हर साल सर्दियों में हरियाणा और पंजाब के आसमान में धुंआ छा जाता था, क्योंकि किसान खेतों में पराली जलाते थे. लेकिन करनाल जिले के डबकोली गांव के किसान अनुज ने इस सोच को बदल दिया है. उन्होंने पराली को जलाने की बजाय उसका सही उपयोग करके न सिर्फ पर्यावरण को बचाया, बल्कि एक नया कमाई का रास्ता भी खोज निकाला.
अनुज ने थे ट्रिब्यून को बताया की उनका मानना है कि खेती को आधुनिक, लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए. इसी सोच के साथ उन्होंने दो साल पहले एक स्टबल मैनेजमेंट मशीन खरीदी. इससे उन्होंने खेत में बची पराली को बायोफ्यूल के बंडल (गांठें) बनाना शुरू किया. धीरे-धीरे उन्होंने अपने गांव और आसपास के खेतों की भी पराली इकट्ठा कर बंडल बनाना शुरू किया और उद्योगों को बेचना शुरू कर दिया.
पराली से बनने वाले ये बंडल उद्योगों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होते हैं. इससे अनुज को हर महीने एक अच्छी कमाई होने लगी. अब वो एक सफल कृषि-उद्यमी बन चुके हैं और दूसरे किसानों को भी यह तरीका अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
अनुज बताते हैं कि पराली प्रबंधन मशीन पर सरकार सब्सिडी देती है, जिससे किसानों को यह तकनीक अपनाना आसान हो जाता है. इसके अलावा, सरकार प्रति एकड़ ₹1200 भी देती है अगर कोई किसान पराली नहीं जलाता.
अनुज की इस पहल को देखने और समझने के लिए अब कई किसान उनके खेत पर आते हैं. हाल ही में कृषि विभाग की एक टीम ने भी उनके काम को सराहा.
कृषि उपनिदेशक डॉ. वज़ीर सिंह ने कहा, "अनुज जी बेहतरीन काम कर रहे हैं. पराली को कचरा नहीं, बल्कि खेत में पड़ी दौलत समझें. अगर सभी किसान इसे समझें, तो पर्यावरण भी बचेगा और आमदनी भी बढ़ेगी."
अनुज का यह मॉडल साबित करता है कि अगर सोच बदली जाए और नई तकनीक अपनाई जाए, तो खेती से जुड़ी पुरानी समस्याओं को भी मौके में बदला जा सकता है. पराली अब बोझ नहीं, कमाई का साधन बन चुकी है. अब जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस राह पर चलें और पर्यावरण के साथ-साथ अपनी आमदनी भी सुधारें.
ये भी पढ़ें:
गन्ने के FRP के मुकाबले इथेनॉल और चीनी का MSP बढ़ाने की मांग, ISMA ने सरकार को चेताया
Stubble Burning: पराली से फिर बिगड़ने लगी हवा, पंजाब में अब तक 176 केस दर्ज