
Goat Meat गोट एक्सपर्ट का कहना है कि देश में बकरे-बकरियों की 40 से ज्यादा रजिस्टर्ड नस्ल हैं. और इसमे से ज्यादातर नस्ल को खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. मीट उत्पादन के लिए पहचान रखने वाली बकरों की कुछ और भी नस्ल हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं. लेकिन स्थानीय बाजार में उनके मीट की बहुत डिमांड रहती है. आज भी बकरे-बकरी पालने की पहली वरीयता मीट ही होती है. दूसरे नंबर पर बकरियों को प्रजनन यानि बच्चों के लिए पाला जाता है. और तीसरे नंबर पर आता है दूध उत्पादन. हालांकि अब दूध की डिमांड और उत्पादन दोनों ही तेजी से बढ़ रहे हैं. मीट की बात करें तो बकरीद के लिए बकरों की तैयारी शुरू हो गई है.
बकरीद पर कारोबार करने के लिए लोगों ने बकरे पालना शुरू कर दिया है. गौरतलब रहे बकरीद के लिए वजनदार और खूबसूरत बकरों की बहुत डिमांड रहती है. मीट की इसी डिमांड को देखते हुए बकरे-बकरियों की दो खास नस्ल सोजत और गुजरी को रजिस्टर्ड लिस्ट में शामिल किया गया है. एक्सपर्ट की मानें तो मीट के मामले में ये दोनों ही नस्ल 100 से 150 किलो वजन तक पर पहुंच जाती हैं.
बकरियों की गुजरी नस्ल खासतौर पर राजस्थान के अलवर में पाई जाती है. इस नस्ल के बकरे का औसत वजन 69 और बकरी का 58 किलो तक होता है. लेकिन ज्यादातर महाराष्ट्र में इस नस्ल के बकरे की स्पेशल तरीके से खिलाई कर उसे वजनी बनाया जाता है. जानकारों की मानें तो बकरा 150 किलो के वजन को भी पार कर जाता है. इस नस्ल की बकरी रोजाना औसत 1.60 किलोग्राम तक दूध देती है. यह सफेद और भूरे रंग की होती है. इसके पेट, मुंह और पैर पर सफेद धब्बे होते हैं.
सोजत नस्ल की बकरी नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाई जाती है. यह जमनापरी की तरह से सफेद रंग की बड़े आकार वाली नस्ल की बकरी है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्रा में भी खासी डिमांड रहती है.
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