Goat Farming: सर्दी में बकरियों को बीमारी से बचाने के लिए बनाएं ऐसा शेड, जानें डिटेल

Goat Farming: सर्दी में बकरियों को बीमारी से बचाने के लिए बनाएं ऐसा शेड, जानें डिटेल

सर्दी ही नहीं बरसात के मौसम में अगर पशुओं के बाड़े में थोड़ा सा भी पानी भर जाए तो उन्हें पूरी रात खड़े-खड़े गुजारनी पड़ती है. पानी जमा होने से बाड़े में बीमारी फैलने का खतरा भी बना रहता है. बारिश के मौसम में डायरिया, खुरपका-मुंहपका और पेट के कीड़ों जैसी तमाम बीमारी होने का खतरा बना रहता है.

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Goat Farming: सर्दी में बकरियों को बीमारी से बचाने के लिए बनाएं ऐसा शेड, जानें डिटेलसीआईआरजी द्वारा तैयार किया गया प्लास्ट‍िक शेड. फोटो क्रेडिट- किसान तक

बकरियों के शेड में मौसम के हिसाब से बदलाव होता रहे तो उनकी उत्पादन क्षमता बनी रहती है. खासतौर पर बरसात और सर्दियों के मौसम में शेड में बदलाव करना जरूरी हो जाता है. सर्दी के मौसम में जमीन की ठंडक और बकरियों का यूरिन बहुत ज्यादा खतरनाक हो जाता है. इसके चलते बकरियों में जानलेवा निमोनिया हो जाता है. बकरियों को इन्हीं सब परेशानियों से बचाने के लिए बाजार में प्लास्टिक के रेडीमेड मकान मिल रहे हैं. ये दो मंजिला मकान हैं. पहली मंजिल पर बड़ी बकरियों को रखने के साथ ही दूसरी मंजिल पर बकरियों के छोटे बच्चों को रखा जा सकता है. 

इतना ही नहीं कम जगह होने पर बकरी पालन के लिए भी रेडीमेड मकान बहुत ही कारगर हैं. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने बकरी पालन में जगह की कमी को दूर करने के लिए ये दो मंजिला मकान बनाया है. एक बार बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाते हैं. 

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सर्दियों में सबसे ज्यादा बकरियों के बच्चों को होती है परेशानी

सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि दो मंजिला मकान से जगह की कमी और बचत तो होती ही है, साथ में इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बच जाते हैं. वो बीमारियां जिन पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है. इस तरह के मकान में नीचे बड़ी बकरियां रखी जाती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चे रखे जाते हैं. ऊपरी मंजिल पर रहने के चलते बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं तो इससे वो मिट्टी खाने से भी बच जाते हैं. वर्ना छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं तो इससे उनके पेट में कीड़े हो जाते हैं. 

मेंगनी-यूरिन के संपर्क में नहीं आते छोटे बच्चें 

डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि बकरियों के लिए बनने वाले प्लास्टिक के इस दो मंजिला मकान में ऊपरी मंजिल की मेंगनी और बच्चों का यूरिन नीचे बड़ी बकरियों पर न गिरे इसके लिए बीच में प्लास्टिक की एक शीट लगाई जाती है. शीट की इस छत का ढलान इस तरह से दिया जाता है कि यूरिन और मेंगनी मकान के किनारे की ओर गिरती हैं. दो मंजिला मकान के इस मॉडल में बकरी की मेंगनी सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आती है. जिससे मेंगनी पर मिट्टी नहीं लगती है और उसकी खाद बनाने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है. और इस तरह से मेंगनी के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.  

प्लास्टिक के मकान में चारे की भी होती है बचत 

डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि रेडीमेड मकान का दूसरा पहलू यह भी है कि बकरियों के शेड में बहुत सारा चारा जमीन पर गिर जाता है. जिसके चलते चारे पर बकरी का यूरिन और मेंगनी (मैन्योर) भी लग जाता है. बकरी या उनके बच्चे  जब इस चारे को खाते हैं तो इससे भी वो बीमार पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं अगर जमीन कच्ची नहीं है तो यूरिन से उठने वाली गैस से भी बकरी और उनके बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. 

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1.80 लाख रुपये में तैयार होता है दो मंजिला मकान 

डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि एक बड़ी बकरी को डेढ़  स्क्वायर मीटर जगह की जरूरत होती है. हमने दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा है. इस मॉडल मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी रख सकते हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रख सकते हैं. और इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये आती है. इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में आसानी से मिल जाती है. रहा सवाल ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श का तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बना रही हैं और आनलाइन मिल भी रहा है.   

 

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