पशुओं के घर की लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में क्यों रखनी चाहिए, जानिए इसका वैज्ञानिक कारण

पशुओं के घर की लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में क्यों रखनी चाहिए, जानिए इसका वैज्ञानिक कारण

पशु वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि पशुपालक आमतौर पर पशु पोषण, चिकित्सा एवं प्रजनन पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन आवास व्यवस्था को नजरअंदाज कर देते हैं. उचित आवास न होने से पशुओं के उत्पादन एवं वृद्धि पर कुप्रभाव पड़ता है तथा संक्रामक बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. 

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पशुओं के घर की लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में क्यों रखनी चाहिए, जानिए इसका वैज्ञानिक कारणजानिए पशुओं के लिए घर कैसे होने चाहिए

अच्छे रखरखाव के ल‍िए स‍िर्फ पशुओं का खानपान ही बढ़‍िया नहीं होना चाह‍िए बल्क‍ि उनका रहन-सहन भी अच्छा होना चाह‍िए. पशु के आवास की लंबाई उत्तर-दक्षिण में रखना चाहिए, जिससे पुरवा तथा पछुवा दोनों हवाओं का लाभ गर्मियों में पशुओं को मिल सके. सर्दी के मौसम में कुछ को छोड़कर अतिरिक्त खिड़कियों एवं दरवाजों को बन्द कर देना चाहिए जिससे पशुओं को सीधी सर्द हवा से बचाया जा सके. छत किसी भी सस्ते तथा स्थानीय सामग्री से बनायी जा सकती है जिसका उद्देश्य पशु के आस-पास का तापमान 25 से 32 ड‍िग्री सेल्स‍ियस बनाए रखा जा सके. इसके लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊंचे छायेदार वृक्ष लगाये जा सकते हैं. 

पशु वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि पशुपालक आमतौर पर पशु पोषण, चिकित्सा एवं प्रजनन पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन आवास व्यवस्था को नजरअंदाज कर देते हैं. उचित आवास न होने से पशुओं के उत्पादन एवं वृद्धि पर कुप्रभाव पड़ता है तथा संक्रामक बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. अधिक गर्मी एवं सर्दी में पशु अपनी ऊर्जा का प्रयोग वातावरण से जूझने में करता है. जिससे उसकी वृद्धि दर एवं उत्पादकता दोनों प्रभावित होती है. उचित आवास हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए. 

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पशु आवासा के ल‍िए इन बातों का रखें ध्यान 

हमारे यहां पशुओं को आमतौर पर बांध कर पाला जाता है. कुछ समय के लिए सुविधानुसार चराने के लिए खोला जाता है. इसल‍िए पशु गृह को ऊंचे स्थान पर बनाना चाहिए जहां जल निकास की समुचित व्यवस्था हो. छत की ऊंचाई 2.5 मीटर से कम नहीं रखनी चाहिए जिससे ग्रीष्मकाल में छत की गर्मी पशुओं को प्रभावित न कर सके. याद रखें, यदि पशुशाला का तापमान 40 ड‍िग्री सेल्स‍ियस से ऊपर चला जाता है तो पशु मद में नहीं आएगा. इसलिए अधिक गर्मी के मौसम में पशुशाला की छत अगर पक्की हो तो उसके ऊपर घास-फूस, पराली आदि डालकर पानी का छिड़काव कर सकते हैं. 

  •  फर्श कठोर, फिसलन रहित तथा पानी न सोखने वाला होना चाहिए.  सर्दी में फर्श पर धान की पुआल बिछाना चाहिए जिससे फर्श की ठंढक पशु को नुकसान न पहुंचा सके. 
  • कुछ लोग गर्मियों में, रात में पशुओं को बाहर तथा दिन में वृक्ष की छाया अथवा घर में जहां हवा का अवागमन ठीक हो वहां रख सकते हैं यह भी एक आरामदेय, सरल एवं सही तरीका है. 
  • पशु गृह में लगभग 2.50-4.0 वर्ग मीटर छाया तथा 7-8 वर्ग मीटर खुले स्थान की आवश्यकता प्रति वयस्क गाय या भैंस को होती है.  बढ़ते जानवरों को आवश्यकतानुसार इसका आधा अथवा दो तिहाई जगह चाहिए.  जो पशु दिन में चरने जाते है उन्हें यह खुला स्थान आवश्यक नहीं है. 
  • नाद की लम्बाई लगभग 90 से.मी., चौड़ाई 50 से.मी. तथा गहराई 30-40 से.मी. रखनी चाहिए.  जमीन से नाद की ऊंचाई 80 से 85 से.मी. होनी चाहिए.  छोटी उम्र के पशुओं में कम तथा सांड़ो के लिए यह नाप अधिक होनी चाहिए. 
  • खड़े होने के स्थान के पीछे 35 से.मी. चौड़ी एक नाली होनी चाहिए.  फर्श तथा नाली का ढाल 2.5 से.मी. रखना चाहिए.  पानी कहीं रूकना नहीं चाहिए साथ ही साथ गोबर एवं मूत्र का निकास भी आसानी से होना चाहिए. 
  • पशु के रहने के स्थान की सफाई का ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है.  पशुशाला आरामदेय हो, साफ हो और रोशनी का बन्दोबस्त हो.  समस्त पशु आवास को समय-समय पर जीवाणु रहित करते रहना चाहिए जिससे बीमारी फैलाने वाले जीवाणु घर न बना सकें. 
  • पशुओं को नहलाने की अलग से व्यवस्था होनी चाहिए. पशुओं को नित्य नहलाने व खरेरा करने से रक्त संचार में वृद्धि एवं शरीर से धूल, टूटे बाल और त्वचा से निकले मल की सफाई होती है.  साथ ही त्वचा से जूँ व अन्य परजीवियों को हटाया जा सकता है.  दुधारू पशुओं को ग्रीष्मकाल में दो बार (सुबह-शाम) स्नान कराने से दुग्ध उत्पादन में 5 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है. 
  • बीमार एवं संक्रमित पशुओं को अलग रखने की व्यवस्था करनी चाहिए. अन्य तरह के पशुपालन जैसे मुर्गी, भेड़-बकरी, सूकर इत्यादि पशुगृह से दूर होना चाहिए.

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