बकरीद पर कुर्बानी के लिए बकरों की खरीद-फरोख्त हो रही है. गांव-शहर की बकरा हाट और बाजारों में रोजाना बड़ी संख्या में बकरे आ रहे हैं. बकरों के खरीदार भी अपनी पसंद के हिसाब से ही बाजार और हाट का रुख करते हैं. जानकारों की मानें तो बकरों की नस्ल बाजार और हाट के हिसाब से ही आती है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि कोई एक नस्ल किसी बाजार या हाट में बिल्कुल ही नहीं आती हो. यही वजह है कि उत्तर भारत की चार बकरा मंडी ऐसी हैं जहां कुछ खास नस्ल के बकरे मिलते हैं. खासतौर पर बकरीद के लिए ये बकरों की बड़ी मंडी कही जाती हैं. कुछ लोग बकरों को बचपन से ही पालते हैं और फिर उनकी कुर्बानी देते हैं.
जो पालते नहीं हैं ऐसे लोगों का बकरा मंडियों में दो महीने पहले से आना शुरू हो जाता है. बकरे के साथ-साथ भेड़ की कुर्बानी भी बकरीद के दौरान दी जाती है. कई-कई दिन पहले से बकरा खरीदने की एक वजह ये भी है कि कुर्बानी के लिए खरीदे जाने वाले बकरे खूब जांच-पड़ताल के बाद ही खरीदे जाते हैं. जैसे बकरे को कहीं चोट न लगी हो, सींग टूटा न हो, लंगड़ा न हो आदि. अगर बकरे में ये सब नुक्स नहीं हैं और खूबसूरत है तो उसके बाजार में अच्छे दाम मिल जाते हैं.
बकरीद के दौरान उत्तर भारत में बकरों की चार बड़ी मंडी लगती हैं. इन्हीं मंडियों से निकला बकरा देश के दूसरे इलाकों में बिकने के लिए जाता है. बकरों की ये बड़ी मंडी- जसवंत नगर (यूपी), कालपी (मध्य प्रदेश), महुआ, अलवर (राजस्थान) और मेवात (हरियाणा) मंडी हैं. जानकारों की मानें तो इन सभी चार मंडियों में खास छह नस्ल के बकरों की खूब खरीद-फरोख्त होती है. इन मंडियों से ही बकरे महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल तक भी जाते हैं.
देश में बकरे-बकरियों की करीब 41 से ज्यादा नस्ल हैं. इसमे से कुछ सिर्फ दूध के लिए पाली जाती हैं तो कुछ दूध और मीट दोनों के लिए पाले जाते हैं. यूपी की खास नस्ल बरबरी, जमनापारी हैं. बरबरी नस्ल के बकरे को बरबरा बकरा कहा जाता है. इसकी देश के अलावा अरब देशों में भी खासी डिमांड रहती है. जखराना, सिरोही, सोजत राजस्थान के तो तोतापरी नस्ल का बकरा हरियाणा का है.
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