खाने वालों को भी कर देगा बीमार

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के मुताबिक ब्रुसेलोसिस, जोहनीज (जेडी), खुरपका-मुंहपका, बकरी की चेचक, बकरी की प्लेग जैसी बीमारियों से बकरों को बचाया जा सकता है. जरूरत बस वक्त रहते अलर्ट होकर बकरों का वैक्सीनेशन कराने की है. वर्ना जरा सी लापरवाही बकरे का मीट खाने वाले पर भारी पड़ सकती है. 

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Bakrid: बकरीद के लिए खरीदे जा रहे बकरों में हैं ये दो बीमारी तो खाने वालों को भी कर देगा बीमारसीआईआरजी में चारा खाते ब्रीडर बकरे. फोटो क्रेडिट-किसान तक

गाय-भैंस के मुकाबले बकरे-बकरियों की इम्यूनिटी बहुत हार्ड मानी जाती है. इसे ऐसे भी जान सकते हैं कि गाय-भैंस को कोई भी बीमारी जल्दी लग जाती है, जबकि बकरे-बकरियों को बीमारियां देर से लगती हैं. लेकिन बकरों में होने वाली कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो इंसानों के लिए भी नुकसानदायक हैं. अगर बकरों को ये बीमारी हो जाती हैं और इंसान उस बकरे का मीट खा लेते हैं तो उन्हें भी परेशानी होने लगती है. हालांकि गोट एक्सपर्ट की मानें तो बीमारियों के जोखि‍म को वक्त रहते कराए गए वैक्सीनेशन से खत्म और कंट्रोल किया जा सकता है. 

इतना ही नहीं बीमारी के लक्षणों की वक्त रहते पहचान कर इलाज भी कराया जा सकता है. यही वजह है कि गोट एक्सपर्ट ये सलाह देते हैं कि बकरीद के लिए बकरा खरीदते वक्त बेचने वाले से वैक्सीनेशन के बारे में जानकारी जरूर करें. क्योंकि अगर एक साल की उम्र वाला बकरा खरीदा जा रहा है तो ये तय मान लें कि इस उम्र तक सभी तरह का वैक्सीनेशन हो जाना चाहिए. 

ये दो बीमारियां हों तो बकरे को गड्डे में दफना दें 

गोट एक्सपर्ट का कहना है कि बकरीद पर बकरों की कुर्बानी दी जाती है. फिर उसी बकरे का मीट सभी को बांटा जाता है. कुर्बानी देने वाला भी उस बकरे का मीट खाता है. इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि बकरे को पूरी तरह जांच-परख के बाद ही खरीदा जाए. खासतौर से बकरे के बारे में ये जरूर पता कर लें कि बकरे को ब्रुसेलोसिस और जोहनीज (जेडी) का टीका लगा है या नहीं. दोनों बीमारियों से जुड़ी जांच कराई गई है या नहीं. क्योंकि अगर एक बार ब्रुसेलोसिस बीमारी बकरे को हो गई तो फिर उसे गड्डे में दफना जरूरी हो जाता है. 

अगर ब्रुसेलोसिस की बात करें तो हर छह महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराएं. जो पशु संक्रमित हो चुका है उसे गहरे गड्डे में दफना दें. वहीं जोहनीज बीमारी के बारे में भी हर छह महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराएं. बकरा अगर संक्रमित हो चुका है तो फौरन ही उसे झुंड से अलग कर दें. 

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