Ear Tagging पशुपालन छोटे पशु का हो या गाय-भैंस जैसे बड़े पशुओं का, दोनों ही मामलों में जोखिम बहुत होता है. मौत एक भेड़-बकरी की हो या गाय-भैंस की, नुकसान हमेशा हजारों रुपये में ही होता है. लेकिन सरकार की ओर से जारी होने वाला एक 12 डिजिट का खास नंबर पशुपालकों को न सिर्फ जोखिम से बचाता है बल्किल फायदा भी कराता है. क्योंकि इस एक खास नंबर की मदद से ही पशुपालकों को सरकार की सर्विस और नकद योजनाओं का फायदा मिलता है. इस नंबर को ही टैगिंग कहा जाता है.
इस तरह के रंग-बिरंगे टैग आपने अक्सर गाय-भैंस और भेड़-बकरी के कान में देखे होंगे. पशुओं के कान में लगे ये टैग इंसानों की तरह से ही पशुओं का आधार कार्ड है. इस टैग में 12 नंबर होते हैं. इस नंबर से पशु के बारे में हर तरह की जानकारी सरकारी आंकड़ों में दर्ज होती है. यही वजह है कि टैग पर लिखे नंबर को बेवसाइट पर लॉगिन करते ही गाय-भैंस का पूरा चिठ्ठा खुल जाता है.
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि जब पशु का रजिस्ट्रेशन होता है और उसके कान में टैग लगा होता है जिससे सरकारी केन्द्रों पर मुफ्त इलाज कराने में आसानी रहती है. कई बार अगर पशु गंभीर रूप से बीमार होता है तो डॉक्टरों की टीम घर तक भी आ जाती है. टैग लगा होने से पशु के टीकाकरण का पूरा रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है. जब टीका लगने की जरूरत होती है तो सरकारी टीम खुद ही संपर्क कर लेती है.
अगर पशु का पंजीकरण है तो फिर पशु का बीमा कराने में आसानी रहती है. कई बार तो सरकारी योजनाओं के तहत खुद ही बीमा हो जाता है. और जब पशु के साथ कोई अनहोनी होती है तो वक्त से पूरा पैसा मिल जाता है. इतना ही नहीं केन्द्र और राज्य सरकारें समय-समय पर पशु पालकों के लिए कई तरह की योजनाएं लाती हैं. अगर पशु का पंजीकरण पहले से हो रखा है तो योजनाओं का पूरा फायदा मिलने की संभावना रहती है और जल्दी मिलता है. साथ ही पशुओं की संख्या मालूम होने पर सरकार को योजना बनाने में मदद मिलती है. टैगिंग होने के बाद से पशुओं के बीमाकरण में भी धोखाधड़ी की घटनाएं भी कम हो गई हैं.
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