
आज के समय में खेती-किसानी में सबसे बड़ी चुनौती, जिसकी चर्चा हर किसान करता है, वह है मजदूरों की कमी और खेती की बढ़ती हुई लागत. आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के थिमराजपेटा गांव के रहने वाले किसान वी. गणेश भी इसी समस्या से जूझ रहे थे. 12वीं पास गणेश जी के पास खेती का करीब 20 साल का लंबा अनुभव है. उन्होंने देखा कि धान की खेती में सबसे ज्यादा खर्चा और सिरदर्द नर्सरी तैयार करने और फिर उसे खेत में रोपने में आता है. ऊपर से सही समय पर मजदूर नहीं मिलते, जिससे फसल में देरी हो जाती है.
इसी समस्या ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि क्यों न कोई ऐसा तरीका निकाला जाए जिससे मजदूरों पर निर्भरता कम हो और जेब पर पड़ने वाला बोझ भी हल्का हो. इसी सोच और अपनी जरूरतों को पूरा करने की जिद ने उन्हें एक आविष्कारक बना दिया. उन्होंने ठान लिया कि वे धान की सीधी बुवाई के लिए कोई सस्ती और टिकाऊ तकनीक विकसित करेंगे.
गणेश जी ने बाजार से महंगी मशीनें खरीदने के बजाय अपने पास मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल करने का फैसला किया. उन्होंने 'लो-कॉस्ट' यानी कम लागत वाली तकनीक अपनाते हुए ट्रैक्टर से चलने वाले एक कल्टीवेटर को ही एक नई मशीन में बदल दिया. उन्होंने धान की सूखी बुवाई के लिए एक अनोखा 'ड्रम सीडर' तैयार किया. इस मशीन की बनावट बहुत ही रोचक और सरल है. उन्होंने कल्टीवेटर के फ्रेम के दोनों सिरों पर बेयरिंग लगाए ताकि एक लोहे की रॉड घूम सके. इस रॉड पर उन्होंने प्लास्टिक के 6 ड्रम लगाए, जिनमें छेद किए गए थे ताकि बीज गिर सकें.
यह पूरी तरह से देसी जुगाड़ था, जिसमें स्थानीय सामान का इस्तेमाल किया गया, जिससे मशीन सस्ती भी बनी और काम की भी. यह मशीन न केवल देखने में अलग थी, बल्कि इसका काम करने का तरीका भी बड़े-बड़े इंजीनियरों की सोच को टक्कर देने वाला था.
इस 'सुपर मशीन' का काम करने का तरीका बड़ा ही शानदार है. जैसे ही ट्रैक्टर चलता है, तीन काम एक साथ- नाली बनाना, बीज डालना और ढकना, करती है. मशीन का पहिया जमीन पर घूमता है, जिससे जुड़े ड्रम सही मात्रा में बीज गिराते हैं. लेकिन असली जादू यह है कि यह मशीन 'थ्री-इन-वन' काम करती है. इसमें लगे कल्टीवेटर के फाल जमीन में नाली बनाते हैं, ड्रम उसमें बीज गिराते हैं और पीछे लगा ब्लेड उसे मिट्टी से ढक देता है. यानी नाली बनाना, बुवाई और उसे ढकना—सब एक साथ! यह मशीन एक घंटे में करीब 1 एकड़ खेत की बुवाई आसानी से कर देती है.
अब बात करते हैं असली फायदे की. गणेश जी के इस जुगाड़ ने खेती का गणित ही बदल दिया है. नर्सरी तैयार करने, खेत में कीचड़ करने और रोपाई का भारी-भरकम खर्च अब इतिहास बन गया है. इससे प्रति हेक्टेयर सीधे 17,500 रुपये की बचत होती है. जहां पहले मजदूरों की खुशामद करनी पड़ती थी, अब 12 मजदूरों का काम ट्रैक्टर फटाफट कर देता है. मशीन से एक बराबर बुवाई होने से फसल अच्छी होती है और पारंपरिक तरीके के मुकाबले 7 से 10 दिन पहले पककर तैयार भी हो जाती है.
यह तकनीक उन इलाकों के लिए वरदान है जहां पानी की कमी है या मजदूर महंगे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि किसान को नई मशीन खरीदने की जरूरत नहीं; अपने पुराने ट्रैक्टर और कल्टीवेटर में ही ड्रम और पहिया लगवाकर यह 'मॉडर्न सीडर' तैयार हो जाता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक में 2.5 लाख एकड़ धान की खेती की तस्वीर बदलने की ताकत है. गणेश जी ने साबित कर दिया है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो 'जुगाड़' से भी खेती की बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है.