उत्तर प्रदेश का देवरिया पहला जिला है जो पिछले एक महीने से गौ आश्रय केंद्रों पर गायों को चारे के रूप में साइलेज उपलब्ध करा रहा है. जिससे गायों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हो रहा है. साइलेज चारे से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उन्हें अब किसी दवा की जरूरत नहीं पड़ती. डीएम ने बताया कि यह एक नया प्रयोग है. पहले तो गाय इसे खाने में थोड़ा झिझक रही थी. लेकिन अब वह साइलेज चारा बड़े चाव से खा रही है. जिसके चलते अब उनकी सेहत में सुधार होता नजर आ रहा है.
गौरतलब है कि पिछले सत्र में जब नोडल सचिव ने देवरिया जिले की गौशालाओं का निरीक्षण कर शासन को रिपोर्ट दी थी तो प्रदेश के सात जिलों में से एक जिला गौवंश के मामले में भी कुपोषित पाया गया था. जिसके बाद निर्णय लिया गया कि उन्हें भूसे की जगह ऐसा आहार उपलब्ध कराया जाए. ताकि उन्हें कुपोषण से मुक्ति मिल सके. इसलिए साइलेज को चारे के रूप में उपयोग करने का निर्णय लिया गया. क्योंकि इसमें वे सभी पोषक तत्व हैं जो उनके आहार को पूरा करेंगे. इसको लेकर सीतापुर जिले की एक फर्म से टेंडर कराया गया और इसकी सप्लाई देवरिया में होने लगी.
देवरिया जिले में 24 गौशालाएं हैं, जिनमें कान्हा गौशाला एक बड़ी गौशाला और निराश्रित गौ आश्रय केंद्र है. यहां करीब 1745 गायों को संरक्षण मिला हुआ है. उन्हें चारे के रूप में भूसा दिया गया है, जिससे उनका आहार पूरा नहीं होता, जिससे गायें बीमार हो जाती हैं. कुपोषण के कारण इनकी मौत तक हो जाती थी, लेकिन पिछले एक महीने से इन गौशालाओं में भूसे की जगह साइलेज दिया जा रहा है. जिससे इनके स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है. हालाँकि, जहाँ भूसा जमा किया गया है, वहाँ उन्हें भी खिलाना होगा. निर्देश दिए गए हैं कि भविष्य में भूसा नहीं खरीदा जाएगा और गायों को केवल साइलेज चारा ही दिया जाएगा.
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डीएम ने बरहज स्थित कान्हा गौशाला का निरीक्षण किया. इन्हें पाले से बचाने के लिए आश्रय केंद्रों पर अब स्टील की चादरें लगाई जाएंगी, जहां पहले इन्हें बोरे और प्लास्टिक से ढका जाता था. डीएम ने कहा कि जिले में फीड के रूप में एक नया प्रयोग किया गया है. पिछले एक माह से इन्हें साइलेज दिया जा रहा है, जिससे इनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है. वे इसे बड़े चाव से खा रहे हैं. उन्हें पहले एक से दो किलोग्राम साइलेज दिया जाता था, अब तीन से पांच किलोग्राम साइलेज चारे के रूप में दिया जा रहा है.
साइलेज आज का पशु आहार है, यह हरे चारे और अनाज (सांद्रण) के बीच की कड़ी है. साईलेज में हरे चारे और अनाज दोनों के गुण होते हैं और इसमें 15-20% मक्के के दाने होते हैं. इसमें फाइबर और स्टार्च दोनों पाए जाते हैं और इसमें प्रोटीन की मात्रा भी लगभग 8-10 प्रतिशत होती है.
साइलेज बनाने के लिए सबसे पहले मक्के की फसल को दूधिया दाने की अवस्था में भुट्टे सहित काट लिया जाता है और पीस लिया जाता है. फिर इस पिसे हुए चारे को इनक्यूलेंट से उपचारित करके, मशीनों की सहायता से अच्छी तरह दबाया जाता है और एयर टाइट पैक किया जाता है. एयर टाइट बैग में पैक करने पर चारे में किण्वन होता है और लगभग 21 से 30 दिनों में साइलेज तैयार हो जाता है. साइलेज आधुनिक मशीनों द्वारा बनाया जाता है जिन्हें बेलर कहा जाता है. आधुनिक मशीनों से बनाये गये साइलेज की गुणवत्ता बेहतर होती है तथा बर्बादी भी कम होती है.
एक किलो साइलेज की कीमत 8 रुपये 70 पैसे है औसतन एक गोवंश को प्रतिदिन तीन से पांच किलो साइलेज से सम्पूर्ण आहार मिल सकेगा. पहले जो सूखा भूसा खिलाया जाता था वह केवल पेट भरने के लिए था उसमें कभी कभार चोकर वगेरह मिला कर गोवंशों को दिया जाता था. लेकिन साइलेज से इन्हें एक ही फीड में सम्पूर्ण पोषक तत्व मिल पा रहा है.
हमने जिले में एक नवाचार किया है. हमने उनका फ़ीड बदल दिया है. अब उन्हें साइलेज दिया जा रहा है. यहां पिछले एक महीने से गायों को साइलेज दिया जा रहा है. हम इसका आउटपुट देखने आये थे. हमें यह देखकर खुशी हुई कि साइलेज खाने के बाद उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है. पहले वे खाने में झिझकते थे लेकिन अब बड़े चाव से खा रहे हैं. पहले इनका चारा 1 से 2 किलो तक दिया जाता था. अब इसे 3 किलो से बढ़ाकर 5 किलो किया जा रहा है. उम्मीद है कि इसे खाने से गायों की सेहत में तेजी से सुधार होगा.
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