अमेरिका, भारत के झींगा उत्पादकों के लिए सबसे बड़ा बाजार है. लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ और प्रतिपूरक शुल्कों से पैदा हुई अनिश्चितता के बीच, भारत के झींगा उत्पादक बढ़ते घरेलू बाजार का लाभ उठाने के लिए अब देश की तरफ देखने की रणनीति तैयार कर रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के झींगा बाजार में ऐसी क्षमता है जिसका अभी तक प्रयोग ही नहीं किया गया है. ऐसे में यह बाजार उत्पादकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
भारतीय झींगा घरेलू बाजार को बढ़ती डिस्पोजेबल इनकम, बढ़ती हेल्थ अवेयरनेस और बड़ी आबादी का समर्थन मिला हुआ है. जबकि इससे पहले अलग-अलग प्रयास तो किए गए हैं लेकिन इस बाजार का पूरी तरह से पता लगाने और विकसित करने के लिए कोई खास अभियान नहीं चलाया गया है. अखबार द हिंदू बिजनेसलाइन ने बड़े खिलाड़ियों में से एक किंग्स इंफ्रा के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक शाजी बेबी जॉन के हवाले से लिखा, 'हम रेडी-टू-कुक और रेडी-टू-ईट झींगा उत्पादों को पेश करके घरेलू बाजार के 50 प्रतिशत हिस्से को टारगेट करके अपने व्यवसाय को नया रूप दे रहे हैं.'
जॉन ने कई रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में प्रोसेस्ड फिश और सी-फूड का मार्केट 21.04 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. इसमें से घरेलू बाजार का ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर सिर्फ तीन से पांच प्रतिशत ही है. संभावना है कि अगले पांच सालों में बाजार 8.5 प्रतिशत के सीएजीआर पर वृद्धि कर सकेगा.
जॉन ने इस बार पर जोर दिया कि भारत में कोल्ड चेन फैसिलिटीज, आखिर बिंदु तक कनेक्टिविटी की सुविधा और एक डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क की जरूरत है ताकि सी-फूड की क्वालिटी और इसकी फ्रेशनेस को बरकरार रखा जा सके. जॉन की मानें तो केंद्र सरकार की तरफ से घरेलू बाजार में डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को मजबूत करने के लिए हर संभव आर्थिक मदद मुहैया कराई जा रही है. लेकिन इनमें से ज्यादातर फंड जागरुकता के बिना ही खत्म हो जा रहा है.
प्रॉन फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट आईपीआर मोहन राजू कहते हैं कि एक स्थिर घरेलू बाजार को पूरी तरह से समर्पित सप्लाई चेन नेटवर्क की जरूरत है जो वर्तमान नेटवर्क की जगह ले सके ताकि सप्लाई और कीमतों जैसी बड़ी चुनौतियों को दूर किया जा सके. राजू ने कहा कि फेडरेशन की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है कि इस दिशा में किसान संगठनों का निर्माण किया जाए.
इसके साथ ही कोल्ड चेन, लॉजिस्टिक्स नेटवर्क्स और वैल्यू ऐडड और फ्रोजन झींगा फॉर्मेट जैसी पहल को खुदरा बाजारों के लिए अंजाम तक पहुंचाया जाए. इस पहल को केंद्र सरकार की तरफ से समर्थन जरूर मिलना चाहिए जिसमें राज्य सरकार का सहयोग भी हो. उनका मानना है कि फ्रोजन झींगा की घरेलू बाजार में काफी संभावनाएं हैं जबकि इसकी हाइजीन और क्वालिटी को भी मेनटेन किया जा सकता है.
फ्रोजन और ब्रांडेड सी-फूड प्रॉडक्ट्स पर पांच फीसदी की जीएसटी इसे और महंगा बना देती है. मोहन राजू ने सरकार से अपील की है कि उसकी तरफ से जीएसटी काउंसिल को प्रस्ताव दिया जाए कि फ्रोजन सी-फूड पर एक निश्चित काल तक के लिए जीरो जीएसटी हो. इससे घरेलू बाजार बढ़ेगा और उत्पादकों को भी मदद मिल सकेगी. एक्वाकनेक्ट ग्लोबल के चीफ ग्रोथ ऑफिसर अर्पण भालेराव के अनुसार करीब 40 फीसदी भारतीय झींगा वर्तमान समय में अमेरिका को निर्यात किया जाता है. इसकी वजह से टैरिफ के बाद इस पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की संभावना है. वहीं वह इस बात से भी इनकार नहीं करते हैं कि इससे घरेलू बाजार में उन्हें एक बड़ी रोल अदा करने का मौका भी मिलेगा.
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