मछली पालन के क्षेत्र में झारखंड आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहा है. सरकारी योजनाओं और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से नए और युवा मत्स्यपालक मछली पालन से जुड़ रहे हैं. इससे राज्य में मछली उत्पादन बढ़ा है, साथ ही यह रोजगार का एक बेहतरीन साधन बन कर उभरा है. बड़ी संख्या में युवा इससे जुड़ रहे हैं और रोजगार पा रहे हैं. हालांकि एक तथ्य यह भी है कि अभी भी रांची के बाजारों में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल से आई मछलियों का दबदबा है. क्योंकि मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पा रहा है.
जबकि जो मछलियां बाहर से मंगाई जाती है उन्हें लंबे समय तक ताजा रखने के लिए उनपर केमिकल का छिड़काव किया जाता है. इसके कारण उन मछलियों को खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इन समस्याओं को देखते हुए झारखंड मत्स्य निदेशालय ने एक नया प्लान तैयार किया है. इस नए प्लान के तहत अब झारखंड में भी पहली बार सिंघी, मांगूर, टेंगरा और पाबदा जैसी प्रजाति की मछलियों का उत्पादन शुरू किया जाएगा. वर्तमान में कुछ मछलीपालक अपने फार्म में छोटे पैमाने पर इन मछलियों का पालन करते हैं.
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विभाग ने राज्य में इन मछलियों का उत्पादन करने की योजना के तहत रांची में 30 और पूरे राज्य में 115 तालाबों का चयन किया है. इन तालाबों में प्रशिक्षित मछली पालक इन मछलियों का पालन करेंगे. इसके अलावा इन तालाबों में पंगासियस मछली का भी पालन किया जाएगा. इसके लिए विभाग ने 24 मत्स्यपालकों की एक टीम को प्रशिक्षण दिया है. उस सभी को प्रशिक्षण के लिए विभाग की तरफ से केंद्रीय मीठा पानी जलकृषि अनुसंधान संस्थान भुवनेश्वर के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र में भेजा गया था. प्रशिक्षण पाने के बाद विभाग के साथ-साथ सभी लोग अब उत्पादन की तैयारियों में जुट गए हैं.
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विभाग की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ रांची में हर साल 12 हजार मीट्रिक टन की मांग होती है. जबकि मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं होता है. पूरे झारखडं की बात करें तो राज्य में 2.10 लाख टन मछली का उत्पादन होता है. जबकि राज्य में 2.70 लाख टन मछली के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. फिलहाल राज्य में देशी आईएमसी (इंडियन मेजर कार्प) प्रजाति की मछलियां जैसे रोहू, कतला और मृगल के अलावा पंगासियस मछली का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. निदेशालय की देखरेख में 700 केज में पंगासियस मछली का पालन किया जाता है.
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