मुर्गियां क्यों खाती हैं अपने अंडेProtein-Egg सुनकर बड़़ा अजीब लगेगा कि मुर्गियों को इंसानों के हिसाब से तैयार किया जा रहा है. रिसर्च की मदद से मुर्गियां जेनेटिकली डिजाइन की गई है. अगर ये कहा जाए कि मुर्गियों को मॉडिफाई किया जा रहा है तो ये कहना भी गलत नहीं होगा. इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) की संस्थाएं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एनिमल न्यूट्रिशन एंड फिजियोलॉजी (NIANP), बेंगलुरु इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) के साइंटिस्ट ट्रांसजेनिक मुर्गियां (जेनेटिकली मॉडिफाई) मुर्गियां तैयार कर रहे हैं. खासतौर पर तैयार की जा रहीं इन मुर्गियों में ल्यूकेमिया इंहिबिटरी फैक्टर (LIF) नाम का एक मानव जीन है.
इस रिसर्च का मकसद मुर्गियों से खासतौर पर इंसानी बॉडी में पाए जाने वाले प्रोटीन को उनके अंडों के अंदर प्राकृतिक रूप से बनवाना है. साइंटिस्ट का कहना है कि जेनेटिकली डिजाइन की गई मुर्गियों को इस तरह के जेनेटिक काम के लिए खास माना जाता है. क्योंकि मुर्गियां जल्दी प्रजनन करती हैं और लगभग रोजाना ही एक अंडा देती हैं. सामान्य भाषा में ऐसा भी कहा जाता है कि साइंटिस्ट ने रिसर्च की मदद से मुर्गियों को उनके अंडों के अंदर इंसानी प्रोटीन बनाने के लिए तैयार किया है.
NIANP के डायरेक्टर आर्टाबंधु साहू का कहना है कि ल्यूकेमिया इंहिबिटरी फैक्टर (LIF) नाम का एक मानव जीन होता है. बायो मेडिकल LIF जैसे चिकित्सीय प्रोटीन का इस्तेमाल प्रयोगशालाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है. खासकर ये प्रोटीन स्टेम सेल को विकसित करने के लिए जैसे, भ्रूण और रक्त, जननांग रिज, गोनाड से प्राइमोर्डियल जर्म कोशिकाओं (PGCS) की कटाई ट्रांसजेनिक चिकन बनाने के लिए बैक और फॉरवर्ड क्रॉसिंग जो पीढ़ियों से बायोसिमिलर का उत्पादन करते हैं.
ट्रांसजीन वाली जर्म सेल के साथ पैदा हुए चूजे में प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल शामिल हैं, जो बीमारियों पर रिसर्च, रीजेनरेटिव मेडिसिन और दवा विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. फिलहाल, ऐसे प्रोटीन आमतौर पर विशेष बायो-रिएक्टर में उगाए गए रोगाणुओं का उपयोग करके बनाए जाते हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो महंगी है और इसके लिए जटिल बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है. दुनिया भर के वैज्ञानिक यह पता लगा रहे हैं कि क्या इन प्रोटीन को बनाने के लिए जानवरों या पौधों का इस्तेमाल "जीवित कारखानों" के रूप में किया जा सकता है.
आर्टाबंधु साहू का कहना है कि मुर्गियों को इस तरह के जेनेटिक काम के लिए खासतौर से उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि ये जल्दी प्रजनन करती हैं और लगभग रोजाना अंडे देती हैं. एक अंडे में मिलीग्राम मात्रा में थेराप्यूटिक प्रोटीन हो सकते हैं, और एक लेयर मुर्गी अपनी प्रोडक्टिव लाइफ टाइम में लगभग 520 अंडे तक दे सकती है. इसीलिए बिना महंगे इंडस्ट्रियल इक्विपमेंट के बेसिक पोल्ट्री-पालन सुविधाओं का इस्तेमाल करके बड़ी मात्रा में प्रोटीन का उत्पादन किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि अंडों के और भी फायदे हैं. अंडे के अंदर का प्रोटीन एनवायरनमेंट पौधों के सोर्स की तुलना में काफी आसान होता है, जिससे प्यूरिफिकेशन आसान हो जाता है. स्टडीज़ से पता चलता है कि अंडों में बनने वाले प्रोटीन एयर-कंडीशन्ड तापमान पर महीनों तक स्टेबल रहते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अंडे से बने थेराप्यूटिक प्रोडक्ट्स को इंसानों के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित पाया है.
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