बंजर जमीन में शुरू की सेब की प्राकृतिक खेती, अब कृषि विभाग भी करता है इनके जज्बे को सलाम

बंजर जमीन में शुरू की सेब की प्राकृतिक खेती, अब कृषि विभाग भी करता है इनके जज्बे को सलाम

धर्मशाला के प्रीतम चंद के पास कुछ बंजर जमीन थी. उसमें कुछ नहीं होता था. मगर मनरेगा स्कीम में उन्होंने सेब की खेती करने का फैसला किया. वह स्कीम उनके काम आई और आज वे सेब बेचकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 23, 2025,
  • Updated Jun 23, 2025, 10:41 PM IST

खेती की सफलता की यह कहानी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के किसान प्रीतम चंद की है. किसान प्रीतम चंद कनेड़ ग्राम पंचायत के हैं जिनकी पास कभी बहुत छोटी जमीन थी. वह भी बंजर. उसमें कुछ नहीं होता था. बाकी कुछ खेत थे जिसमें वे छोटे पैमाने पर खेती करते थे और अपना गुजारा करते थे. मगर बाद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम (MGNREGA) ने उनकी किस्मत बदल दी. इस योजना के तहत उन्होंने अपनी बंजर जमीन में सेब की खेती शुरू की. और आज वे इसी खेती से भरपूर कमाई कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बसे प्रीतम चंद की कहानी खेती में इनोवेशन के साथ सशक्तिकरण की कहानी है. पहले उनकी जमीन बंजर थी जो अब एक फलते-फूलते सेब के बगीचे में तब्दील हो गई है. इससे उन्हें न सिर्फ एक स्थिर कमाई मिल रही है, बल्कि उनके आसपास के लोगों में उन्हें नया सम्मान भी मिल रहा है. लोकल बाजारों में सेब बेचकर प्रीतम ने अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर ली है. इतना ही नहीं, वे इस इलाके के छोटे और सीमांत किसानों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं.

प्रीतम चंद की प्राकृतिक खेती

सबसे खास बात ये है कि प्रीतम की खेती की यह यात्रा पूरी तरह से प्राकृतिक है. यानी वे सेब की खेती को प्राकृतिक तौर तरीकों से कर रहे हैं. अब वे अपने गांव में इसी तरह की खेती की वकालत कर रहे हैं और दूसरे किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं. 

धर्मशाला के तत्कालीन खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) अभिनीत कात्यायन ने 'द ट्रिब्यून' से इस खेती के बारे में बात करते हुए कहा, "2020-21 में प्रीतम चंद की जमीन को मनरेगा के तहत सेब के बागान के लिए चुना गया था. 1 लाख रुपये की परियोजना लागत के साथ - जिसमें मज़दूरी के लिए 52,074 रुपये शामिल थे - 0.4 हेक्टेयर में 330 सेब के पौधे लगाए गए." आज, वे पौधे लंबे और फलदार हैं. पहली ही फसल में प्रीतम ने 250 किलो सेब से 30,000 रुपये कमाए, जिनमें से लगभग आधे सेब अभी भी पेड़ों पर लगे हुए हैं. रॉयल और गोल्डन किस्में जो वे उगाते हैं, उनकी कड़ी मेहनत का सबूत हैं.

धान-गेहूं की जगह सेब की खेती

प्रीतम उसी इलाके से आते हैं जहां पहले गेहूं और धान की खेती होती थी. लोगों को इसके अलावा दूसरी खेती में दिलचस्पी नहीं थी. यहां तक कि लोग दूसरी खेती के बारे में रिस्क लेना नहीं चाहते थे. लेकिन प्रीतम ने नई राह चुनी और इनोवेशन को जरिया बनाया. उसमें सफलता भी मिली. इस सफलता को उदाहरण बनाते हुए धर्मशाला का कृषि विभाग बाकी किसानों को धान और गेहूं से निकल कर सेब की खेती के लिए प्रेरित करता है.

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