हरियाणा के हिसार जिले से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है, जिसने यह साबित कर दिया कि अगर किसान मेहनत के साथ नई तकनीक को अपनाएं तो वे किसी भी क्षेत्र में सफलता की मिसाल बन सकते हैं. हिसार के आजाद नगर में रहने वाले दो पढ़े-लिखे युवा किसान भाइयों- नवीन सिंधु और प्रवीन सिंधु- ने घर की छत पर बने एक कमरे को 'कश्मीर' में तब्दील कर दिया है, जहां वे ऐरोफोनिक तकनीक से शुद्ध केसर की खेती कर रहे हैं.
केसर की खेती सामान्यत: जम्मू-कश्मीर के ठंडे इलाकों में होती है, लेकिन सिंधु बंधुओं ने यह काम हरियाणा जैसे गर्म प्रदेश में किया है, वह भी घर के अंदर. उनके अनुसार, केसर की खेती से वे तीन महीने में लाखों रुपये कमा लेते हैं. पिछले छह वर्षों से दोनों भाई इस काम में लगे हुए हैं और अब तक देशभर के 100 से ज्यादा युवाओं को इसकी निःशुल्क ट्रेनिंग दे चुके हैं.
नवीन सिंधु ने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है, जबकि प्रवीन सिंधु बीटेक डिग्रीधारी हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों ने पारंपरिक नौकरी की राह न चुनते हुए खेती के क्षेत्र में कदम रखा और कुछ अलग करने की ठानी. उन्होंने यूट्यूब और इंटरनेट से जानकारी लेकर ऐरोफोनिक विधि को अपनाया और करीब 14x10 फीट के कमरे में केसर की खेती शुरू कर दी.
दोनों भाई बताते हैं कि ऐरोफोनिक विधि में मिट्टी की जरूरत नहीं होती. इसमें पौधे को एक संतुलित वातावरण में ऑक्सीजन, पोषक तत्व और पानी का घोल दिया जाता है. इससे न केवल उत्पादन बढ़ता है बल्कि केसर की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है.
उनका कहना है कि इस विधि से एक बीज से तीन फूल निकलते हैं और सही तापमान बनाए रखने के लिए कमरे में 10 से 24 डिग्री सेल्सियस तापमान और 65% से 85% तक ह्यूमिडिटी रखनी पड़ती है. इस खेती की शुरुआत में करीब 10 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें बिजली, एसपी चिलर और अन्य तकनीकी उपकरण शामिल हैं.
नवीन सिंधु बताते हैं कि असली केसर की पहचान उसके स्वाद और रंग से की जा सकती है. शुद्ध केसर को पानी में डालने पर उसका रंग धीरे-धीरे पीला होता है. जीभ पर रखने पर इसका स्वाद हल्का कड़वा होता है और जीभ पीली हो जाती है. केसर के पौधे तीन अवस्थाओं में काम करते हैं- फूल, पीली पत्ती और शुद्ध केसर.
एक बार की फसल में करीब तीन किलो सूखी केसर निकलती है, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब साढ़े पांच लाख रुपये प्रति किलो तक होती है. उनकी केसर आज भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, बांग्लादेश जैसे देशों में भी सप्लाई हो रही है.
नवीन और प्रवीन सिंधु की सबसे खास बात यह है कि वे अपने अनुभवों को दूसरों से साझा करने में यकीन रखते हैं. अब तक वे देशभर के 100 से ज्यादा युवाओं को इस तकनीक की निःशुल्क ट्रेनिंग दे चुके हैं. दोनों भाइयों का मानना है कि अगर किसान इस विधि को अपनाएं तो वे अपनी आमदनी को दोगुना कर सकते हैं.
जो युवा किसान केसर की खेती सीखना चाहते हैं, वे उनसे संपर्क करके ऑफलाइन या ऑनलाइन ट्रेनिंग ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि आज देश के अलग-अलग राज्यों में कई युवा उनसे ट्रेनिंग लेकर इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं और सालाना 10 से 20 लाख रुपये तक की कमाई कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर के बाद अब हरियाणा जैसे प्रदेश में भी केसर की खेती संभव हो गई है, वह भी घर के एक कमरे के अंदर. यह उदाहरण बताता है कि तकनीक और नवाचार अगर सही दिशा में अपनाए जाएं तो किसान भी उद्यमी बन सकते हैं.
सिंधु बंधुओं की यह पहल न केवल किसानों को नई राह दिखा रही है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न कर रही है. आने वाले समय में अगर सरकार और कृषि विभाग इस तरह की पहलों को समर्थन दे, तो यह मॉडल पूरे देश में किसानों की आय बढ़ाने का आधार बन सकता है.