PMFBY: शि‍कायतों के बावजूद सात साल में कैसे डबल हुई फसल बीमा लेने वाले क‍िसानों की संख्या 

PMFBY: शि‍कायतों के बावजूद सात साल में कैसे डबल हुई फसल बीमा लेने वाले क‍िसानों की संख्या 

क्या खेती पर बढ़ते जलवायु पर‍िवर्तन के बढ़ते खतरों की वजह से बढ़ रही है पीएम फसल बीमा योजना में आवेदकों की संख्या. सरकार की नजर में क‍िसानों का 'सुरक्षा कचव' है यह योजना. हालांक‍ि, इसे लेकर क‍िसानों की शिकायतों और उनकी चुनौत‍ियों को नजरंदाज नहीं क‍िया जा सकता. 

क्या क‍िसानों के ल‍िए 'सुरक्षा कवच' है फसल बीमा (Photo-Ministry of Agriculture).  क्या क‍िसानों के ल‍िए 'सुरक्षा कवच' है फसल बीमा (Photo-Ministry of Agriculture).
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jul 25, 2023,
  • Updated Jul 25, 2023, 8:02 PM IST

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के सात साल पूरे हो गए हैं. तमाम शि‍कायतों और कम‍ियों के बावजूद इसका लाभ लेने वाले क‍िसानों की संख्या में इजाफा हो रहा है. आवेदकों की संख्या लगभग डबल हो गई है. स्कीम को लेकर श‍िकायतों का अंबार है, इसके बावजूद क‍िसी स्तर पर इसे क‍िसान जरूरी मानते हैं, क्योंक‍ि बड़ी प्राकृत‍िक आपदा आने पर उनके नुकसान की भरपाई हो जाती है. साल 2016-2017 में जब योजना की शुरुआत हुई थी तब इससे जुड़ने वाले क‍िसानों की संख्या लगभग 5 करोड़ 84 लाख थी, जो अब 2022-2023 में बढ़कर 10 करोड़ 81 लाख हो गई है. इस योजना को चलाने का मकसद किसानों को मौसम या प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई हानि की भरपाई करके उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है. इसल‍िए इसे क‍िसानों का 'सुरक्षा कचव' बताया जा रहा है. फ‍िर भी इस स्कीम में क‍िसानों को ज‍िन चुनौत‍ियों का सामना करना पड़ रहा है उसे नजरंदाज नहीं क‍िया जा सकता. 

दरअसल, खेती पर जलवायु पर‍िवर्तन का असर सबसे ज्यादा द‍िखाई दे रहा है. बार‍िश का पैटर्न बदल रहा है. जहां कभी बाढ़ नहीं आती थी वहां बाढ़ आ रही है और जहां पर पानी की अध‍िकता होती थी वहां पर सूखा पड़ रहा है. ज‍ितनी बार‍िश एक महीने में होनी चाह‍िए वो एक द‍िन में हो जा रही है. बढ़ती प्राकृत‍िक आपदाओं की वजह से ही पीएम फसल बीमा योजना में आवेदकों की संख्या बढ़ रही है. सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की एक र‍िपोर्ट के मुताब‍िक अनुसार, "भारत ने 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2022 तक 273 दिनों में से 241 दिनों में मौसम की चरम घटनाएं दर्ज कीं. इनमें लू, चक्रवात, शीत लहर, बिजली, भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन शामिल हैं. बाढ़ की तबाही ने किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ा है."

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क्या इसल‍िए बढ़ रहे हैं आवेदक क‍िसान

हालांक‍ि, बीम‍ित क‍िसानों की बढ़ती संख्या पर कुछ सवाल भी हैं. क्योंक‍ि कर्जदार क‍िसानों का बीमा ज्यादा है. करीब 69 फीसदी ऐसे ही क‍िसान हैं ज‍िन्होंने कृष‍ि कार्यों के ल‍िए लोन ल‍िया हुआ है और उनका फसल बीमा भी हो गया है. इसकी एक वजह है. ज‍िन क‍िसानों ने क‍िसान क्रेड‍िट कार्ड पर कृष‍ि लोन ल‍िया है उनके अकाउंट से बीमा का पैसा ऑटोमेट‍िक कट जाता था. चाहे वो चाहें या नहीं. क‍िसानों के भारी व‍िरोध के बाद इसमें सुधार क‍िया गया. लेक‍िन सुधार में शर्त ऐसी रखी गई क‍ि उसका फायदा कंपन‍ियों को पहुंचता है.

एक न‍ियम बनाया गया है क‍ि केसीसी धारक क‍िसान खुद बैंक जाकर में अप्लीकेशन देकर बताएगा क‍ि उसे फसल बीमा नहीं चाह‍िए तब उसके अकाउंट से पैसा नहीं कटेगा. वो रबी और खरीफ दोनों सीजन में यानी जुलाई और द‍िसंबर में बैंक जाकर ल‍िख‍ित तौर पर सूच‍ित करेगा क‍ि उसे फसल बीमा नहीं चाह‍िए. ऐसे में तमाम क‍िसानों को इसकी जानकारी नहीं होती और ब‍िना उनकी कंसेंट के प्रीम‍ियम काट ल‍िया जाता है. वरना गैर कर्जदार क‍िसानों की संख्या कहीं ज्यादा होती. जबक‍ि अभी ऐसे क‍िसान स‍िर्फ 31 फीसदी ही हैं. क‍िसान संगठन यह न‍ियम बनाने की मांग कर रहे हैं क‍ि क‍िसान जब आवेदन करें तभी बीमा हो, अपने आप बीमा कर देने का स‍िस्टम खत्म हो.

पीएम फसल बीमा योजना का र‍िपोर्ट कार्ड

बीमा सेक्टर में फसल बीमा का ह‍िस्सा

इस योजना में क‍िसानों की बढ़ती संख्या की वजह से फसल बीमा कंपन‍ियों का कारोबार बढ़ रहा है. इन सात वर्षों में कंपन‍ियों को 1,97,657 करोड़ रुपये का प्रीम‍ियम म‍िला. जबक‍ि क‍िसानों को क्लेम के रूप में स‍िर्फ 1,40,038 करोड़ रुपये म‍िले. यानी 57,619 करोड़ रुपये का लाभ हुआ. फसल बीमा क्षेत्र में कुल 18 कंपन‍ियां कार्यरत हैं, लेक‍िन पांच-छह कंपन‍ियां ही सबसे ज्यादा जगहों पर काम लेती हैं. 

साल दर साल आवेदक क‍िसानों की संख्या बढ़ने के साथ ही फसल बीमा का कारोबार क‍ितनी तेजी से बढ़ा है इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. बीमा सेक्टर में फसल बीमा की ह‍िस्सेदारी 2015-16 में स‍िर्फ 6 फीसदी हुआ करती थी जो अब बढ़कर 2021-22 में 14 फीसदी हो गई है. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के अध‍िकार‍ियों का दावा है क‍ि फसल बीमा में प्रत‍ि लाभार्थी क‍िसान औसत दावा 10,506 रुपये का हो गया है.

हालांक‍ि, इस बात में कोई दो राय नहीं है क‍ि इस योजना का फायदा उठाने वाले क‍िसानों की संख्या बढ़ रही है ले‍क‍िन, सवाल यह उठता है क‍ि आवेदकों की संख्या तो बढ़ी लेक‍िन बीमा कवर्ड रकबा क्यों घटा? कृष‍ि मंत्रालय के एक अध‍िकारी ने बताया क‍ि पहले कुछ क‍िसानों की एक ही जमीन दो-दो बार र‍िकॉर्ड में आ गई थी. लेक‍िन जब से फसल बीमा योजना से लैंड र‍िकॉर्ड इंटीग्रेट हुआ है तब से एक्चुअल एर‍िया सामने आ रहा है. 

क‍िसानों के ल‍िए क्यों है फायदे का सौदा

बेशक, इस योजना में सुधार की गुंजाइश बाकी है. खासतौर पर फसल नुकसान का आकलन करने और मुआवजा की रकम को लेकर. फ‍िर भी योजना क‍िसानों के फायदे की ही साब‍ित हुई है क्योंक‍ि क‍िसानों को प्रीम‍ियम के तौर पर बहुत छोटी सी रकम देनी होती है. बाकी का पैसा सरकार खुद भरती है. मसलन योजना की शुरुआत से 30 जून 2023 तक बीमा कंपन‍ियों को 1,97,657  करोड़ रुपये का कुल प्रीम‍ियम म‍िला. ज‍िसमें क‍िसानों का शेयर स‍िर्फ 29,123 करोड़ रुपये था. जबक‍ि उन्हें 1,40,038 करोड़ रुपये म‍िले.

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