Goat-Poultry Farming: मुर्गी पालन की कम करनी है लागत तो साथ में करें बकरी पालन

Goat-Poultry Farming: मुर्गी पालन की कम करनी है लागत तो साथ में करें बकरी पालन

Backyard Poultry बैकयार्ड पोल्ट्री की लागत कम करने के लिए केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (IFS) तैयार किया है. इस सिस्टम से मुर्गियों को बकरियों के साथ पाला जाएगा. अगर सीआईआरजी के इस सिस्टम का पालन किया तो मुर्गियों के फीड की लागत 30 से 40 ग्राम तक कम हो जाएगी. 

Advertisement
Goat-Poultry Farming: मुर्गी पालन की कम करनी है लागत तो साथ में करें बकरी पालनमुर्गी की फीड लागत कम करने के लिए आईएफएस प्लान तैयार किया गया है.

Backyard Poultry बेशक देश में कमर्शियल पोल्ट्री का दायरा बहुत बड़ा है. लेकिन आज भी गांव-गांव में खेती संग बैकयार्ड पोल्ट्री को ही बढ़ावा दिया जाता है. बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत 10 से 100 मुर्गे-मुर्गी तक पाले जाते हैं. देश के पोल्ट्री सेक्टर में बैकयार्ड पोल्ट्री का बड़ा योगदान है. देसी अंडों का कारोबार ज्यादातर बैकयार्ड पोल्ट्री से ही चलता है. इतना ही नहीं, देसी चिकन का बाजार भी बैकयार्ड पोल्ट्री पर ही निर्भर है. केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मुताबिक देश के पोल्ट्री बाजार में हर साल बढ़ोतरी हो रही है. बावजूद इसके बैकयार्ड पोल्ट्री करने वालों को उतना मुनाफा नहीं मिल रहा है जितना बाजार बढ़ रहा है. क्योंकि लागत तो बढ़ रही है, लेकिन मुनाफा उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है. 

जिसकी वजह है फीड का महंगा होना. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा का प्लान अपनाकर फीड की लागत को कम किया जा सकता है. ये प्लान है इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (IFS). इस सिस्टम के तहत बकरियों की मेंगनी और मिट्टी का इस्तेमाल कर पूरी तरह से ऑर्गनिक अजोला चारा उगाया जा सकता है. साथ ही बकरी के बचे हुए चारे को खाकर भी मुर्गियां अपना पेट भर लेती हैं. 

इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम से ऐसे होता है फायदा 

आईएफएस एक्सपर्ट की मानें तो इसके तहत एक ऐसा शेड तैयार किया जाता है जिसमे बकरी और मुर्गियां बराबर में साथ रहती हैं. दोनों के बीच फासले के तौर पर लोहे की एक जाली लगी होती है. जैसे ही बकरियां सुबह चरने के लिए चली जाती हैं तो जाली में लगा एक छोटी सा गेट खोल दिया जाता है. गेट खुलते ही मुर्गियां बकरियों की जगह पर आ जाती हैं. यहां जमीन पर या लोहे के बने स्टॉल में बकरियों का बचा हुआ चारा जिसे अब बकरियां नहीं खाएंगी पड़ा होता है. इसे मुर्गियां बड़े ही चाव से खाती हैं. 

बचे हुए हरे चारे में बरसीम, नीम, गूलर और उस तरह के आइटम भी हो सकते हैं, इसे जब मुर्गियां खाती हैं तो उन्हें कई तरह का फायदा पहुंचाता है. और दूसरा ये कि जो फिकने वाली चीज होती है उसे मुर्गियां खा लेती हैं. इस तरह से जिस मुर्गी को दिनभर में 110 ग्राम या फिर 130 ग्राम तक दाने की जरूरत होती है तो इस सिस्टम के चलते 30 से 40 ग्राम तक दाने की लागत कम हो जाती है. 

एक बकरी पर पल जाती हैं 5 मुर्गियां 

आईएफएस सिस्टम एक बकरी पर पांच मुर्गियां पाली जा सकती है. हालांकि सीआईआरजी ने एक एकड़ के हिसाब से प्लान को तैयार किया है. इस प्लान के तहत आप बकरियों संग मुर्गी पालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी से कम्पोस्ट भी बना सकते हैं. इस कम्पोस्ट का इस्तेमाल आप बकरियों का चारा उगाने में कर सकते हैं. ऐसा करने से एकदम ऑर्गनिक चारा मिलेगा. 

ये भी पढ़ें- Animal Feed: दुधारू पशु खरीदते वक्त और गाभि‍न पशु की खुराक में अपनाएं ये टिप्स 

ये भी पढ़ें- Milk Production: 2033 तक हर साल भारत को चाहिए होगा इतने करोड़ लीटर दूध, अभी है बहुत पीछे 

POST A COMMENT