बिहार में एक नवंबर से धान की खरीदी शुरू हो जाएगी. वहीं उत्तर बिहार के इलाकों में धान की कटनी धीरे-धीरे शुरू हो गई है. इसके साथ ही किसान अगली फसल की खेती ते लिए खेतों में पराली जलाना शुरू कर देते है. इसको लेकर कृषि विभाग खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाने के प्रति जागरूक कर रहा है. वहीं कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि सरकार द्वारा कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन से जुड़े यंत्र अनुदान पर दिए जा रहे हैं. सूबे की सरकार कृषि यंत्रों पर 75 से 80 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करा रही है.
बता दें कि बिहार सरकार ने पिछले साल पराली जलाने वाले किसानों को कृषि से मिलने वाली योजनाओं से वंचित कर दिया था. वहीं कृषि विभाग लगातार चौपाल, कार्यक्रम सहित नुक्कड़ नाटक के जरिये लोगों को जागरूक कर रही है. उत्तर बिहार के जिलों में धान की खरीदारी एक नवंबर से शुरू होगी. वहीं दक्षिण बिहार के जिलों में धान की खरीदी 15 नवंबर से तय है.
बिहार सरकार कृषि से जुड़े कई तरह के कृषि यंत्रों पर करीब 90 प्रतिशत तक अनुदान देती है. वहीं किसान अपने खेतों में पराली नहीं जलाएं, इसको लेकर कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन करने से संबंधित यंत्रों पर भी अनुदान दिया जा रहा है. सूबे की सरकार कृषि यंत्रों पर 75 से 80 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है. इसमें हैप्पी सीडर, रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ बेलर, सुपर सीडर, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस), रोटरी स्लेशर, जीरो टिलेज/सीड-कम-फर्टिलाइजर, पैडी स्टॉचौपर सहित कई तरह की मशीनें शामिल हैं.
वहीं अब बीस हजार रुपये तक जिन मशीनों पर अनुदान मिल रहा है, उसके लिए किसानों को एलपीसी देने की जरूरत नहीं है. राज्य की सरकार ने कृषि यंत्रों और उपकरणों पर अनुदान के लिए कुल 119 करोड़ की योजना स्वीकृत की है. इसके तहत राज्य के किसानों को कुल 108 प्रकार के कृषि यंत्रों पर अनुदान का प्रावधान किया गया है. इनमें फसल अवशेष के प्रबंधन से जुड़े कृषि यंत्र भी शामिल हैं.
कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि मजदूरों के अभाव में खासकर पटना और मगध प्रमंडल के अधिकांश जिलों के किसान धान की कटनी कम्बाईन हार्वेस्टर से करते हैं. इस दौरान धान के तने का अधिकांश भाग खेतों में ही रह जाता है. अगली फसल उगाने की जल्दबाजी में फसल अवशेषों को खेतों में ही जला दिया जाता है. इसके चलते मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन नष्ट हो जाता है. इसके कारण मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है. साथ ही मिट्टी का तापमान बढ़ने से सूक्ष्म जीवाणु, केंचुआ आदि भी मर जाते हैं.
बता दें कि एक टन फसल अवशेष को जलाने से लगभग 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड और दो किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलती है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है.