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Sahiwal Cow: महाराष्ट्र में कैसे पहुंचीं साहीवाल गायें, जानिए क्या है इनकी खासियत 

Sahiwal Cow: महाराष्ट्र में कैसे पहुंचीं साहीवाल गायें, जानिए क्या है इनकी खासियत 

पंजाब, हरियाणा और सिंध में पाई जाने वाली साहीवाल गायों को महाराष्ट्र में लाने का श्रेय अंग्रेजों को दिया जाता है. जिसके बाद साहिवाल गाय को किसान व्यावसायिक रूप से पालन करना अधिक पसंद करते हैं.साहिवाल गाय, कई नस्लों के गायों की तुलना में ज्यादा दूध देने की क्षमता रखती है. वहीं, साहिवाल गाय का पालन देश के लगभग सभी राज्यों में किया जा सकता है. साहिवाल नस्ल की गाय का दूध अन्य नस्लों की तुलना में काफी महंगा भी बिकता है. 

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जानिए साहीवाल गाय के बारे में जानिए साहीवाल गाय के बारे में

वर्तमान में भारत में गिर, साहीवाल, थारपारकर, खिलार, देवानी, लाल कंधार और कई अन्य देशी नस्लों की गायें हैं. लेकिन महाराष्ट्र में देवानी, लाल कंधारी, खिलार और कोंकण कपिला मुख्य देशी गायें हैं. गिर, साहीवाल,थारपारकर अन्य क्षेत्रों की नस्लें हैं.  लेकिन पंजाब, हरियाणा और सिंध में पाई जाने वाली साहीवाल गायों को महाराष्ट्र में लाने का श्रेय अंग्रेजों को दिया जाता है. एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है. जब अंग्रेजों ने भारत पर अपना शासन स्थापित कर लिया था तब उन्होंने जगह-जगह अपनी बस्तियां स्थापित कीं. उस स्थान पर अपनी शक्ति के लिए भिन्न-भिन्न तंत्र कार्य करते थे. लेकिन अंग्रेज़ उस समय दूध के लिए साहीवाल गायों को महाराष्ट्र ले आए. यहां का वातावरण उनके लिए अनुकूल हो गया,  इसलिए कई किसान इन गायों को पालने लगे. 

साहीवाल गायों को मुल्तानी, लोला, मोंटगोमरी और लाम्बी बार के नाम से भी जाना जाता है. इनका उद्गम सीमावर्ती पाकिस्तामन के पंजाब, मोंटगोमरी और मुल्तान प्रांतों के साथ-साथ अपने पंजाब को माना जाता है. लेकिन पूरे देश में यह मशहूर हैं. अगर इनके शारीरिक लक्षण की बात करें तो यह लाल रंग की होती हैं. गोल सींग, लंबी गर्दन होती है और वजन 300-350 किलोग्राम तक होता है. 

एक सीजन में कितना मिलता है दूध 

भारत में हमारे क्षेत्र और जलवायु के अनुसार अलग-अलग जानवर पाए जाते हैं. वे उपलब्ध संसाधनों के अनुसार बढ़ते भी हैं. किसी क्षेत्र में पशुओं का इस्तेलमाल दूध के लिए तो किसी में जानवरों का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है. कुछ क्षेत्रों में इनका इस्तेामाल प्रदर्शन के लिए किया जाता है. लेकिन समय के साथ मनुष्य विभिन्न क्षेत्रों के जानवरों को पालतू बनाने लगा है. इससे उसे अच्छाा फायदा मिल रहा है. फिलहाल, साहीवाल की बात करें तो यह दूध उत्पादन के मामले में सर्वोत्तम नस्ल मानी जाती है. साहिवाल गाय को किसान व्यावसायिक रूप से पालन करना अधिक पसंद करते हैं.  साहिवाल औसत दूध उत्पादन 1600 से 2750 किलोग्राम है.  इनके दूध में वसा की मात्रा 4.9 प्रतिशत होती है. 

साहीवाल गाय की विशेषताएं

  • साहीवाल गाय के उपनाम - मुल्तानी, लोला, मोंटगोमरी, लाम्बी बार
  • उद्गम - सीमावर्ती क्षेत्रों में पंजाब, मोंटगोमरी और मुल्तान प्रांतों के साथ-साथ पाकिस्तान में पंजाब और देश के अन्य हिस्से. इसका ख्याल रखा जाता है.
  • शारीरिक लक्षण - लाल रंग, गोरी त्वचा,
  • नंगे कानों पर गोल सींग, लंबी गर्दन और लंबी, चाबुक जैसी पूँछ, बैलों में बड़ी दुम, बैल का वजन 550 किलोग्राम और गाय का वजन 300-350 किलोग्राम.
  • दूध उत्पादन - देश में सर्वोत्तम दूध देने वाली नस्ल. वेटा में औसत दूध उत्पादन 1600 से 2750 किलोग्राम है. दूध में वसा की मात्रा 4.9% होती है.
  • उपलब्धता - एन.डी. आर. मैं. गायें करनाल (हरियाणा राज्य), नई दिल्ली, कृषि महाविद्यालय, कानपुर और साथ ही पंजाब के निजी पशुपालकों से लाई जाती हैं.