Success Story UP Farmer: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले का एक युवा किसान लौकी की खेती (Bottle Gourd Farming) में सफलता की नई इबारत लिख रहा हैं. बीते 5 वर्षों से दो बीघे पुश्तैनी जमीन पर लौकी की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान आनंद कुमार ने किसान तक से बातचीत में बताया कि वह मचान विधि से लौकी की खेती करते हैं. वह बताते हैं कि इस विधि की खासियत यह है कि इसमें 30 दिनों में लौकी की नर्सरी तैयार हो जाती है. उसके बाद बेलदार पौधे को मचान के ढांचे पर झाड़ के बीच फैला दिया जाता है. इससे जब लौकी में फल निकलते हैं, तो वह जमीन को नहीं छूते. बल्कि बेल मचान के सहारे हवा में लटकती रहती है. उन्होंने बताया कि 30 से 40 हजार रुपए की लागत आती है. जबकि एक सीजन में 1.5 लाख रुपए तक कमाई आसानी से हो जाती है.
12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आनंद कुमार अपने पिता के पुश्तैनी जमीन पर खेती किसानी करने लगे. हम मौसमी सब्जियों की खेती पहले से करते आ रहे है. वह सर्दियों के मौसम में पत्ता गोभी, फूलगोभी, मूली तो गर्मी के मौसम में लौकी, कद्दू ,तुरई, मिर्च की खेती करते हैं. हमारी लौकी हैदरगढ़ की सब्जी मंडी में बिक्री के लिए जाती हैं. उन्होंने बताया कि मचान विधि से खेती करने से लौकी का उत्पादन ज्यादा होता है, वहीं लौकी की पैदावार बिल्कुल सीधी होती है. लौकी की फसल की बुवाई फरवरी माह के आखिर मे मार्च में की जाती है. इसके बीजों की खेत में रोपाई के लगभग 50 से 55 दिनों के बाद इसकी फसल पैदावार देना आरंभ कर देती है.
शिवगढ़ कस्बा क्षेत्र अंतर्गत शिवगंज गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान आनंद कुमार ने आगे बताया कि लौकी की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 30 से 40 हजार की लागत आती है और एक एकड़ में लगभग 70 से 90 क्विंटल लौकी का उत्पादन हो जाता है. बाजारों में भाव अच्छा मिल जाने पर 80 हजार से 1.5 लाख रुपए का शुद्ध आय हो जाती है.
लौकी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. यदि रोपाई बीज के रूप में की गयी है, तो बीज को अंकुरित होने तक नमी बनाये रखना होता है. यदि रोपाई पौधों के रूप में की गयी है, तो पौधे रोपाई के तुरंत बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए. बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर पौधों की सिंचाई करनी चाहिए. बारिश के मौसम के बाद इसकी सप्ताह में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए.अधिक गर्मियों के मौसम में इन्हे सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है,
इसलिए इन्हे 3 से 4 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए. जिससे पौधों में नमी बनी रहे, और जब पौधों पर फल बनने लगे तब हल्की-हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे फल अधिक मात्रा में प्राप्त हो सके. किसान आनंद बताते हैं कि लौकी की खेती एक बहुत ही अच्छी खेती है इसमें किसान को कम मेहनत में ज्यादा फायदा होता है.