ग्रामीण इलाकों के लोग खेती-किसानी के साथ ही अधिक मुनाफा कमाने के लिए पशुपालन भी करते हैं. किसान बकरियों का पालन खूब करते है, क्योंकि यह दूध भी देती हैं और मांस के रूप में बिक्री से भी किसानों को कमाई होती है. बकरी पालन में किसानों को कम लागत के साथ अधिक मुनाफा मिल जाता है. मगर किसानों को मौसम देखते हुए पशु पर ध्यान रखना होता है. बकरियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता मॉनसून के दौरान कम हो जाती है. इसी वजह से पशुपालन में किसानों को बकरियों में लगने वाले रोग को लेकर भी सतर्क होना पड़ता है. तो आइए आज हम आपको बताते हैं बकरियों में लगने वाले कुछ ऐसे मुख्य रोग जिनका पशु पालकों को ध्यान रखना चाहिए.
मॉनसून आने पर बकरियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है. इस दौरान पशु का भीगना बीमारियों का आगमन है. पशु को निमोनिया जैसी बीमारी का सामना करना पड़ता है. सही समय पर इलाज न करने पर पशु की मृत्यु भी हो सकती है. सांस लेने में तकलीफ, खाना पसंद न करना, खांसी इसके मुख्य लक्षण हैं. इससे बचाव के लिए पशु पालकों को मॉनसून आने से पहले ही बकरियों का टीकाकरण करा लेना चाहिए. रोग लग जाने पर तुरंत नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें. पशु को दवाईयां समय पर देने के साथ पशु को तेल की भाप दें और नमी से दूर रखें.
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पीपीआर को बकरी प्लेग रोग या बकरियों की महामारी रोग भी कहा जाता है. इससे बकरियों में बुखार, मुंह में घाव, दस्त तथा बकरियों की मृत्यु तक हो जाती है. इस बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा मेमनों और कुपोषित भेड़-बकरियों में देखा जाता है. तेज बुखार, मुंह में छाले, आंख और नाक से पानी आना, और दस्त पीपीआर रोग के मुख्य लक्षण हैं. बकरियों में इस रोग के लग जाने पर बकरियों को साफ, पोषक, और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए साथ ही अपने नजदीकी पशु-चिकित्सालय से तुरंत संपर्क करना चाहिए.
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चेचक पशुओं के लिए एक तरह का संक्रमित रोग है, जिसमें बकरियों को बुखार, शरीर में गोल लाल रंग के चकते पड़ जाते हैं। बाद में ये फफोले का रूप लेकर फूट कर घाव बन जाते हैं. चेचक होने पर बकरी चारा खाना और दूध देना कम हो कर देती है. बकरी में चेचक रोग हो जाने पर टिंचर आयोडीन का प्रयोग करके पशुपालक संक्रमण को बढ़ने से रोक सकते हैं. इस दौरान रोगी बकरियों को अलग-अलग जगह पर कर दें और तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लें.
मॉनसून में बकरियों में पेचिश रोग भी लग जाता है. पशु को कमजोरी, भूख न लगना, प्यास अधिक लगना, पतला दस्त और खूनी बदबूयुक्त पेचिश करना पेचिश के लक्षणों में से एक है, जिससे पशु को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. पेचिश रोग लग जाने पर पशु सालों तक प्रभावित हो सकता है और बीमारी से पशु की मृत्यु भी हो सकती है. पेचिश की रोकथाम के लिए पशु पालक रोगी पशु को तुरंत नजदीकी जानवरों के डॉक्टर के पास लेकर जाएं और पशु को समय-समय पर साफ करें.
खुरपका रोग मॉनसून के दौरान शुरु होता है. इसमें बकरियों के मुंह और खुर में छाले और मुंह से लार टपकती रहती है। रोगी पशु चारा नहीं खा पाता, पैरों में जख्म हो जाते हैं और पशु लंगड़ा कर चलता है. इस रोग के लग जाने पर सबसे पहले स्वस्थ और रोगी पशु को एक दूसरे से अलग कर लें, इससे संक्रमण बढ़ने से रोका जा सकेगा. इसके बाद रोगी पशु के मुंह में फिटकरी, पोटाश, बोरिक एसिड और नमक का घोल बनाकर धो लें और जल्द से जल्द पशु का टीकाकरण पूरा कराएं.
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