Dung Business: गजब का है मॉडल! दूध-गोबर बिकेगा...बिजली-खाद बनेगी...पर्यावरण-मिट्टी हेल्दी होंगे अलग...इस डेयरी ने कर दिया कमाल 

Dung Business: गजब का है मॉडल! दूध-गोबर बिकेगा...बिजली-खाद बनेगी...पर्यावरण-मिट्टी हेल्दी होंगे अलग...इस डेयरी ने कर दिया कमाल 

Cow Dung Business अब गाय-भैंस से मिलने वाला दूध ही नहीं गोबर भी बाजरों में बिक रहा है. पशुपालक दूध के साथ-साथ गोबर बेचकर भी मुनाफा कमा रहे हैं. बड़ी-बड़ी डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से गोबर खरीद रही हैं. आम के आम और गुठलियों के दाम की तर्ज पर गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है. यही वजह है कि गोबर को ब्रॉउन गोल्ड कहा जाने लगा है. 

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Dung Business: गजब का है मॉडल! दूध-गोबर बिकेगा...बिजली-खाद बनेगी...पर्यावरण-मिट्टी हेल्दी होंगे अलग...इस डेयरी ने कर दिया कमाल बॉयो गैस प्लांट का फाइल फोटो.

Cow Dung Business गोबर न तो अब फिकता है, और न ही उसे अब जलाया जा रहा है. क्योंकि गोबर अब ब्रॉउन गोल्ड बन चुका है. यही वजह है कि अब दूध और गोबर साथ-साथ बिक रहे हैं. दूध की तरह से गोबर में भी मुनाफा मिल रहा है. दूध के साथ-साथ ही वक्त से गोबर का पेमेंट भी हाथों-हाथ मिल रहा है. इतना ही नहीं बाद में खेतों के लिए सस्ते दाम पर तरल गोबर वापस मिल जाता है. इस तरह कमाई के साथ खेतों की मिट्टी और पर्यावरण की हैल्थ भी बन रही है. देश की कई बड़ी डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से रोजाना हजारों टन गोबर खरीद रही हैं. 

हर सुबह दूध संग कैसे हो रहा गोबर का कारोबार

  • ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी कोऑपरेटिव हर रोज पशुपालकों से दूध खरीदती हैं. 
  • कई बड़ी कोऑपरेटिव ने दूध संग गोबर की खरीदारी भी शुरू कर दी है. 
  • पशुपालक रोजाना सुबह दूध के साथ-साथ गोबर लेकर भी आते हैं. 
  • डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से 50 पैसे किलो के हिसाब से गोबर खरीद रही हैं. 
  • वाराणसी दुग्ध संघ का वाराणसी प्लांट हर महीने करीब दो हजार टन गोबर खरीदता है.
  • ये गुजरात की बनास डेयरी का प्लांट है. 
  • हाल ही में प्लांट ने पशुपालकों को गोबर का 2.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. 

डेयरी प्लांट गोबर का कैसे कर रहे इस्तेमाल 

  • वाराणसी के इस प्लांट पर पशुपालक हर रोज 1.35 लाख लीटर दूध बेचते हैं. 
  • जल्द ही दूध खरीद का ये आंकड़ा डेढ़ लाख लीटर को छूने वाला है. 
  • प्लांट की प्रोसेसिंग क्षमता भी दो लाख लीटर रोजाना की हो चुकी है. 
  • प्लांट में मिल्क पाउडर, फरमेंटेड प्रोडक्ट और वाराणसी की पारंपरिक मिठाइयों भी बनेंगी. 
  • प्लांट में खरीदे गए गोबर से बायोगैस तैयार की जाती है. 
  • इस गैस का इस्तेमाल मिल्क प्रोसेसिंग में किया जाता है. 
  • ये गैस प्लांट की थर्मल और इलेक्ट्रि‍क दोनों ही जरूरतों को पूरा करती है. 
  • मिल्क प्रोसेसिंग में गोबर गैस का इस्तेमाल होने से 50 पैसे लीटर की बचत हो रही है. 
  • गोबर गैस की वजह से मीथेन गैस का उत्सर्जन भी कम हो रहा है. 
  • गोबर बिकने की वजह से गांव भी गंदगी से मुक्त स्वच्छ हो गए हैं. 
  • गैस बनने के बाद गोबर की स्लरी बनती है. 
  • बची हुई स्लरी को वापस पशुपालकों को ही बेच दिया जाता है. 
  • जिन पशुपालकों से दूध खरीदा जाता है उन्हीं को सस्ते दाम पर स्लरी बेची जाती है. 

और कौन काम कर रहा है बॉयो गैस प्लांट पर 

पशुपालकों और डेयरी प्लांट के बीच बॉयो गैस प्लांट को नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड प्रचारित कर रही है. गैस प्लांट का डिजाइन और दूसरी तकनीकी चीजें भी एनडीडीबी की मदद से ही तैयार की गई हैं. बि‍हार में सुधा डेयरी भी इसी पैटर्न पर काम कर रही है. हरियाणा में वीटा डेयरी प्लांट बना रही है. वहीं असम में तो 100 फीसद बिजली की जरूरत बॉयो गैस से ही पूरी की जाएगी. इसी को ध्यान में रखते हुए वहां डेयरी प्लांट बन रहा है.

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