पशुओं की जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका (FMD) ने पंजाब के पशुओं में दस्तक दे दी है. इस बीमारी का असर पशुओं के मुंह और खुर (पैर) में होता है. इसके चलते पशु का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है. और कई बार तो ये ऐसी स्टेज में पहुंच जाती है जहां पशुओं की मौत भी हो जाती है. पशुओं को एफएमडी से कैसे बचाएं, जब बीमारी फैल रही हो तो पशुओं के बाड़े में क्या-क्या उपाय अपनाएं इन सब बिन्दुओं पर जानकारी देने के लिए हाल ही में गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनीमल साइंस यूनिवसिर्टी (गडवासु), लुधियाना में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में ही खुलासा हुआ है कि एफएमडी पंजाब के पशु फार्म में फैल रही है.
इसमे देशभर से एफएमडी बीमारी के एक्सपर्ट ने हिस्सा लिया था. साथ ही इस दौरान एफएमडी बीमारी से बचाव के लिए पशुपालकों को कई टिप्स भी दिए गए. ये बीमारी अक्सर गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों में होती है. इस बीमारी से कोई एक-दो देश नहीं पूरा ही विश्व परेशान है. लेकिन अच्छी बात ये है कि इस पर धीरे-धीरे काबू पाया जा रहा है. सबसे बड़ी बात ये है कि एफएमडी बीमारी मीट, डेयरी प्रोडक्ट और मिल्क एक्सपोर्ट की बड़ी रुकावट है.
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पंजाब में एफएमडी के प्रकोप से निपटने की लिए गडवासु के समन्वयन कॉलेज ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था. कार्यक्रम के दौरान डॉ. रवीन्द्र प्रसाद सिंह, निदेशक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन फुट एंड माउथ डिजीज, भुवनेश्वर ने बताया कि एफएमडी टीकाकरण के दौरान कोल्ड-चेन के रखरखाव, सघन पशु आबादी में लक्ष्यन की प्राप्तिक तक टीकाकरण किया जाए, पशुधन झुंड में खतरे को नियंत्रित करने के लिए बॉयो सिक्योतरिटी की पालन किया जाए.
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डॉ. महापात्रा ने एफएमडी टीकों की गुणवत्ता और टीकाकरण स्टॉक की नियमित सेरोमोनिटरिंग के संबंध में चर्चा. उन्होंने कहा कि जिस पशु फार्म पर आखिरी वायरस अटैक के बाद उसकी तीन महीने बाद तक वीर्य में एफएमडी वायरस के बहाव की जाँच की जानी चाहिए. कॉलेज ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी, गडवासु के डीन डॉ. यशपाल सिंह मलिक ने कहा कि वायरस को फैलने से रोकने के लिए रोग के केंद्रों में इनवर्ड रिंग टीकाकरण को अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए.
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