ओडिशा के ढेंकानाल किसान अरक्षित पोई (53 वर्ष) ने मछलीपालन में बड़ा नाम कमाया है. वे राइतला गांव के रहने वाले हैं जिन्होंने एक छोटे तालाब से शुरुआत की. बाद में उनका यह काम इतना बढ़ गया कि अब उन्हें किसी और काम के लिए फुरसत नहीं. पोई ने 2017 में 0.1 हेक्टेयर तालाब से मछलीपालन का काम शुरू किया. इसके लिए उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय मीठाजल जीवनपालन अनुसंधान संस्थान, भुबनेश्वर (ICAR-SIFA) के वैज्ञानिकों से ट्रेनिंग ली. इसके बाद मछलीपालन की उन्नत तकनीकों को अपनाया जिससे उत्पादन और आय दोनों में वृद्धि हुई. इसी का नतीजा है कि 2024 में उन्हें राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस पर उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया.
साल 2017 में मत्स्य पालन की शुरुआत करते समय पोई ने कई चुनौतियों का सामना किया. इनके पास केवल 0.1 हेक्टेयर तालाब और सीमित संसाधन थे. इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने की दृढ़ इच्छाशक्ति सफलता की प्रेरणा थी. इनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि सामान्य केवल मैट्रिक तक थी, लेकिन दृढ़ संकल्प और मेहनत के बल पर इन्होंने सफलता की इच्छा प्रकट की. साल 2021 में पोई ने वैज्ञानिक तरीकों से मत्स्यपालन की प्रथाओं को अपनाते हुए अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया.
उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान (भाकृअनुप-सीफा) और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत परियोजना से मदद मिली. इसके तहत मत्स्य पालकों को मीठापानी जलकृषि पर ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद पोई ने बड़े पैमाने पर मछलीपालन का काम शुरू किया और आज 8 तालाबों में कार्प पालन कर रहे हैं. इनमें 6 तालाबों में मछली के बीज पाले जाते हैं. इसके अलावा कार्प पालन के लिए 2 तालाबों को पट्टे पर लिया है.
वैज्ञानिक तकनीक को अपनाने से पहले अरक्षित पोई की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 3.7 क्विंटल थी. हालांकि, सीफा की वैज्ञानिक कार्प पालन टेक्नोलॉजी के साथ, उनका उत्पादन तीन वर्षों में 14 क्विंटल तक बढ़ गया. उनकी शुद्ध आय भी साल 2020-21 में 35,000 रुपये से बढ़कर साल 2023-24 में 2,80,000 रुपये हो गई. इस अवधि में उनकी उत्पादन क्षमता 3.7 क्विंटल/हेक्टेयर से बढ़कर 17.5 क्विंटल/हेक्टेयर हो गई. बीज पालन में भी उन्होंने उत्कृष्ट रिजल्ट हासिल किए, जिसमें 3 महीने में 80-90 मि.मी. के अंगुलिका मिले, जिनकी जिंदा रहने की दर 55-60 प्रतिशत है जिसमे से ये कुछ स्थानीय बिक्री के लिए, कुछ आहार के लिए और बाकी अगले चरण में उत्पादन के लिए उपयोग करते हैं.
पोई की उपलब्धियां असाधारण और अनदेखी हैं. यही वजह है कि 2024 में राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस पर, आईसीएआआर-सीफा ने वैज्ञानिक मत्स्य पालन में इनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया.