कई तरह की मजबूरियों के चलते किसान खेत में ही पराली जलाते हैं. लेकिन अक्सर आरोप ये लगते हैं कि पराली के जलने से दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण होता है. खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों पर पराली जलाने के आरोप लगाए जाते हैं. वहीं दूसरी तरफ आलू की बात करें तो कभी ग्राहक न मिलने तो कभी सस्ता होने के चलते आलू सड़कों पर फेंक दिया जाता है. लेकिन केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा की एक खास रिसर्च के बाद पराली और आलू दोनों का ही बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है.
बकरियों के साथ ही दूसरे बड़े पशुओं के लिए इसका स्वादिष्टा चारा बनाया जा सकता है. वो भी बहुत ही कम लागत पर. सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली की मानें तो संस्थान में बकरे और बकरियों के चारे को लेकर खासा काम चल रहा है. क्योंकि जब बकरे का मीट एक्सपोर्ट होता है तो उससे पहले हैदराबाद की एक लैब में मीट की जांच होती है. जांच में यह देखा जाता है कि मीट में किसी तरह के नुकसानदायक पेस्टीसाइट तो नहीं है.
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सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट रविन्द्र कुमार ने किसान तक को बताया कि पराली और आलू को बराबर मात्रा में लेकर साइलेज बैग में भर दें. इसके बाद बैग को 60 दिनों के लिए उठाकर रख दें. इसके बाद पराली और आलू में एन-एरोबिक कंडीशन के चलते फॉर्मेंटेशन होगा. जिसके बाद यह बकरी ही नहीं गाय-भैंस के लिए भी खाने लायक हो जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि इसे बकरियों को खिलाने के लिए एक लम्बे वक्त तक चलाया जा सकता है. हमारे संस्थान में हुई रिसर्च के तहत इसे जब बकरियों को खिलाया गया तो सामने आया कि इस चारे को खाने के बाद बकरियों का वजन 40 ग्राम रोजाना के हिसाब से बढ़ता है. इसे साइलेज भी कहा जाता है.
रविन्द्र कुमार ने बात करते हुए साइलेज की लागत के बारे में बताया कि 50 किलो साइलेज तैयार करने में ज्यादा से ज्यादा 450 रुपये से लेकर 500 रुपये तक का खर्च आता है. हालांकि बहुत सारी जगहों पर तो पराली किसान फ्री में भी दे देते हैं. जबकि साइलेज बनाने के लिए आलू हमे वो चाहिए जो बाजार में बिकने लायक नहीं होता है या फिर इस तरह का होता है कि एक से दो रुपये किलो तक भी आसानी से मिल जाता है.
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शायद ही साल का कोई दिसम्बर और जनवरी ऐसा हो जब आगरा, अलीगढ़, हाथरस, फिरोजाबाद में आलू को फेंकने की नौबत ना आती हो, या फिर कौड़ियों के भाव बेचना पड़ता हो. बीते साल भी दो-ढाई महीने पहले आगरा का आलू एक से डेढ़ रुपये किलो तक बिका था. इतना ही नहीं अलीगढ़, हाथरस की आलू से भरी गाड़ियां कई दिन तक दिल्लीु में आजादपुर मंडी के बाहर खरीदार के इंतजार में खड़ी रहीं थी. हाथरस की कुछ गाड़ियां को तो आलू फेंककर खाली हाथ लौटना पड़ा था.
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