भारतीय दूध-दही, घी-मक्खन और मिठाई की हर जगह तारीफ होती है. लेकिन दूसरे देशों की बात करें तो वो भारतीय घी के बड़े दीवाने हैं. यूएई बड़ी मात्रा में भारत से घी खरीदता है. अब ब्रिटेन भी बड़े घी खरीदारों की कतार में शामिल हो सकता है. ब्रिटेन और भारत के अधिकारी आपस में इस मामले को लेकर बातचीत कर रहे हैं. अगर ये बातचीत कामयाब रहती है तो जल्द ही यूएई के बाद ब्रिटेन भारत से घी खरीदने वालों की कतार में शामिल हो सकता है.
डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में दूध उत्पादन सालाना 23 करोड़ टन पर पहुंच गया है. दूध उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में पहला नंबर है. अगर सेक्स सॉर्टेड सीमेन योजना कामयाब रही है तो दूध उत्पादन का ये आंकड़ा डबल होने में वक्त नहीं लगेगा. लेकिन देश के डेयरी सेक्टर में चर्चा ये हो रही है कि ज्यादा से ज्यादा दूध से प्रोडक्ट कैसे बनाए जाएं.
इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी आरएस सोढ़ी का कहना है कि घी एक आयुर्वेद प्रोडक्ट है. इससे हमारी त्वचा अच्छी होती है, दिमाग भी अच्छा होता है. लेकिन हमे ये बात दूसरे देशों को बतानी होंगी. सभी देशों के किसी न किसी एक डेयरी प्रोडक्ट की पहचान दूसरे देशों में भी है. जब ऐसा हो सकता है तो भारत भी घी में विश्व स्तर पर अपनी पहचान कायम कर सकता है. आज पशुपालन और डेयरी सेक्टर में काम करने की कुछ जरूरत है.
एक्सपोर्ट के आंकड़ों पर जाएं तो विश्व भर के देशों में भारत 15 सौ करोड़ रुपये के घी का कारोबार करता है. कई बड़े देश भारतीय घी के शौकीन हैं. संयुक्त अरब अमीरात ने भारत से साल 2022-23 में 28 मिलियन डॉलर का घी खरीदा था. और भी कई ऐसे देश हैं जो छह मिलियन डॉलर से ज्यादा का सालाना घी खरीदते हैं.
वहीं डॉ. सोढ़ी ने ये भी बताया कि ब्रिटेन और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है. ब्रिटेन ने अपने सेनेटरी और फाइटोसैनिटरी (एसपीएस) नियम के तहत भारतीय डेयरी प्रोडक्ट पर रोक लगा रखी है. इसी प्रतिबंध को हटवाने के लिए भारतीय अधिकारी बात कर रहे हैं. इसके बाद भारतीय घी के लिए ब्रिटेन में बाजार खुल जाएगा.
ये भी पढ़ें- Meat Production: देश की बड़ी यूनिवर्सिटी ने बताया, क्यों बढ़ रहा मीट का उत्पादन और डिमांड
ये भी पढ़ें- Bird Flu: बर्ड फ्लू में भी खाया जा सकता है अंडा, जानें इस पर क्या बोले पोल्ट्री एक्सपर्ट
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today