
राजस्थान के कोटा जिले के गांव बड़ोदिया के रहने वाले, एम.कॉम तक पढ़े मनोज खंडेलवाल की कहानी खेती को घाटे का सौदा मानने वालों की सोच बदल सकती है. खेती में सात साल का अनुभव लेने के बाद मनोज जी समझ गए कि बंपर मुनाफे के लिए पारंपरिक खेती छोड़कर कुछ नया यानी इनोवेटिव करना होगा. जहां उनके इलाके के ज्यादातर किसान अमरूदों की पुरानी किस्मों पर ही टिके थे, वहीं मनोज जी ने जमीन, पानी और बाजार की नब्ज को समझते हुए एक अलग रास्ता चुना.
उन्होंने सिर्फ एक किस्म पर निर्भर रहने के बजाय विविधीकरण किया और अपने बागों के लिए वीएनआर और ताइवान पिंक जैसी नई और ऊंची कीमत देने वाली किस्मों को चुना, जो उनका पहला 'मास्टरस्ट्रोक' साबित हुआ. इसी सोच के साथ आगे बढ़कर उन्होंने 6 हेक्टेयर जमीन पर पारंपरिक खेती छोड़ नई 'स्मार्ट' तकनीक अपनाई. अपनी इसी सूझबूझ और नई तकनीक के दम पर उन्होंने 6 हेक्टेयर जमीन से 91 लाख रुपये की शानदार कुल कमाई करके दिखाई है.
मनोज खंडेलवाल का दूसरा और सबसे बड़ा इनोवेशन हाई-डेंसिटी और अल्ट्रा-हाई-डेंसिटी तकनीक अपनाना था. सीधी भाषा में कहें तो, यह पारंपरिक बागवानी जहां पौधे दूर-दूर लगते हैं. इसका का उल्टा है. इसमें पौधों को बहुत पास-पास लगाया जाता है, जिससे प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है.
मनोज जी ने इसी का फायदा उठाते हुए 3 हेक्टेयर जमीन पर हाई-डेंसिटी तकनीक से वीएनआर किस्म की 3.5x2.5 मीटर की दूरी पर 1141 पौधे प्रति हेक्टेयर और 3 हेक्टेयर पर अल्ट्रा-हाई-डेंसिटी तकनीक से ताइवान पिंक किस्म 2x1.5 मीटर की दूरी पर के 3333 पौधे प्रति हेक्टेयर लगा दिए. यह एक लाभ देने वाल कदम था, जिसने उतनी ही जमीन पर पारंपरिक खेती के मुकाबले पौधों की एक पूरी 'फौज' खड़ी कर दी. और इन पौधो तीसरे साल में बंपर फल आने लगे.
ज्यादा पौधे लगाने के बावजूद, मनोज ने क्वालिटी से समझौता नहीं किया, क्योंकि वह जानते थे कि अच्छा दाम तभी मिलेगा जब फल बेदाग और शानदार हो. जब पौधे में फल आने लगे तो इसके लिए उन्होंने 'फ्रूट बैगिंग' तकनीक अपनाई, जिसमें छोटे फलों को एक खास प्रोटेक्टिव पेपर बैग से ढक दिया जाता था.
इस 'बैग' का कमाल यह था कि यह फलों को कीड़ों जैसे फल मक्खी, बीमारियों, धब्बे या फंगस और मौसम की मार (तेज धूप या ओले) से बचाता था. साथ ही बैग के अंदर फल का रंग भी एक समान और चमकदार बनता था. यह मेहनत रंग लाई और उनकी इसी बेहतरीन क्वालिटी वाले अमरूद बाजार में आते ही हाथों-हाथ बिक गए.
मनोज खंडेलवाल की वैज्ञानिक सोच और कड़ी मेहनत का नतीजा चौंकाने वाला रहा. उनके बागों में हर पौधे ने 20 से 40 किलो तक फल दिए और बेहतरीन क्वालिटी के कारण दाम भी शानदार मिले, जहां ताइवान पिंक 20-25 रुपये किलो और वीएनआर 30-40 रुपये प्रति किलो बिका. कमाई का हिसाब देखें तो 3 हेक्टेयर में लगे ताइवान पिंक अल्ट्रा हाइडेन्सिटी से 198 टन उत्पादन हुआ, जिससे 49.50 लाख रुपये की आमदनी हुई यानी 1 रुपया लगाकर 2.28 रुपये कमाए.
वहीं, 3 हेक्टेयर में लगे वीएनआर हाइडेंसिटी से से 120 टन उत्पादन हुआ, जिससे 42.0 लाख रुपये की आमदनी हुई. यानी 1 रुपया लगाकर 1.71 रुपये कमाए. इस तरह 6 हेक्टेयर में 91 लाख के अमरूद की कुल कमाई हुई और शुद्ध कमाई 44 लाख रुपये हुई. एक साल में 44 लाख रुपये से ज्यादा का शुद्ध मुनाफा कमाकर मनोज खंडेलवाल ने यह साबित कर दिया कि खेती सही में ‘सोना’ उगल सकती है.
हाई डेंसिटीऔर अल्ट्रा हाई डेंसिटी तकनीक में पेड़ों की लगातार कटाई-छंटाई जरूरी होती है, लेकिन मनोज ने छंटी हुई पत्तियों को भी बेकार नहीं जाने दिया. उन्होंने इन पत्तियों को पेड़ों के नीचे बिछाकर जैविक मल्चिंग के रूप में इस्तेमाल किया. इस एक कदम से उन्हें कई फायदे हुए.
जमीन की नमी बनी रहने से पानी की भारी बचत हुई, खरपतवार नहीं उगे जिससे निराई-गुड़ाई का खर्च बचा, पत्तियां सड़कर जैविक खाद बन गईं जिससे जमीन की सेहत सुधरी और कुल मिलाकर उत्पादन की लागत भी कम हो गई. छंटाई ने ‘वेस्ट’ पत्तियों को बेहतर उपयोग कर ‘बेस्ट’ बना दिया.
मनोज खंडेलवाल की यह सफलता सिर्फ उनकी अपनी नहीं है, बल्कि यह पूरे हाड़ौती और मेवाड़ क्षेत्र के लिए है. इस इलाके के कई किसान मनोज की तरह बागवानी करने की राह पर चल पड़े है उन्होंने दिखाया है कि कैसे वैज्ञानिक सोच, नई तकनीक और बाजार की समझ से जमीन के हर इंच का सही इस्तेमाल किया जा सकता है.
उनकी यह तकनीक और फलों की बैगिंग, कम जमीन वाले किसानों के लिए नई सोच दी है, क्योंकि इस मॉडल से तीसरे साल से ही बंपर पैदावार शुरू हो जाती है. मनोज खंडेलवाल आज एक किसान ही नहीं, बल्कि एक 'कृषि-प्रेरक' बन चुके हैं, जो दिखा रहे हैं कि डिग्रियां लेकर सिर्फ नौकरी ढूढना ही विकल्प नहीं है, बल्कि 'स्मार्ट फार्मिंग' से आप खुद एक सफल उद्यमी बन सकते हैं.