मुर्गीपालन आज किसानों की आय का एक प्रमुख जरिया बन गया है. किसान अपने आंगन में मुर्गीपालन करते हैं जो उनकी आय में इजाफा करने में मददगार होता है. मुर्गीपालन किसानों के लिए आय का वह विकल्प है जिसमें कम निवेश ज्यादा आय हासिल हो सकती है. ज्यादातर गांवों में मुर्गीपालन इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि उनसे मांस कम मिले और अंडे ज्यादा मिले. इसके लिए किसान देसी नस्ल की मुगर्यिों को पालते हैं. आज उस नस्ल के बारे में जानिए जो आपको दोहरा फायदा पहुंचा सकती है.
किसानों की आय बढ़ती रहे और उन्हें मुर्गीपालन में सफलता मिले इसके लिए रेनबो रोस्टर नस्ल को बेहतर माना गया है. विशेषज्ञों की मानें तो अंडे के उत्पादन के अलावा यह नस्ल शरीर के वजन में भी अच्छी होती है. रेनबो रोस्टर में एक व्यस्क मुर्गी का वजन 2.4 से 2.6 किलोग्राम तक होता है. यह हर साल औसतन 120 अंडों का उत्पादन करती है. किसी लोकल मुर्गी की तुलना में यह काफी ज्यादा परिपक्व होती है. एक स्थानीय मुर्गी के शरीर का वजन 1.2 से 1.5 किलोग्राम तक ही होता है और हर साल वह बस 50 से 60 अंडे ही दे सकती है.
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विशेषज्ञों की मानें तो मुर्गीपालन के लिए हमेशा ऐसी मुर्गियों को चुनना चाहिए जो ज्यादा और बड़े अंडे देने वाली हों. कई क्षेत्रों में अधिकांश आदिवासी परिवारों की तरफ से स्थायी आय के लिए घर के आंगन में मुर्गीपालन एक प्रोडक्शन बिजनेस के तौर पर देखा जाता है. वहीं ज्यादातर किसान देसी नस्लों को पालने में यकीन करते हैं. ये नस्लें अंडें और मांस के उत्पादन में कमजोर होती हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि किसानों की आय में इजाफा हो, उन्नत नस्ल की शुरुआत की गई.
यह नस्ल उन्नत है और एक साथ दो लक्ष्यों को हासिल करने में सफल है. रेनबो रोस्टर स्थानीय मुर्गीपालन की तुलना में ज्यादा उत्पादन दिया. छ महीने के बाद वयस्क मुर्गी का वजन 1.5 किलोग्राम हो गया. वहीं एक वनराज मुर्गी हर साल औसतन 150 अंडों का उत्पादन कर पाई. जबकि स्थानीय नस्ल में हर साल 60 अंडों का ही उत्पादन होता है.
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