Animal Pregnancy: गाय-भैंस वक्त से हीट में ना आए तो घर पर ही करें इलाज, जानें कैसे 

Animal Pregnancy: गाय-भैंस वक्त से हीट में ना आए तो घर पर ही करें इलाज, जानें कैसे 

एनिमल एक्सपर्ट का दावा है कि देशभर के करीब 30 फीसद दुधारू पशु बाझंपन की बीमारी से पीडि़त हैं. लेकिन अगर हम पशुपालन के दौरान छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखें तो बांझपन की बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है. हालांकि इसका इलाज थोड़ा महंगा है, लेकिन शुरुआत में ही इस बीमारी की पहचान कर लें तो फिर ज्यादा खर्चा नहीं आता है.

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Animal Pregnancy: गाय-भैंस वक्त से हीट में ना आए तो घर पर ही करें इलाज, जानें कैसे गर्भवती गाय-भैंस को क्या खिलाएं

पशु छोटा हो या बड़ा, उसके पालन में मुनाफा पशु के बच्चा देने से ही जुड़ा होता है. इसे री प्रोडक्शन भी कहा जाता है. जैसे गाय-भैंस जब तक बच्चा नहीं देगी तो वो दूध देने लायक भी नहीं होगी. और जब तक वो गाभि‍न नहीं होगी और दूध नहीं देगी तो उस वक्त तक उसकी खुराक और देखरेख पर होने वाला खर्च बेकार ही जाता है. उससे किसी भी तरह की इनकम नहीं होती है. इसी के चलते ही पशुपालक को नुकसान उठाना पड़ता है. भैंस के दूध और बच्चे पर ही पशुपालक को मुनाफा निर्भर करता है. इसलिए गाय-भैंस का वक्त पर हीट में आना और फिर वक्त से बच्चा देना बहुत जरूरी हो जाता है. 

एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो कई बार बहुत छोटी-छोटी वजह के चलते गाय-भैंस हीट में नहीं आ पाती हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि गाय-भैंस हीट में आ जाती हैं और हम उसके लक्षणों की पहचान ही नहीं कर पाते हैं. लेकिन अगर पशुपालक थोड़े से जागरुक रहें तो ये कोई बहुत बड़ी परेशानी नहीं है. इसका इलाज घर पर भी मुमकिन है. गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना के साइंटिस्ट तो लगातार इस पर रिसर्च कर रहे हैं कि कैसे बांझपन के इलाज को सस्ता बनाया जाए. 

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गाय-भैंस के हीट में ना आने की वजह 

गाय-भैंस में गर्मी के लक्षण तब नहीं दिखते हैं जब वो बहुत बूढ़ी हो.
कभी-कभी पशु किसी भी संकेत के बिना गर्मी में आते हैं इसे “चुप्प गर्मी” कहा जाता है.
गाय-भैंस की खुराक में प्रोटीन, मिनरल्स और पानी की कमी है, तो गर्मी में आने में परेशानी होती है. 
पशुओं के पेट में कीड़ों के होने और बच्चेदानी में संक्रमण के चलते भी पशु गर्मी में नहीं आते हैं. 

गाय-भैंस को हीट में लाने के ये हैं उपाय

एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो बड़ा गोखरू (पेडलियम म्युरेक्स) 500 ग्राम को फर्मेंटेड चावल चावल के एक हजार मिलीलीटर पानी में धोएं. यह पशुओं के मदकाल की शुरुआत से तीन दिन पहले मुंह के रास्ते दिया जाता है. 
अश्वगंधा (विदेनिया सोमनीफेरा) के राइजोम्स 150 ग्राम, जिन्जेली बीज 150 ग्राम को अच्छी तरह से दो मुर्गी के अण्डों और दो केलों में मिलाकर पेस्ट तैयार करें और पशु को सात दिनों तक खाने में दें. अगर पशु तब भी गर्मी में नहीं आता तो सात दिनों के बाद फिर से इलाज को (सिर्फ एक दिन के लिए) दोहराएं.

पशुओं को गर्मी में लाने के लिए प्रजना या जनोवा नामक गोलियों का सेवन करा सकते हैं. लेकिन ऐसा सिर्फ पशु चिकित्सक की निगरानी में ही करें. पशुओं को हर 3 महीने बाद पेट के कीड़ों की दवाई जरूर दें. 

अगर गाय-भैंस गर्मी में नही आती है तो कुछ गर्म पदार्थ खिलाना चाहिए. जैसे बाजरा, भूसी, खली, मसूर, चूनी, अरहर और अण्डा. ये सब खिलाने से पशुओं को फायदा होता है. 

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गाय-भैंस को गाभिन कराने के बाद ठण्ड में या छाया वाली जगह पर ही रखना चाहिए. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गाभिन होने के तुरन्त बाद जानवर को बैठने नहीं देना चाहिए, क्योंकि गाभिन होने के तुरन्त बाद बैठ गया तो सारा वीर्य बाहर निकल जाएगा और वो गाभिन नहीं हो पायेगी. 

गाभिन होने पर जानवर को कुछ ठण्डा चारा खिलाना चाहिए. जैसे चरी, पुआल, बरसीम, जौ, उर्द और चूनी आदि. 
 

 

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