सीआईआरजी में बकरी के बच्चों की मृत्यु दर को कंट्रोल करने के लिए लगातार काम चल रहा है. फोटो क्रेडिट-किसान तक Goat Lamb Care बकरी के होने वाले बच्चे बीमार न हो, पैदा होते ही उन्हें कोई संक्रमण न हो, ठंड के चलते बच्चों को निमोनिया न हो आदि. लेकिन इस सब से बचने के लिए जरूरी है कि सर्दियों के मौसम में बकरी के बच्चों की खास देखभाल की जाए. सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि जो बकरी के बच्चे सितम्बर-अक्टूबर में पैदा हुए हैं उन्हें ठंड से बचाया जाए. असल में होता ये है कि बकरी के बच्चों को मौसमी और संक्रमण वाली बीमारियों से बचाने के लिए बकरी पालक अब कैलेंडर के हिसाब से बच्चों का जन्म कराने लगे हैं.
अपने हिसाब से बच्चे पैदा कराने के लिए बकरियों को गाभिन भी अपने ही हिसाब से करा रहे हैं. अब जो बकरियां अप्रैल से जून के बीच गाभिन हुई हैं और सितम्बर-अक्टूबर के बीच बच्चा दिया है तो उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होगी. क्योंकि सितम्बर-अक्टूबर का वो वक्त होता है जब मौसम गर्मी से सर्दी में दाखिल हो रहा होता है. और बदलते मौसम में ही बच्चों को निमोनिया की सबसे ज्यादा परेशानी होती है.
गोट साइंटिस्ट का कहना है कि सर्दी के मौसम में दो महीने तक के बच्चों की खास देखभाल बहुत जरूरी हो जाती है. क्योंकि ठंड के मौसम में बच्चों को निमोनिया जकड़ लेता है. निमोनिया इतना खतरनाक हो जाता है कि बच्चों की जान तक ले लेता है. इसलिए बच्चों को ठंड से बचाना बहुत जरूरी हो जाता है. इसलिए ठंड का मौसम शुरू होते ही बच्चों को ठंडी हवा से बचाएं. शेड को तिरपाल या जूट की बोरी से चारों तरफ से ढक दें. जमीन पर भी सूखी घास बिछा दें. समय-समय पर घास को बदलते रहें, क्यों कि बच्चों के यूरिन से घास गीली हो जाती है. शेड में डेली वाले चूने का छिड़काव करें. चूना गर्मी पैदा करता है. साथ ही चूना छिड़कने से शेड में कीटाणु भी मर जाते हैं. 15 दिन के बाद बच्चों को दाना खिलाना शुरू कर दें.
गोट साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी का गर्भकाल पांच महीने का होता है. आखिरी के 45 दिन बकरी के खानपान में हरा चारा, सूखा चारा और दाना शामिल होना चाहिए. इसका फायदा बकरी के होने वाले बच्चे को भी मिलेगा. बच्चे हैल्थी होंगे. बीमारी से लड़ सकेंगे. बकरी दूध भी ज्यादा देगी. इससे बच्चों को भी भरपूर दूध पीने को मिलेगा. बच्चा देने के तीन-चार दिन तक बकरी जो कोलस्ट्रम यानि खीज वाला दूध देती है. इस दूध में चार गुना तक प्रोटीन होता है. साथ ही एक खास इम्यू्नोग्लोबीलिन प्रोटीन भी होता है, जो बच्चों को बीमारी से लड़ने की ताकत देता है.
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बकरी बच्चा देने के बाद उसे अपना दूध नहीं पिलाती है. ऐसे में बच्चे को उस दूसरी बकरी का दूध भी पिलाया जा सकता है जिसने उसी के आसपास बच्चा दिया हो. जन्म के करीब पांच-छह दिन तक बकरी और बच्चे को दूसरी बकरियों के झुंड से अलग अकेले में रखें. इससे होगा ये कि बकरी अपने बच्चे को ठीक तरह से पहचान लेगी. बच्चे को पहले 15 दिन सिर्फ बकरी के दूध पर ही रखें. बच्चे मिट्टी ना खाएं इसके लिए उनके आसपास हमेशा लाहौरी (सैंधा) नमक की डेली रखें.
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