बाजार में नहीं, बैकयार्ड पोल्ट्री में मिलते हैं यह खास अंडे और मुर्गे-मुर्गी

बाजार में नहीं, बैकयार्ड पोल्ट्री में मिलते हैं यह खास अंडे और मुर्गे-मुर्गी

घर, खेत पशुओं के बाड़े के बीच पाले जाने वाले मुर्गे-मुर्गी को बैकयार्ड पोल्ट्री कहते हैं. यहां तरह-तरह की नस्ल के मुर्गे और मुर्गी पाले जाते हैं. कुछ अंडे और चिकन के लिए पाले जाते हैं तो फाइटर मुर्गे सिर्फ शौक के लिए पाले जाते हैं.

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बाजार में नहीं, बैकयार्ड पोल्ट्री में मिलते हैं यह खास अंडे और मुर्गे-मुर्गीdesi egg

बाजार में बिकने वाले सामान्य अंडे और ब्रॉयलर चिकन के अलावा मुर्गे-मुर्गियों की और भी ऐसी खास नस्ल हैं जिनके अंडे के साथ-साथ चिकन भी खाया जाता है. लेकिन खास नस्ल के अंडे और मुर्गे-मुर्गियां बाजार में कम और बैकयार्ड पोल्ट्री में ज्यादा मिलते हैं. ऑनलाइन ऑर्डर करने पर भी अब यह खास अंडे और मुर्गे-मुर्गी मिल जाते हैं. लेकिन ऑनलाइन भी सप्लांई देने वाले वही लोग हैं जो बैकयार्ड पोल्ट्री करते हैं. इंडियन क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी भी अपने फार्म हाउस में बैकयार्ड पोल्ट्री  करते हैं. उन्होंने कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे-मुर्गी पाले हुए हैं.

पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो बैकयार्ड पोल्ट्री का सबसे ज्यादा चलन छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडू और पश्चिुम बंगाल में है. घर, खेत पशुओं के बाड़े के बीच पाले जाने वाले मुर्गे-मुर्गी को बैकयार्ड पोल्ट्री कहते हैं. यहां तरह-तरह की नस्ल के मुर्गे और मुर्गी पाले जाते हैं. कुछ अंडे और चिकन के लिए पाले जाते हैं तो फाइटर मुर्गे सिर्फ शौक के लिए पाले जाते हैं.

कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गी खूब पाले जा रहे हैं बैकयार्ड पोल्ट्री में

बीते चार साल से देशभर में कड़कनाथ नस्ले के मुर्गे-मुर्गी का ऐसा नाम गूंजा है कि इसका एक अंडा 50 से 60 रुपये तक का बिक गया. अभी भी कड़कनाथ मुर्गी का अंडा 30 से 35 रुपये का बिक रहा है. कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गी देखने में काले रंग के होते हैं. यह नस्ल खासतौर पर छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार में पाई जाती है. छत्तीसगढ़ और झारखंड का इस नस्ल पर अपना-अपना दावा है. कड़कनाथ का मीट अभी भी 15 सौ रुपये किलो तक बिक रहा है. जबकि तीन-चार साल पहले तक इसका मीट 4 हजार रुपये किलो पहुंच गया था.

100 रुपये का है फाइटर असील का अंडा

देशी मुर्गे-मुर्गी में असील एक खास नस्ल है. यह सिर्फ बैकयार्ड पोल्ट्री में ही पाला जाता है. हालांकि देसी में कड़कनाथ, वनश्री, निकोबरी, वनराजा, घागुस और सरह‍िंंदी भी बैकयार्ड पोल्ट्री  में पाले जाते हैं. लेकिन असील की अपनी एक खास पहचान है. महंगा होने के चलते असील बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत यह पाले जाते हैं. इसका मीट बहुत कम खाया जाता है. लेकिन अंडे की डिमांड ज्यादा रहती है. सर्दियों में इसका अंडा 100 रुपये तक का बिक रहा है. दवाई के तौर पर भी असील का अंडा खाया जाता है. बाकी डिमांड के हिसाब से मुर्गी वाला जो मांग ले. हैचरी के लिए सरकारी केन्द्रों से ही असील मुर्गी का अंडा 50 रुपये तक का मिलता है. असील मुर्गी पूरे साल में सिर्फ 60 से 70 अंडे देती है. आज भी कुछ लोग इसे शौक के तौर पर पालते हैं.

 

 

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