बच्चे देने के मामले में भेड़ बकरी से बहुत आगे हैं. हालांकि भेड़ भी बकरी की तरह से साल में दो ही बार बच्चे देती है, लेकिन भेड़ ज्यादातर मामलों में तीन से चार बच्चे तक देती है. इस तरह बकरी जहां एक साल में चार बच्चे देती है तो भेड़ एक साल में छह से आठ बच्चे तक दे देती है. इसीलिए भेड़ पालन को बकरी पालन के मुकाबले ज्यादा मुनाफे वाला माना जाता है. लेकिन ये भी सच है कि मेमनों को कई तरह की जानलेवा बीमारी से बचाना भेड़ पालन में सबसे बड़ा काम है. जैसे खासतौर पर हगलू और चिकड़ बीमारी से बचाना.
भेड़ों खासतौर से उनके बच्चों को होने वाली ये दो बीमारियां जानलेवा कही जाती हैं. ये दोनों बीमारियां आमतौर से भेड़ों के बच्चों पर ही अटैक करती हैं. शीप एक्सपर्ट की मानें तो इसकी एक वजह भेड़ के बच्चों की कमजोर इम्यूनिटी भी बताई जाती है. हालांकि एडल्ट भेड़ की इम्यूनिटी ज्यादा स्ट्रांग होती है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो मेमनों के मामले में कुछ एहतियात बरती जाए तो इस बीमारी को पूरी तरह से कंट्रोल किया जा सकता है.
गददी भेड़ पालक इस रोग को हगलू नाम से जानते हैं. यह मुख्यता जीवाणुओं द्वारा फैलता है. यह जीवाणु ज्यादातर भेड़ के पेट के अन्दर होता है. इस बीमारी में भेड़ में तेज पेट दर्द होता है. अधिकतर छोटे बच्चों में यह रोग ज्यादा होता है. जानवर धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाता है. कई बार उसे चक्कर आते हैं. मुंह से झाग निकलता है और दस्त के साथ खून भी आता है.
इस बीमारी से बचाव हेतू भेड़ पालक को प्राथमिक उपचार हेतू नमक व चीनी का घोल पिलाना चाहिए. क्योंकि यह दस्त के कारण जानवर के शरीर में हुई पानी की कमी को पूरा करता है. इसके साथ-साथ पेट के कीड़ों की दवाई अपने झुंड को पिलानी चाहिए. घास चरने की जगह समय-समय पर बदलनी चाहिए. दस्त और बुखार को कम करने के लिए पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार इलाज करवाना चाहिए. बचाव हेतू भेड़ पालक को वर्ष में एक बार टीकाकरण करवाना चाहिए.
गददी भेड़ पालक इस रोग को चिकड़ नामक रोग से जानते हैं. यह रोग जीवाणुओं द्वारा होता है. इस रोग में भेड़ के खुरों की बीच की चमड़ी पक जाती है. वह लंगडी हो जाती है. भेड़ों को तेज़ बुखार हो जाता है. इस रोग के जीवाणु मिटटी द्वारा एक जानवर से दूसरे में चले जाते है. यह एक छूत का रोग है, जो एक जानवर से पूरे झुंड में फैला जाता है.
इस रोग से ग्रस्त भेड़ को अपने झुंड में ना लाऐं. जिस रास्ते से इस बीमारी वाला अन्य झुंड गुज़रा हो उस रास्ते से एक सप्ताह तक अपने झुंड को न ले जाऐं. बीमार भेड़ के खुरों की सफाई रखें. उनके खुरों को नीले थोथे (कापर सल्फेट) के घोल से धोऐं और एन्टीवायोटिक मलहम लगाएं. चिकित्सक की सलाह अनुसार चार-पांच दिनों तक एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन लगाऐं.
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