भारत के ग्रामीण परिवेश में पशुपालक मुर्गी और बत्तख तो खूब पालते हैं. ऐसे पशुपालकों को बटेर पालन में हाथ आजमाना चाहिए क्योंकि इसे पालने में मुर्गी और बत्तख की अपेक्षा कम परेशानी और कम लागत आती है. भारत में इन दिनों इस पक्षी का पालन काफी तेजी से व्यवसाय के रूप में उभर रहा है. देश में बटेर का जिक्र प्राचीन इतिहास से रहा है. इसके मांस कई गुणों से भरपूर और काफी स्वादिष्ट होता है. बटेर एक जंगली पक्षी होता है. जिसे आसानी से पिंजरा पद्धति में भी पाला जा सकता है. वहीं बाजारों में इसके मांस की काफी डिमांड होती है. बटेर के मांस की अत्यधिक मांग होने के कारण बटेर पालन से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें बटेर पालन और किन बातों का रखें ध्यान.
बटेर का नाम आपने सुना होगा. यह मुर्गी की प्रजाति की एक पक्षी होती है. जापान और ब्रिटेन में मांस और अंडे के लिए बड़े पैमाने पर इस पक्षी का पालन किया जाता है. बटेर पालन को भारत में किसान तेजी से अपना रहे हैं क्योंकि इसका आकार छोटा होता है और कम जगह में भी इसका पालन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, बटेर पालन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह केवल पांच सप्ताह में ही ये बेचने के लिए तैयार हो जाती है. इनमें परिपक्वता जल्दी आती है और 6-7 सप्ताह में अंडे देना शुरू कर देते हैं. इनमें अंडे देने की काफी अधिक क्षमता होती है. एक बटेर एक साल में 280 अंडे तक देती है. वहीं, चिकन की तुलना में इसका मांस अधिक स्वादिष्ट होता है.
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बटेर को देसी मुर्गी की तरह पाला जा सकता है. इसके लिए आप खुली सेड बना सकते हैं. वहीं 10 फिट लंबी और 10 फीट चौड़ी जगह में 50 से 100 चूजों को आसानी से पाला जा सकता है. इसे पालने के लिए ग्रामीण परिवेश ज्यादा अच्छा होता है. इनके रहने वाले जगहों को हमेशा साफ करना चाहिए और अगर उनके आवास के पास हरे पेड़ हो तो वह सोने पर सुहागा है. उनके उत्पादन के लिए 2 से 2.5 किलो आहार की जरुरत होती है. उनको मुर्गियों के दाने वाले फीड भी खिला सकते हैं. एक बटेर को लगभग प्रतिदिन 20-35 ग्राम आहार की जरुरत होती है. वहीं उनको हमेशा ताजा पानी ही पिलाना चाहिए.
पूरी दुनिया में बटेर के लगभग 18 नस्लें पाई जाती है. जिसमें जापानी बटेर भारत में सबसे अधिक पाला जाता है. मांस उत्पादन के मामले में बोल व्हाइट बटेर को अच्छा माना जाता है. व्हाइट बेस्टेड भारतीय प्रजाति का ब्रायलर बटेर है. इस नस्ल में भी मांस उत्पादकता अच्छी है. वहीं, अधिक अंडा देने वाली नस्लों में ब्रिटिश रेंज, इंग्लिश व्हाइट, मंचूरियन गोलन, फिरौन और टक्सेडो आदि हैं.
1. बटेर जल्दी परिपक्व हो जाती हैं. मादा बटेर 6 से 7 सप्ताह में ही अंडे देना शुरू कर देती हैं. नर बटेर 5 सप्ताह के बाद ही बेचने लायक हो जाते हैं.
2. मादा बटेर एक वर्ष में लगभग 200-250 तक अंडे दे देती है.
3. बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण इसे किसी भी प्रकार का टीका नहीं लगाया जाता है.
4. बटेर के अंडे और मांस में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा और खनिज की प्रचुर मात्रा होती है.
5. मुर्गी के मांस की तुलना में बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है. वसा की मात्रा भी कम होती है. इससे मोटापा नियंत्रण में मदद मिलती है.
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