महानगरों से गांव लौट रहे बिहार के युवा, बिजनेस छोड़ सफल किसान बने लड़के की कहानी 

महानगरों से गांव लौट रहे बिहार के युवा, बिजनेस छोड़ सफल किसान बने लड़के की कहानी 

बिहार के युवा ने दिल्ली में अपना बसा बसाया कारोबार छोड़ गांव में खेती शुरू की. कभी जिस जमीन से 2 लाख रुपये की कमाई होती थी अब उसी जमीन से वैशाली जिले जा युवा 14 लाख रुपये की कमाई कर रहा है. पढ़ें प्रगतिशील किसान की कहानी.

किसान बने लड़के की कहानी किसान बने लड़के की कहानी 
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Patna,
  • May 05, 2025,
  • Updated May 05, 2025, 6:21 PM IST

बिहार कृषि के क्षेत्र में काफी समृद्ध है. इस समृद्धि में चार चांद लगा रहे हैं राज्य के वे युवा, जो शहरों की दुनिया को छोड़कर अपने गांव लौट रहे हैं और कृषि में अपना भविष्य देख रहे हैं. वे इसमें अपना करियर बना रहे हैं. हालांकि राज्य में कम जोत वाले किसानों की संख्या बहुत अधिक है, जबकि बड़ी जोत वाले लोग गांव के बजाय शहर में अपना भविष्य देख रहे हैं. वे रोज़गार स्थापित करते हुए पुश्तैनी ज़मीन को किराए पर दे रहे हैं. लेकिन वैशाली ज़िले के राजापाकड़ ब्लॉक के बखरी पराई गांव के निवासी नादिर बीते एक दशक से अधिक समय से अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर खेती कर रहे हैं. पहले वे भी बड़ी जोत वाले किसानों की तरह ज़मीन किराए पर दिया करते थे, लेकिन अब उसी ज़मीन पर कृषि यंत्रों की मदद से खेती करते हुए सालाना 13 से 14 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. 

पारिवारिक समस्याओं की वजह से आए गांव

किसान तक से बातचीत के दौरान नादिर ने बताया कि उनकी दिल्ली से गांव आने की वजह उनकी माता की तबीयत बिगड़ना है. वह कहते हैं कि दिल्ली में कॉन्ट्रैक्शन का कारोबार था और अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उनके साथ गांव आना पड़ा. यहां आने के बाद पुश्तैनी जमीन पर खेती करने का विचार आया. 2016 के बाद से आधुनिक कृषि के साथ मिलकर 23 एकड़ जमीन पर खेती शुरू की. हाल के समय में पारंपरिक फसलों की खेती के साथ-साथ बागवानी और पोल्ट्री में भी काम कर रहे हैं. आगे वह बताते हैं कि वे अपनी खेती में अधिकतर कृषि यंत्रों की मदद से काम करते हैं, जिसकी वजह से इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित  भी किया जा चुका है. 

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यंत्रों की मदद से खेती करना फायदे का सौदा

नादिर अपने 11 साल के खेती के अनुभव के आधार पर कहते हैं कि कृषि यंत्रों की मदद से खेती करने पर लागत में 60 से 65 प्रतिशत तक की बचत होती है. वो आगे कहते हैं कि जहां 12 एकड़ खेत में मजदूरों से मक्का लगाने पर 20 से 22 हजार रुपए का खर्च आता है, वहीं कृषि यंत्र से एक ही दिन में 7 हजार रुपए की लागत में पूरी फसल लग जाती है. अगर सालाना यंत्रों से होने वाले लाभ की बात की जाए तो करीब एक लाख की बचत आसानी से हो जाती है. साथ ही समय की बचत भी होती है.

23 एकड़ में मिलते थे दो लाख अब बढ़ी कमाई

नादिर कहते हैं कि जब वे अपनी 23 एकड़ ज़मीन किराये और बंटाई पर देते थे, तो उस जमीन से  सालाना 2 लाख रुपये मिलते थे.  लेकिन जब से वे खुद खेती करना शुरू किए हैं, तब से सालाना 13 से 14 लाख रुपए की कमाई हो रही है. आगे वह कहते हैं कि खेती में बेहतर संभावनाएं हैं, बशर्ते खेती करने से पहले उस क्षेत्र में प्रशिक्षण जरूर लिया जाए. हालांकि बिहार में स्पेशल फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करने के बाद उन्हें बेचना काफी मुश्किल होता है.

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