लोकोक्तियों और कहावतों में बबूल के पेड़ की अक्सर इसके कांटों के चलते आलोचना की गई है, लेकिन बबूल कई मायनों में महत्वपूर्ण है. बबूल का वैज्ञानिक नाम एकैसिया निलोटिका है. यह न सिर्फ औषधीय गुणों से भरपूर है, बल्कि पशुओं के लिए भी पौष्टिक चारे का स्त्रोत है. बबूल की लकड़ी का इस्तेमाल फर्नीचर के रूप में भी किया जाता है. आज हम आपको बबूल के पशुचारे के रूप में उपयोग को लेकर जरूरी जानकारी देने जा रहे हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े झांसी स्थित भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक एस.एन. राम और ए.के. शुक्ला जुड़े ने बबूल में मौजूद पौषक तत्वों के बारे में जरूरी बातें बताई हैं.
ऊंट और बकरियां बबूल की पत्तियों और फलियों को चाव से खाते हैं. जब शुष्क मौसम में चारा मिलना मुश्किल होता है तब भी बबूल पशुचारा देने में सक्षम होता है, क्योंकि यह हमेशा हरा-भरा रहता है. बबूल एक सामान्य आकार का पेड़ है. यह ऊपर से गोलाकार होता है. इसकी छाल खुरदरी होने के साथ काली या गहरे भूरे रंग की होती है. मार्च से मई के बीच बबूल में नई पत्तियां निकलती हैं, जिससे ठीक पहले पुरानी पत्तियां अपने आप झड़ जाती हैं.
पशुओं को बबूल की पत्तियां और छोटी-छोटी नई शाखाएं बेहद पंसद आती हैं, जो पौष्टिक होने के साथ ही पाचन के लिहाज से भी अच्छी होती हैं. इनमें 13 से 20 प्रतिशत प्रोटीन , 9 से 20 प्रतिशत रेशे (फाइबर), कैल्शियम 1.5-3.0 प्रतिशत, फॉस्फोरस 0.1-0.5 प्रतिशत, मैग्नीशियम की मात्रा 0.4-0.6 प्रतिशत होती है. सालभर में बबूल के पेड़ से 4 से 5 टन पत्तियां अपने आप झड़कर गिरती हैं.
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बबूल की फलियां भी चारे के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं. फलियों में 14-16 प्रतिशत प्रोटीन, 8-42 प्रतिशत रेशा, 0.8-1.1 प्रतिशत कैल्शियम और 0.1-0.3 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है. औसतन सालभर में एक बबूल के पेड़ से 18 किलोग्राम फलियां मिलती हैं. लेकिन उपयुक्त जलवायु में प्रति वृक्ष 40-60 किलो ग्राम फलियां मिलती हैं.
आमतौर पर बबूल प्राकृतिक वनों में पाया जाता है, लेकिन इसे उगाना भी बेहद आसान है. बबूल का पेड़ तुलनात्मक रूप से दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत में ज्यादा बढ़ता है. उत्तर भारत में ऊंचाई 40-50 फीट तक पहुंच जाती है. अच्छी जल निकासी वाली नमीयुक्त बलुई दोमट मिट्टी बबूल की बढ़वार के लिए अच्छी होती है. खारे पानी वाली मिट्टी में पर्याप्त नमी नहीं होने की वजह से इसकी बढ़वार अच्छी नहीं होती है.
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