यह कहानी बिहार के पटना शहर के रहने वाले पुष्कर रॉय की है जिन्होने पढ़ाई तो बीसीए की की थी. लेकिन आज वे अपनी मेहनत और हुनर के दम पर टेराकोटा यानी मिट्टी बर्तन के क्षेत्र में एक अलग पहचान बना रहे हैं. ये पटना सहित बिहार के पहले ऐसे युवक हैं, जिन्होंने टेरकोटा के क्षेत्र में अपना खुद का स्टार्टअप शुरू किया है. मिट्टी से विभिन्न तरह के खूबसूरत बर्तन सहित सजावट के प्रोडक्ट बनाते हुए खुद का सुंदर भविष्य गढ़ रहे हैं. साथ ही अन्य लोगों के लिए रोजगार का मार्ग खोल रहे हैं. वे कहते हैं कि बचपन से ही किताबों से ज्यादा मिट्टी से लगाव रहा. पिता शिक्षक हैं, जिसकी वजह से मिट्टी की जगह किताबों से नाता रखना पड़ा. लेकिन बीसीए की पढ़ाई के दौरान मिट्टी से जुड़े कई तरह के प्रोडक्ट बनाए. लोगों ने काम को सराहा. उसके बाद कोविड के भयानक दौर में इसी को अपना करियर चुना और टेराकोटा के क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू किया.
पुष्कर रॉय के सपने को उड़ान देने के लिए उनके दो अन्य दोस्त साथ दे रहे हैं. ये मिट्टी के बर्तन के साथ सिरामिक से बने फ्लावर पोर्ट, सजावट के सामान सहित पत्थर के उत्पाद बना रहे हैं. पिछले तीन सालों के दौरान इनके प्रोडक्ट की मांग बढ़ी है. ये कहते हैं कि अब धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तन की मांग बढ़ रही है. वहीं अभी महीने का साठ से सत्तर हजार के आसपास कमाई हो जाती है जिससे हाल के समय में जीवन ठीक से चल रहा है.
तीन साल पहले की बातों को याद करते हुए पुष्कर रॉय किसान तक को बताते हैं कि जब उनके पिता को पता चला कि उन्होंने मिट्टी के प्रोडक्ट को अपना कैरियर चुना है, तो वे बहुत नाराज हुए. पिता जी का कहना था कि इसमें कोई भविष्य नहीं है. पिता जी ने कहा था, जब तुम्हें अपने मन की करनी है तो घर छोड़कर जा सकते हो. लेकिन आज तीन साल बाद जब कोई उनसे पूछता है कि बेटा क्या करता है, तो वे बताते हैं कि टेराकोटा के क्षेत्र में अपना स्टार्टअप शुरू किया है. आगे कहते हैं कि अभी और भी बहुत कुछ इस क्षेत्र में करना है. अब बिहार के कई शहर मॉडर्न रहे हैं. यहां के लोग नेचर के साथ जुड़ते हुए मिट्टी से बने बर्तनों की मांग कर रहे हैं. लेकिन मिट्टी की तुलना में सिरामिक बर्तनों की मांग अभी कम है. लेकिन आने वाले दिनों में मांग बढ़ने की उम्मीद है.
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पुष्कर रॉय कहते हैं कि उन्होंने पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से इस क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया है. उसके बाद 2020 कोविड के दौर में टेराकोटा के क्षेत्र में कदम रखा. लोगों से तारीफ मिलने के बाद 2022 में इसे कमर्शियल रूप में करना शुरू किया. इनके साथ काम करने वाले आदित्य हर्षवर्धन कहते हैं कि हर कोई अपने बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, सरकारी नौकरी करवाना चाहता है. लेकिन शिल्प के क्षेत्र में कोई नहीं लाना चाहता है. लोगों को सोच बदलने की जरूरत है. इसके साथ ही सरकार को भी कदम बढ़ाना होगा. तब यह उद्योग एक सफल मुकाम हासिल कर पाएगा.