World Goat Day 2023: बकरी पालन के लिए मशहूर है झारखंड का यह गांव, जानें कैसे यहां पर हुई इसकी शुरुआत

World Goat Day 2023: बकरी पालन के लिए मशहूर है झारखंड का यह गांव, जानें कैसे यहां पर हुई इसकी शुरुआत

गांव में बकरी पालन में बदलाव की शुरुआत तब हुई जब बिरसा कृषि विश्विद्यालय अंतर्गत वेटेनरी कॉलेज ने गांव को गोद लिया. गांव के ही युवक आबिद अंसारी को बकरियों का वैक्सीनेशन और इलाज करने के लिए प्रशिक्षित किया गया.

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World Goat Day 2023: बकरी पालन के लिए मशहूर है झारखंड का यह गांव, जानें कैसे यहां पर हुई इसकी शुरुआत चामगुरु गांव में घर के बाहर बैठी बकरी फोटोः किसान तक

विश्व बकरी दिवस पर आज जिक्र झारखंड की राजधानी रांची जिले के एक ऐसे गांव की जिस गांव को आस-पास के गांवों के लोग बकरी गांव के रुप में जानते हैं. इसके पीछे की कहानी यह है कि इस गांव में काफी संख्या में बकरी पालन किया जाता है. गांव के हर घर में बकरी पालन किया जाता है. गांव में बकरियों को किसी प्रकार की बीमारी से बचाव करने के लिए एक ग्रामीण को प्रशिक्षित किया गया है,जो समय-समय पर किसानों के घर जाकर बकरियों का टीकाकरण करते हैं और किसानों को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करने की जानकारी देते हैं. इस तरह से गांव में बकरियों की मृत्यु दर में कमी आई है और ग्रामीणों की आय भी बढ़ी है. 

रांची के कांके प्रखंड में स्थित इस गांव का नाम चामगुरु है. यह कांके में स्थित रिंग रोड के किनारे स्थित है. इस गांव में पहले पलायन एक बड़ी समस्या थी, लोगों के पास रोजगार के साधन नहीं थे इसलिए वो काम की तलाश में बाहर पलायन करते थे या शहर जाकर मजदूरी करते थे. उस वक्त भी गांव में बकरी पालन होता था, पर उनकी मात्रा बेहद कम थी, कम संख्या में लोग बकरी पालन करते थे, और यह एक घाटे का सौदा होता था क्योंकि अगर किसी प्रकार की बीमारी आ गई तो दवा और इलाज के अभाव में काफी संख्या में बकरियों की मौत हो जाती थी. 

बीएयू ने गोद लेकर बदल दी गांव की तकदीर

गांव में बकरी पालन में बदलाव की शुरुआत तब हुई जब बिरसा कृषि विश्विद्यालय अंतर्गत वेटेनरी कॉलेज ने गांव को गोद लिया. गांव के ही युवक आबिद अंसारी को बकरियों का वैक्सीनेशन और इलाज करने के लिए प्रशिक्षित किया गया. गांव में किसानों के बीच अच्छी नस्ल की ब्लैक बंगाल बकरों से बकरियों की ब्रीडिंग कराई गई. इससे गांव में अच्छी नस्ल की बकरिया हुई. गांव में ही समय-समय पर किसानों को बकरी पालन से संबंधित सलाह दी गई, इसका फायदा यह हुआ कि गांव में बकरियों की मृत्यु दर में कमी आई और गांव में बकरियों की संख्या बढ़ती चली गई. आज गांव में प्रत्येक परिवार के पास औसत 15 बकरियां हैं. इनकी देखरेख आमतौर पर घर की महिलाएं ही अधिक करती है इससे प्रति परिवार की आमदनी 40 से 50 हजार रुपए प्रति वर्ष तक बढ़ गई है. 

बकरियों की महामारी पीपीआर बीमारी

आबिद ने बताया कि इस बार गांव में बकरियों की महामारी कही जाने वाली पीपीआऱ का प्रकोप गांव में हुआ इसके कारण गांव में लगभग 200 बकरियों की मौत हो गई. हालांकि वैक्सीनेशन भी किया गया पर इसके बावजूद बकरियों को बचाने में वो नाकामयाब रहे. इस बीमारी में बकरियों को तेज बुखार आता है. मुह में घाव हो जाता है. दस्त होते हैं और आंख से पानी गिरता है. सही समय पर इलाज नहीं होने पर बकरियों की मौत हो जाती है. एहतियात के तौर पर पीपीआर से संक्रमित बकरी को अन्य बकरियों के संपर्क में आने से बचाना चाहिए ऐसे में बीमारी के प्रसार को रोकने में मदद मिलती है. 

 

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