पराली नहीं अब प्रॉफिट है, देखिए कैसे किसान ने बदली सोच, कमा रहे मुनाफा

पराली नहीं अब प्रॉफिट है, देखिए कैसे किसान ने बदली सोच, कमा रहे मुनाफा

करनाल के किसान अनुज ने पराली जलाने की जगह बायोफ्यूल बंडल बनाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी का स्रोत बनाया है. जानिए उनकी सफलता की कहानी और कैसे आप भी इस आधुनिक और टिकाऊ खेती को अपना सकते हैं.

अब पराली से होगी जबरदस्त कमाईअब पराली से होगी जबरदस्त कमाई
क‍िसान तक
  • Noida ,
  • Oct 16, 2025,
  • Updated Oct 16, 2025, 5:06 PM IST

हर साल सर्दियों में हरियाणा और पंजाब के आसमान में धुंआ छा जाता था, क्योंकि किसान खेतों में पराली जलाते थे. लेकिन करनाल जिले के डबकोली गांव के किसान अनुज ने इस सोच को बदल दिया है. उन्होंने पराली को जलाने की बजाय उसका सही उपयोग करके न सिर्फ पर्यावरण को बचाया, बल्कि एक नया कमाई का रास्ता भी खोज निकाला.

पर्यावरण-हितैषी कदम

अनुज ने थे ट्रिब्यून को बताया की उनका मानना है कि खेती को आधुनिक, लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए. इसी सोच के साथ उन्होंने दो साल पहले एक स्टबल मैनेजमेंट मशीन खरीदी. इससे उन्होंने खेत में बची पराली को बायोफ्यूल के बंडल (गांठें) बनाना शुरू किया. धीरे-धीरे उन्होंने अपने गांव और आसपास के खेतों की भी पराली इकट्ठा कर बंडल बनाना शुरू किया और उद्योगों को बेचना शुरू कर दिया.

अधिक आय का बेहतरीन ज़रिया

पराली से बनने वाले ये बंडल उद्योगों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होते हैं. इससे अनुज को हर महीने एक अच्छी कमाई होने लगी. अब वो एक सफल कृषि-उद्यमी बन चुके हैं और दूसरे किसानों को भी यह तरीका अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

सरकारी मदद और सब्सिडी

अनुज बताते हैं कि पराली प्रबंधन मशीन पर सरकार सब्सिडी देती है, जिससे किसानों को यह तकनीक अपनाना आसान हो जाता है. इसके अलावा, सरकार प्रति एकड़ ₹1200 भी देती है अगर कोई किसान पराली नहीं जलाता.

अन्य किसान भी सीख रहे हैं अनुज से

अनुज की इस पहल को देखने और समझने के लिए अब कई किसान उनके खेत पर आते हैं. हाल ही में कृषि विभाग की एक टीम ने भी उनके काम को सराहा.

कृषि उपनिदेशक डॉ. वज़ीर सिंह ने कहा, "अनुज जी बेहतरीन काम कर रहे हैं. पराली को कचरा नहीं, बल्कि खेत में पड़ी दौलत समझें. अगर सभी किसान इसे समझें, तो पर्यावरण भी बचेगा और आमदनी भी बढ़ेगी."

पराली से बचाएं पर्यावरण, बढ़ाएं आमदनी

अनुज का यह मॉडल साबित करता है कि अगर सोच बदली जाए और नई तकनीक अपनाई जाए, तो खेती से जुड़ी पुरानी समस्याओं को भी मौके में बदला जा सकता है. पराली अब बोझ नहीं, कमाई का साधन बन चुकी है. अब जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस राह पर चलें और पर्यावरण के साथ-साथ अपनी आमदनी भी सुधारें.

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