किसी भी भेड़-बकरी पालन करने वाले के लिए बकरीद का त्यौ)हार सीजन के रूप में भी आता है. ये वो मौका होता है जब पशुपालक सालभर का मुनाफा कमाता है. इस मौके पर 12 हजार रुपये से लेकर एक-सवा लाख रुपये तक का बकरा बिक जाता है. अगर बकरा तंदरुस्त और खूबसूरत है तो उसके मुंह मांगे दाम मिल जाते हैं. जानकारों की मानें तो इस मौके पर आम दिनों के मुकाबले बकरों के 25 से 30 फीसद तक ज्यादा रेट मिलते हैं. यही वजह है कि बकरीद के मौके पर इनकी खासी डिमांड रहती है.
अगर खास नस्ल का बकरा कुर्बानी की शर्तों पर खरा उतरता है तो पशु पालकों को और भी अच्छे दाम मिल सकते हैं. ऐसे बकरों की डिमांड देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद की जाती हैं. शर्त यह होती है कि बकरीद के लिए बेचा जा रहा बकरा एक साल से ऊपर का हो. शरीर का कोई भी अंग कटा हुआ न हो.
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देश में बकरे-बकरियों की करीब 37 नस्ल पाई जाती हैं. इसमे से कुछ सिर्फ दूध के लिए पाली जाती हैं तो कुछ दूध और मीट दोनों के लिए पाले जाते हैं. यूपी की खास नस्ल बरबरी, जमनापारी हैं. बरबरी नस्ल के बकरे को बरबरा बकरा कहा जाता है. इसकी देश के अलावा अरब देशों में भी खासी डिमांड रहती है. जखराना, सिरोही, सोजत राजस्थान के तो तोतापरी नस्ल का बकरा हरियाणा का है.
इस नस्ल के बकरे की हाइट दो से ढाई फुट तक होती है. हाइट ज्यादा न होने से खूब मोटा ताजी दिखता है. एक साल की उम्र में ये कुर्बानी के लिए तैयार हो जाता है. इसके कान छोटे और खड़े होते हैं. ये आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, मथुरा और कानपुर में पाया जाता है. इस बकरे के रेट कम से कम 12 हजार रुपये से शुरु होते हैं. बकरीद के मौके पर इस नस्ल का बकरा 50 हजार रुपये से भी ज्यादा का बिक जाता है.
जमनापारी नस्ल यूपी के इटावा में मिलती है. इसके अलावा यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है. ये लम्बा होता है और इसके कान मीडियम साइज के होते हैं. दिखने में मोटा और भारी होता है. इसका रंग आमतौर पर सफेद होता है. लेकिन कभी-कभी कान और गले पर लाल रंग की धारियां भी होती हैं. बकरे-बकरी दोनों के पैर के पीछे ऊपर लम्बे बाल होते हैं. इसकी नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छे होते हैं. ये 15 से 20 हजार रुपये में आसानी से मिल जाता है.
बकरे की जखराना नस्ल अलवर, राजस्थान के एक गांव जखराना से निकली है. इसलिए इसका नाम भी जखराना पड़ गया है. असली जखराना की पहचान यह है कि यह पूरी तरह से काले रंग की होती है. लेकिन इसके कान और मुंह पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. इसके अलावा जखराना बकरी के पूरे शरीर पर किसी भी दूसरे रंग का कोई धब्बा नहीं मिलेगा. इस नस्ल के बकरे और बकरी एक साल में 25 से 30 किलो वजन तक पर आ जाते हैं.
सोजत नस्ल का बकरा राजस्थान के नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाया जाता है. यह जमनापरी की तरह से सफेद रंग का बड़े आकार वाली नस्ल का बकरा है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. वहीं बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्रा में भी खासी डिमांड रहती है.
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सिरोही- ये ब्राउन और ब्लैक कलर में पाया जाता है. इस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. इस नस्ल का बकरा दिखने में खासा ऊंचा होता है. ये नस्ल सिर्फ राजस्थान में ही पाई जाती है. ये बकरा बाजार में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये में मिल जाता है.
तोतापरी- इस नस्ल का बकरा पतला और लम्बा होता है. ऊंचाई कम से कम 3.5 से 4 फुट तक होती है. बाजार में बिकने के लिए तैयार होने में ये कम से कम 3 साल लेता है. ये नस्ल हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर जिले में पाई जाती है. इसकी बिक्री 12 से 13 हजार रुपये से शुरु होती है.
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