गाय-भैंस हो या फिर भेड़-बकरी, सभी का अर्थशास्त्र उनके हीट में आने पर टिका होता है. ये जितनी जल्दी हीट में आएंगे मुनाफा उतना ही ज्यादा और लागत कम होगी. क्योंकि जब तक गाय-भैंस हीट में नहीं आएगी तो वो गाभिन नहीं होगी. और गाभिन नहीं होगी तो बच्चा नहीं देगी. और गाय-भैंस का दूध देना उसके बच्चा देने पर ही टिका होता है. इसी तरह से भेड़-बकरी जब तक हीट में नहीं आएंगी तो वो बच्चा नहीं देंगी और पशुपालक को मुनाफा बच्चे से ही होता है. एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो हीट में आने के लिए वक्त लेने वाली गाय-भैंस पशुपालकों की लागत को बढ़ाती हैं.
ऐसी गाय-भैंस पशुपालक के मुनाफे को कम कर देती हैं. क्योंकि दो से ढाई साल की भैंस भी उतना ही खाती है जितना दूध देने वाली भैंस. एक्सपर्ट का कहना है कि गाय-भैंस का वक्त से हीट में आना पशुपालक के मुनाफे के लिए बहुत जरूरी होता है. अगर भैंस दो से ढाई साल की होने के बाद भी हीट में ना आए तो फौरन ही पशु चिकित्सक की सलाह लेकर उसका इलाज शुरू करा दें. हालांकि बांझपन एक बड़ी परेशानी है, लेकिन पशुपालक अगर थोड़ा सा अलर्ट हो जाए तो गाय-भैंस के बांझपन को दूर किया जा सकता है.
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CAFT के निदेशक और एनिमल एक्सपर्ट डॉ. मृगांक होनपरखे की मानें तो एडवांस्ड इनसाइट्स ऑन थेरियोजेनोलॉजी टू अमेलियोरेट रिप्रोडक्टिव हेल्थ ऑफ डोमेस्टिक एनिमल्स" जैसे विषय पर पशुपालकों के लिए जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इस कार्यक्रम के तहत पशुपालकों को हम सबसे पहले यह बताते हैं कि अगर वो चाहते हैं कि उनके पशुओं में बांझपन की परेशानी ना हो तो उन्हें सबसे पहला काम यह करना है कि वो बांझपन का इलाज कराने में देरी न करें. क्योंकि बांझपन जितना पुराना होगा तो उसके इलाज में उतनी ही परेशानी और बढ़ आएगी.
इसलिए सही समय पर पशुओं की जांच कराते रहें. अगर भैंस दो से ढाई साल की हो जाए और हीट में नहीं आए तो ऐसे में ज्यादा से ज्यादा दो से तीन महीने तक ही इंतजार करें. अगर फिर भी भैंस हीट में नहीं आती है तो फौरन अपने पशु की जांच कराएं. इसी तरह से गाय के साथ है. अगर गाय डेढ़ साल में हीट पर न आए तो उसे भी दो-तीन महीने इंजार के बाद डॉक्टर से सलाह लें.
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डॉ. मृगांक का कहना है कि कई बार ऐसा भी होता है कि एक बार बच्चा देने के बाद भी पशुओं में बांझपन की शिकायत आती है. इसलिए अगर गाय-भैंस एक बार बच्चा देती है तो दोबारा उसे गाभिन कराने में देरी न करें. आमतौर पर पहली ब्यात के बाद दो महीने का अंतर रखा जाता है. लेकिन इस अंतर को ज्यादा ना रखें. अंतर जितना ज्यादा रखा जाएगा बांझपन की परेशानी बढ़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा हो सकती है.
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