Goat Farming कुर्बानी का त्यौहार बकरीद सात जून को है. इस मौके पर तीन दिन तक बकरों की कुर्बानी दी जाती है. इस दौरान एक महीने तक जमकर बकरों की खरीद-फरोख्त होती है. लेकिन जैसे पशुपालक बकरीद पर बकरे बेचकर फ्री होते हैं तो अगले साल की तैयारी में लग जाते हैं. हालांकि हर पशुपालक का बकरा पालन का अपना एक तरीका है. लेकिन गोट एक्सपर्ट कहते हैं कि बकरा पालन के दौरान सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात ये है कि आपके आसपास जो बकरा मंडी हैं वहां किस खास नस्ल के बकरे सबसे ज्यादा बिकते हैं.
मतलब आपकी मंडियों में जिस नस्ल की सबसे ज्यादा डिमांड हो उसी नस्ल के बकरे पालकर तैयार किए जाएं. इसके दो फायदे होते हैं. एक तो डिमांड के मुताबिक बकरा जल्दी बिक जाता है, वहीं दूसरी ओर डिमांड के चलते उसके दाम भी अच्छे मिल जाते हैं. क्योंकि ये वो मौका होता है जब देश के साथ ही विदेशों से भी बड़ी संख्या में बकरों की डिमांड आती है. आम दिनों के मुकाबले बकरों के 25 से 30 फीसद तक ज्यादा रेट मिलते हैं.
इस नस्ल के बकरे की हाइट दो से ढाई फुट तक होती है. हाइट ज्यादा न होने से खूब मोटा ताजी दिखता है. एक साल की उम्र में ये कुर्बानी के लिए तैयार हो जाता है. इसके कान छोटे और खड़े होते हैं. ये आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, मथुरा और कानपुर में पाया जाता है. इस बकरे के रेट कम से कम 12 हजार रुपये से शुरु होते हैं. बकरीद के मौके पर इस नस्ल का बकरा 50 हजार रुपये से भी ज्यादा का बिक जाता है.
जमनापारी नस्ल यूपी के इटावा में मिलती है. इसके अलावा यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है. ये लम्बा होता है और इसके कान मीडियम साइज के होते हैं. दिखने में मोटा और भारी होता है. इसका रंग आमतौर पर सफेद होता है. लेकिन कभी-कभी कान और गले पर लाल रंग की धारियां भी होती हैं. बकरे-बकरी दोनों के पैर के पीछे ऊपर लम्बे बाल होते हैं. इसकी नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छे होते हैं. ये 15 से 20 हजार रुपये में आसानी से मिल जाता है.
बकरे की जखराना नस्ल अलवर, राजस्थान के एक गांव जखराना से निकली है. इसलिए इसका नाम भी जखराना पड़ गया है. असली जखराना की पहचान यह है कि यह पूरी तरह से काले रंग की होती है. लेकिन इसके कान और मुंह पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. इसके अलावा जखराना बकरी के पूरे शरीर पर किसी भी दूसरे रंग का कोई धब्बा नहीं मिलेगा. बकरे और बकरी एक साल में 25 से 30 किलो वजन तक पर आ जाते हैं. 60 फीसद जखराना बकरी दो या तीन बच्चे तक देती हैं.
सोजत नस्ल का बकरा राजस्था्न के नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाया जाता है. यह जमनापरी की तरह से सफेद रंग का बड़े आकार वाली नस्ल का बकरा है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. वहीं बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्र में भी खासी डिमांड रहती है.
सिरोही ब्राउन और ब्लैक कलर में पाया जाता है. इस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. इस नस्ल का बकरा दिखने में खासा ऊंचा होता है. ये नस्ल सिर्फ राजस्थान में ही पाई जाती है. ये बकरा बाजार में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये में मिल जाता है.
तोतापरी नस्ल का बकरा पतला और लम्बा होता है. ऊंचाई कम से कम 3.5 से 4 फुट तक होती है. बाजार में बिकने के लिए तैयार होने में ये कम से कम 3 साल लेता है. ये नस्ल हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर जिले में पाई जाती है. इसकी बिक्री 12 से 13 हजार रुपये से शुरु होती है.
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